आप एक ही समय में हम इतने सारे व्यक्तियों पर कार्य कर लेते हैं, क्या है इसका रहस्य?
क्योंकि मैं कार्य करता ही नहीं! मैं तो बस होता हूं। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि मेरे पास कितने लोग हैं। यदि मैं कार्य कर रहा होता, तो निस्संदेह किस प्रकार एक ही समय में इतने लोगों पर कार्य कर सकता? मेरे कार्य की गुणवत्ता भिन्न है। वस्तुत: यह कार्य नहीं है। मुझे इन शब्दों का उपयोग करना पड़ता है तुम्हारे कारण। मैं तो मात्र हूं यहां। चीजें घटेंगी अगर तुम भी हो यहीं। मैं सुलभता से मौजूद हूं यदि तुम भी सुलभ हो, तो चीजें अपने से ही घटेंगी। कुछ करने की जरूरत नहीं है। मैं यहां हूं। यदि तुम भी होते हो यहां, तो चीजें अपने से घटती हैं। बस ऐसा ही होता है, मैं नहीं कर रहा होता कुछ। यदि इससे भिन्न कुछ होता, तो मैं तुमसे थक गया होता, लेकिन मैं कभी नहीं थकता क्योंकि मैं कुछ नहीं कर रहा। तुम मुझे नहीं थका सकते; मैं ऊबा हुआ नहीं हूं। यदि इससे अन्यथा कुछ होता तो मैं थक गया होता। तुम स्वयं से भी ऊबे हुए हो—तुममें से बहुत ऊबे हुए हैं।
ऐसा हुआ, यहूदी संप्रदाय में कि एक रबाई ने चले जाने की धमकी दे दी। पवित्र दिवस करीब आ रहे थे और ट्रस्टी लोग चिंतित थे इस बारे में कि क्या करना चाहिए। अभी यह कठिन था, तत्काल ही किसी रबाई को खोज लेना, नए रबाई को खोजना। और वह पुराना वाला तो अपनी बात पर अटल बना हुआ था। उन्होंने उसे राजी कराने का प्रयत्न किया। उन्होंने तीन ट्रस्टियों का एक प्रतिनिधि मंडल भेजा, और उन्होंने ट्रस्टियों से कहा कि उससे कहें, यदि वह ज्यादा वेतन चाहता है, तो स्वीकार कर लेना। या उससे कहना कि वह कम से कम कुछ सप्ताह ही रुक जाये। फिर वह जा सकता है। फिर हम किसी और को ढूंढ़ पायेंगे।
तो गये वे, उन्होंने हर ढंग से कोशिश की। वे कहते रहे, 'हम प्रेम करते हैं आपसे और सम्मान करते हैं आपका। क्यों छोड़कर जा रहे है आप?’ पर रबाई बोला, 'यदि आपकी तरह के पांच व्यक्ति यहां होते, तो मैं यहीं रहता।‘ उन्होंने बड़ा सम्मानित अनुभव किया क्योंकि उसने कह दिया था, 'यदि आपकी तरह के पांच व्यक्ति यहीं होते, तो मैं यहीं रहता।‘ उन्होंने बहुत अच्छा अनुभव किया और वे बोले, 'तो ऐसा कोई बहुत मुश्किल तो नहीं होगा। हम तीन तो यहां हैं ही। दो और खोजे जा सकते हैं।‘ वह रबाई बोला, 'यह मुश्किल नहीं है, यही तो अड़चन है। आपकी तरह के दो सौ व्यक्ति यहां हैं, और यह बहुत ज्यादा है।‘ तुम स्वयं से ही ऊबे हुए हो। जरा देख लेना दर्पण में- तुम ऊबे हुए हो अपने चेहरे से। और तुम कितने सारे हो यहां! फिर मुझे तो भयंकर रूप से ऊब जाना चाहिए। और तुम रोज मेरे पास वही-वही समस्याएं लिए चले आते हो। लेकिन मैं कभी नहीं ऊबता, क्योंकि मैं कार्य नहीं कर रहा हूं। यह कोई कृत्य जरा भी नहीं है। तुम इसे प्रेम कह सकते हो, लेकिन कार्य नहीं।
प्रेम कभी नहीं ऊबता है। हजार बार तुम मेरे पास फिर-फिर वही समस्याएं ला सकते हो। बहुत समस्याएं होती ही नहीं हैं। मैं हजारों लोगों को देखता रहा हूं। वही समस्याएं बार-बार दोहराते रहते हैं। तुम्हारी समस्याएं सप्ताह के सात दिनों की भांति ही हैं- उससे कुछ ज्यादा नहीं। फिर सोमवार आता है, फिर से मंगलवार आता है- ऐसा ही चलता चला जाता। लेकिन मैं जरा भी ऊबा हुआ नहीं हूं क्योंकि मैं कार्य नहीं कर रहा हूं। यदि कोई कार्य कर रहा हो, तो निस्संदेह यह बहुत कठिन होता है। तो इसलिए मैं कर सकता हूं काम- क्योंकि मैं कुछ कर नहीं रहा। तो तुम सब लोगों से, तुमसे ही कुछ अपेक्षित है, मुझसे नहीं। तो तुम ऊब सकते हो किसी दिन मुझसे वैसी संभावना है। तुम शायद मुझसे भागना चाहो, यह संभव हो सकता है।
केवल एक चीज अपेक्षित है तुमसे। यदि तुम वह कर सको, तब कुछ करने की जरूरत नहीं- न तो मेरी तरफ से और न ही तुम्हारी तरफ से। वह चीज है तुम्हारी सुलभ मौजूदगी। तुम अभी और यहीं बने रहो। और फिर इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता कि तुम यहां इस शहर में हो, इस आश्रम में हो, या कि संसार के किसी दूसरे कोने में हो। यदि तुम्हारी मौजूदगी सुलभ हो, तो बीज अंकुरित होंगे ही। मैं हर कहीं मौजूद हूं। कहीं होने की बात नहीं है। चाहे मैं इस शरीर में भी नहीं रहूं मैं प्राप्य होऊंगा। लेकिन तब तुम्हारे लिए अधिकाधिक कठिन होगा, क्योंकि तुम तो अभी मौजूद नहीं हो जब मैं यहां और अभी इस शरीर में हूं और तुमसे बातें कर रहा हूं। तुम ध्यान देकर नहीं सुन रहे हो। निस्संदेह तुम सुन रहे हो, पर ध्यान नहीं दे रहे हो। तुम मेरी ओर देख रहे हो, पर 'मुझे’ नहीं देख रहे हो। मुझे देखो। यह कोई कार्य नहीं है। यह मात्र एक सुलभ प्रेम है, और प्रेम द्वारा हर चीज संभव होती है, हर रूपांतरण संभव होता है।
ओशो
मन की स्वतंत्रता है संन्यास, तो फिर मन क्या है? ओशो से जानें
विपरीत ध्रुवों का मिलन है हमारा अस्तित्व
Spiritual News inextlive from Spiritual News Desk