यासीन एक रिटायर्ड स्कूल चपरासी हैं और जीवन का अहम हिस्सा मंदिरों की देखभाल करने में लगा चुके हैं। वे 34 सालों से 28 मंदिरों का ध्यान रख रहे हैं। यासीन को 1993 में सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने के लिए कबीर पुरस्कार से नवाजा गया था, हालांकि पिछले साल उन्होंने देश में बढ़ती असहिष्णुता का हवाला देते हुए इसे लौटा दिया था।
यासीन के लिए यह काम इतना आसान नहीं था। यासीन ने साल 1973 में मिदिनापुर के पाथरा गांव में स्थित 300 साल पुराने मंदिरों को संरक्षण करना शुरु किया है। यासीन ने बताया कि लोग इन मंदिरों में आते थे औऱ यहां से ईंट-पत्थर ले जाते थे। तभी उन्होंने इन मंदिरों के संरक्षण की सोची और निगरानी करने लगे। इस दौरान यासीन को विरोध का सामना भी करना पड़ा। लोग उन्हें दूसरे धर्म का बताकर उनका विरोध करते थे। फिर भी यासीन ने हार नहीं मानी।
1992 में उन्होंने लोगों को इस संबंध में जागरूक करने के लिए 'पाथरा आर्कियोलॉजी कमिटी' का गठन किया। हिंदू, मुस्लिम और आस-पास के आदिवासियों को भी उन्होंने इस समिति का हिस्सा बनाया। 2003 में पुरातत्व विभाग ने इन मंदिरों के रख-रखाव का जिम्मा संभाला।
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