छोटे पैकेट, बड़े धमाके
Bareilly ki Barfi :
अश्विनी अय्यर तिवारी की पहली फ़िल्म (निल बटे सन्नाटा ) देख कर हर किसी को उनसे काफी आशा थी, अपनी आशाओं पर खरा उतरते हुए अश्विनी ने एक धमाकेदार फ़िल्म बनाई, और इस फ़िल्म के चर्चे पूरे साल रही, खासकर स्वीटी तेरा ड्रामा गणेश पंडालों से लेके शादियों तक हर जगह बजा।
Shubh Mangal Saavdhaan
मैंने कभी नहीं सोचा था कि सिंपल स्लाइस ऑफ लाइफ फिल्मों का समय इस साल यूँ वापस आएगा, एक एडल्ट इशू पर एक ऑलमोस्ट फैमिली फ़िल्म बनाना बेहद मुश्किल काम है, पर शुभ मंगल सावधान ने वो कर दिखाया। ये फ़िल्म अपने ज़बरदस्त डायलॉग्स की वजह से इस साल की बेहद मनोरंजक फ़िल्म बन कर उभरी।
Tumhari Sulu
ये भी इस साल की एक अविस्मरणीय फ़िल्म माननी चाहिए, शहरी जीवन और उसमें सपने देखने वाली एक गृहणी की ज़िंदगी को इतने फिनेस के साथ दिखाने वाली ये एक बेहद अनूठी फ़िल्म थी, इसीलिए शायद लोगों ने इसके साथ खूब रिलेट भी किया।
Hindi Medium
बच्चों को पालने में माँ बाप पर क्या क्या गुज़रती है ये केवल वो ही समझ सकते हैं, हिन्दी मीडियम ने उन पेरेंट्स की दुखती रग पर हास्य का मरहम लगाया।
इस साल बच्चों को लेकर बनीं फिल्म
Secret Superstar
कुछ ने कहा कि ये 'तारे ज़मीन पे' का एक्सटेंशन फ़िल्म थी, मेरा मानना है क्यों नहीं? बच्चों की समस्याएं भी कम नहीं है, अपने मेनिपुलेटिव स्क्रीनप्ले से इसने बच्चों के सपनों की उड़ान की तरफ दर्शकों को भावुक करते हुए खींचा। फ़िल्म में ज़ायरा और माही ने शानदार अभिनय किया और दर्शकों को खूब रुलाया, इन अ गुड़ वे ऑफकोर्स।
Jagga Jasoos
इस साल की सबसे भव्य फ़िल्म एक किड्ज फ़िल्म थी। डिस्नी की भारत मे ये आखरी प्रोडक्शन थी, एक फुल म्यूजिकल एक्सपेरिमेंट, हिट और फ्लॉप के माप पे भले ही फेल हो गया हो पर अनुराग बसु की दाद देनी होगी कि उन्होंने वो एटेम्पट किया जो हर किसी के बस की बात नहीं। मुझे ऐसा लगता है कि आज भले ही इस फ़िल्म को दर्शक न मिले हों पर दशकों बाद ये फ़िल्म एक कल्ट क्लासिक स्टेटस ज़रूर पाएगी।
इस साल इन फिल्मों को भी सराहा गया
Newton
इस साल की ऑफिसियल ऑस्कर एंट्री भले ही ऑस्कर तक न पहंच पाई है पर यकीनन ये इस साल की सबसे उम्दा फिल्मों में से एक है। फ़िल्म हर लिहाज से और हर डिपार्टमेंट में ऑलमोस्ट परफेक्ट है।
Trapped
लूटेरा जैसी बड़ी बजट की फ़िल्म के बाद विक्रमादित्य मोटवानी ने एक लो बजट फ़िल्म में सिंगल प्रोटागनिस्ट की कहानी इस इंटेंसिटी के साथ सुनाई की दर्शक शॉकड थे। ये भी इस साल की सबसे बढ़िया फिल्मों में आती है।
Lipstick under my Burkha
अलंकृता की फ़िल्म 'लिपस्टिक वाले सपने' ने जैसे ही अपना नया नाम लिया, देश भरके रूढ़िवादियों की तरफ से काफी तनाव झेला, निलहानी साहब ने तो इस फ़िल्म के मामले में मानो आग ही उगल दिया। फिर भी जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो जनता ने इसे खूब सराहा और ये इस साल की एक प्रॉफिटेबल फ़िल्म है।
Anarkali of Arrah
लिपस्टिके...जितनी फेमिस्ट फ़िल्म थी उतनी ही एक और भी, अनारकाली ऑफ आरा, जहां एक ओर स्वरा ने पिछले बरस निल बाटे सन्नाटा से वाहवही बटोरी थी, वहीं दूसरी तरफ इस साल अनारकली के किरदार से फिर अपने टैलेंट का सिक्का चलाया। अनारकली इस साल की सबसे अक्लेम्ड फिल्म्स में से एक रही।
Death in the Gunj
ये फ़िल्म इस साल की सबसे वेल डिरेक्टेड फिल्म्स में से एक है। अगर न्यूटन न होती इस साल तो निश्चित तौर पे इस फ़िल्म को भी ऑस्कर के लिए भेजा जा सकता था। इस फ़िल्म में सभी किरदारों के परफॉरमेंस बहुत ही अच्छा था। इस फ़िल्म के सभी तकनीकी पहलू इतने स्ट्रांग थे कि ये इस साल का टेक्निकली ये इस साल की बेस्ट फ़िल्म है।
Gurgaon
ये इस साल की अच्छी क्राइम थ्रीलर फिल्म्स में से एक थी। एक बढ़िया कसे हुए स्क्रीनप्ले की वजह से इस फ़िल्म पे हर किसी की निगाह गई। पंकज त्रिपाठी के जबरस्त अभिनय की वजह से भी ये फ़िल्म अपलिफट होती है। इस फ़िल्म का कैमरावर्क अमेज़िंग था।
इस साल एक बात तो बहुत अच्छी हुई की रद्दी फिल्म्स सीधे रद्दी के टोकरे में चली गईं, और दर्शकों ने भी उनका खूब मज़ाक बनाया
मशीन : अब्बास मस्तान की फ़िल्म मशीन जो उनके युवराज मुस्तफा की लांच फ़िल्म भी थी, हंसी का पात्र बनी। इस फ़िल्म का दर्शकों और समीक्षकों ने जम कर मज़ाक उड़ाया.
हाफ गर्लफ्रेंड : चेतन भगत की रचना पे बानी ये फ़िल्म जिसमे अर्जुन कपूर और श्रद्धा कपूर के साथ अरिजीत सिंह के क्रंदन से भरे हुए गाने भी थे, उसने पानी भी नहीं मांगा. क्यों? क्योंकि ये फ़िल्म बेहद अझेल थी।
लाली की शादी में लड्डू दीवाना: अझेल शब्द की परिभाषा चाहिए तो ये फ़िल्म देख लीजिए, अगर पूरी फिल्म को देख लिया तो आप महान हैं।
मुबारकां : उफ्फ तौबा, अगर खराब और घटिया स्क्रिप्ट्स की लिस्ट खंगाली जाए तो इस साल की सबसे घटिया और मूर्खतापूर्ण स्क्रिप्ट यही है, मुझे तो इस फ़िल्म रिव्यु का टाइटल (दिमाग के बासी दही की पंजाबी लस्सी) इस फ़िल्म की कहानी से ज़्यादा याद है।
हसीना पारकर: श्रद्धा कपूर के मुँह में ठूसे हुए वड़ापाव की वजह से मुझे उनका एक भी डायलॉग समझ मे नहीं आया, ये इस साल की सबसे खराब पेरफ़ॉर्मेंस वाली फिल्म थी, और उतनी ही बड़ी फ्लॉप भी।
जुली 2: ये वो फ़िल्म थी जो अपने पहले पोस्टर से ही हंसी का पात्र बन गई थी, जैसे ही लोग पहलाज निलहानी का नाम पढ़ते थे, हंसने लगते थे, फ़िल्म को देखने कितने लोग पहुंचे वो आज भी रहस्य है।
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