एक बार संत एकनाथ गोदावरी में स्नान कर रहे थे कि उन्हें सामने पानी में एक बिच्छू बहता दिखाई दिया। उन्होंने आगे बढ़कर उसे पकड़ लिया, किंतु जैसा कि बिच्छुओं का स्वभाव है, बिच्छू ने उनकी हथेली पर डंक मारा।

एकनाथ जी ने उस ओर ध्यान न देकर बिच्छू को किनारे पर रख दिया और पुन: स्नान करने लगे। अकस्मात लहरों का झोंका आया और उसने किनारे के बिच्छू को अपनी चपेट में ले लिया।

एकनाथ जी ने फिर उसकी रक्षा की और उसे किनारे पर रख दिया। बिच्छू ने इस बार भी डंक मारा। समीप ही एक व्यक्ति नहा रहा था। उसने यह सब देखा, तो एकनाथ जी से पूछा, 'यह बिच्छू आपको बार-बार डंक मार रहा है और आप बार-बार उसकी रक्षा कर रहे हैं। क्या ऐसे दुखदायी जीव पर दया दिखाना उचित है?

एकनाथ स्वामी ने जवाब दिया, 'इसमें अनुचित क्या है? मैं अपने स्वभाव का धर्म उसके साथ बरत रहा हूं और वह अपने स्वभाव-धर्म का पालन कर रहा है। फिर हमें अपने स्वभाव धर्म से क्यों विमुख होना चाहिए?

कथासार

सामने वाला बुरा व्यवहार करे भी, तो अपना अच्छा व्यवहार कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

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