अनुशासित राजनीतिक प्रशिक्षण के मामले में भी दोनों में काफ़ी समानता है. एक का प्रशिक्षण कम्युनिस्ट कैडर के रूप में और दूसरे का एक दक्षिणपंथी संगठन और पार्टी में एक कार्यकर्ता के रूप में हुआ है.
जिंदगी और काम के प्रति 'सबकुछ संभव है' का नज़रिया रखने वाले इन दोनों नेताओं को बहुमुखी और ताक़तवर नेता माना जाता है.
इनमें से एक भ्रष्टाचार विरोधी सख़्त अभियान चला रहे हैं और दूसरा विकास के उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है, जिसका वादा कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता तक पहुंची है.
लेकिन इन दोनों नेताओं में काफ़ी अंतर भी हैं.
पढ़िए विस्तार से
शी जिनपिंग एक रसूख़ वाले परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता शी झोंगशुन माओ त्से तुंग के सहयोगी थे और लांग मार्च में उनके साथ थे और बाद में एक शक्ति केंद्र के तौर पर उभरे.
शी जिनपिंग में राजनीति के प्रति झुकाव कम उम्र में ही पैदा हो गया था.
वहीं नरेंद्र मोदी की पैदाइश एक मामूली घर में हुई थी. उन्हें अपने जीवन में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखना पड़ा. एक समय तो उन्हें रेलवे स्टेशन पर चाय की स्टाल भी लगानी पड़ी.
उन्हें इस बात पर गर्व होता है कि वो कभी 'चायवाला' थे. उनके जीवन का यह एक ऐसा पहलू है, जिसे उन्होंने जनता के साथ असरदार संवाद के लिए इस्तेमाल किया.
इससे ऐसा संदेश जाता है कि रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते हुए उन्होंने अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के लोगों से निपटने का हुनर सीखा.
अनुशासित दिनचर्या के लिए चर्चित होने के नाते, यह संभव है कि मोदी ने खुद पर सख़्त नियंत्रण रखने की कला आरएसएस की शाखाओं में सीखी हो.
हालांकि, आरएसएस में इतने सालों तक खाक़ी हाफ़ पैंट पहनते हुए, उन्हें फैंसी कपड़े पहनने का शौक कैसे पैदा हुआ, यह एक रहस्य है.
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि मोदी दशकों तक आरएसएस के कैडर के रूप में प्रशिक्षण लेने वाली बात पर उतना जोर नहीं देते हैं जितना वो कभी अपने 'चायवाला' होने पर देते हैं.
विवाह
शी ने दो बार शादी की. उनकी दूसरी पत्नी पेंग लियुआन मशहूर गायिका हैं और वो फ़ौजी म्यूज़िक बैंड के साथ सालों तक जुड़ी रहीं हैं.
चीनके कुछ सबसे उम्दा और मशहूर गायक राष्ट्रभक्ति वाले गाने गाकर ही लोकप्रिय हुए हैं.
शी दंपति की एक बेटी मिंग झी हैं. मिंग ने अमरीका के हॉवर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और हाल ही में अपने वतन लौटी हैं.
मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी पत्नी के रूप में जशोदाबेन का ज़िक्र किया था.
दूसरी तरफ़, कुछ साल पहले तक मोदी की वैवाहिक स्थिति पता नहीं थी. वे खुद को अविवाहित जैसा ही दिखाते थे.
अब यह पता चल चुका है कि उनकी शादी हुई थी और इसके कुछ दिनों बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया था.
उनके भाई ने बताया है कि वो शादी के बंधन से इसलिए निकल गए क्योंकि ज़िंदगी में उनका उद्देश्य बहुत ऊंचा था.
राजनीतिक प्रशिक्षण
शी का राजनीतिक प्रशिक्षण उनके पिता के क्रांतिकारी होने के कारण बहुत पहले ही शुरू हो गया और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कैडर के रूप में यह लंबे समय तक जारी रहा.
जब उनके पिता को माओ त्से तुंग ने हटा दिया और वो अपने सम्मान से भी हाथ धो बैठे, इसके बाद शी जिनपिंग को सांक्शी प्रांत के लियांग जिआहे में पार्टी के युवा कैडर के रूप में भेज दिया गया.
शी ने स्वीकार किया है कि इस ट्रेनिंग से उन्होंने बहुत कुछ सीखा. इसके बाद उन्होंने पार्टी के काम के लिए एक ग्रामीण इलाक़ा हेबेई चुना और बाद में एक वरिष्ठ फ़ौजी कमांडर के सहायक के रूप में काम किया.
वो 2007 में चीन के उप राष्ट्रपति बने और नवंबर 2012 में कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बने. मार्च 2013 में वो चीन के राष्ट्रपति बने.
मोदी का सफ़र
नरेंद्र मोदी 1971 और उससे पहले अपने पिता और चाचा की चाय की दुकान पर काम काम करते थे. इसके साथ ही वो आरएसएस से भी जुड़ रहे. उस साल वो आरएसएस के फुल टाइम प्रचारक बन गए.
उनकी संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए आरएसएस ने उन्हें 1985 में भारतीय जनता पार्टी में भेज दिया. उन्होंने लालकृष्ण अडवाणी की अयोध्या रथ यात्रा की ज़िम्मेदारी गुजरात में अच्छी तरह निभाई. इसके बाद उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया.
मोदी की संगठनात्मक क्षमता के कारण 1998 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया. इससे गुजरात में उनकी पहचान बनती गई. पार्टी में वो आडवाणी के करीब नेताओं में शुमार होने लगे. भाजपा ने 2001 में उस समय के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया.
इसके अगले साल फरवरी में गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए. इससे उनकी छवि खराब हुई. लेकिन उसी साल हुई विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी जीत मिली. इसका श्रेय मोदी को दिया गया और वो मुख्यमंत्री पद पर बने रहे.
इसके बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की भारी विजय हुई. पार्टी ने 2013 में उन्हें आम चुनाव के प्रचार का कमान दी गई. उनके नेतृत्व में भाजपा ने 2014 के चुनाव में भारी जीत दर्ज की और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी.
बड़ा सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या दोनों नेता एक 'एशियाई ताक़त' बनने के लिए साथ आएंगे?
चीन के जानकारों के मुताबिक़, 'यह ताक़त' अमरीका को चुनौती देने के लिए पर्याप्त होगी.
हालांकि दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा और अन्य विवादों पर सहमति की राह आसान नहीं है.
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