कार्लसन ने शुरुआत की जरा हटके
दो बाजियों में काले मोहरों के साथ खेलने के बाद अब आनंद विश्वनाथन आठवीं बाजी सफेद मोहरों के साथ खेल रहे थे. इसके बाद एक बार फिर से बाजी की शुरुआत उन्होंने ठीक वैसे ही की जैसे तीसरी बाजी में की थी. गौरतलब है कि इस तीसरी बाजी में भी उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा था. हालांकि कार्लसन ने सैद्वांतिक तरीका अपनाने के बजाए शुरुआत जरा हटकर की.
कार्लसन ने शुरू से दिखाई तेजी
नार्वे के इस खिलाड़ी ने शुरू से ही चालों में तेजी दिखाई. इतना ही नहीं लगातार मोहरों की अदला-बदली करके यह साफ कर दिया कि वह बाजी को ड्रॉ करना ही चाहते हैं. इसके साथ ही कार्लसन अब एक अंक की बढ़त पर पहुंच गए हैं. जानकारों का कहना है कि काले मोहरों से खेलने के कारण कार्लसन का ऐसा करना स्वभाविक भी था. वहीं दूसरी ओर आनंद के हाथों से एक बार फिर से जीत फिसल गई.
38वीं चाल पर दोनों ने की घोड़ों की अदला-बदली
विश्वनाथन आनंद ने जीत को लेकर कोशिश भी बहुत की, लेकिन जब 38वीं चाल पर पहुंचकर जब दोनों खिलाड़ियों ने घोडों की अदला-बदली कर ली, तो ऐसे में बाजी का ड्रॉ होना तो लगभग तय हो ही गया था. इसके बाद जब दोनों खिलाड़ी आपस में अंक बांटने पर सहमत हुए तो बोर्ड पर दोनों के एक-एक ऊंट और चार-चार प्यादे बचे हुए थे. वहीं इससे पहले आनंद ने बीते दिन देर रात तक चली सातवीं बाजी में बेहतरीन डिफेंस का नमूना प्रस्तुत किया था. सफेद मोहरों से खेलते हुए कार्लसन ने बर्लिन डिफेंस को अपनाया. हालांकि इसके संकेत पहले भी मिल चुका था कि आनंद को शुरुआत में दबाव बनाने से रोकने के लिये कार्लसन ने इस पर बहुत मेहनत की है.
बीती चालों पर एक नजर
कुछ समय के लिये विश्वनाथन आनंद ने अपने प्रतिद्वंदी पर दबाव बनाया, लेकिन कार्लसन ने जल्द ही अपनी जीत की ओर वापसी कर ली. आखिर में पहुंचते-पहुंचते मैच का नतीजा लगभग तय लगने लगा था और 122 चालों के बाद यह ड्रॉ पर खत्म हुआ. विश्व चैंपियनशिप में अब तक सबसे लंबी बाजी अनातोली कारपोव और विक्टर कोर्चनोई के बीच 1978 में 124 चालों तक खिंची थी.
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