अमरीका में गोलीबारी की बढ़ती घटनाओं के बीच जहां बंदूकों को नियंत्रित करने की बातें उठ रही हैं, वहीं स्विस बंदूक संस्कृति को अनूठा माना जाता है और वहां इसके लिए अमरीका से कहीं ज्यादा कड़े कानून हैं.
जिनेवा स्थित स्मॉल आर्म्स सर्वे संगठन का कहना है कि अमरीका में प्रति सौ आम लोगों पर 89 बंदूकें हैं जबकि स्विट्जरलैंड इस मामले में तीसरे स्थान पर आता है जहाँ लगभग अस्सी लाख की कुल जनसंख्या में 34 लाख बंदूकें पाई जाती हैं. इस रैंकिंग में दूसरा स्थान यमन को प्राप्त है जहां प्रति 100 व्यक्तियों पर 54.8 बंदूकें हैं.
सेना ने दी बंदूकें
लक्ष्य पर निशाना साधना यानी टारगेट शूटिंग स्विट्जरलैंड में एक लोकप्रिय खेल है, लेकिन वहां जो बंदूकें लोगों के पास हैं वो सेना की दी हुई हैं. स्विट्जरलैंड में 18 से 34 वर्ष के सभी स्वस्थ पुरूषों को अनिवार्य रूप से सैन्य सेवा देनी होती है और इनमें से सभी को घर पर रखने के लिए राइफल या पिस्तौल जारी की जाती है.
इनमें से बहुत से पूर्व सैनिकों ने सेना छोड़ने के बाद भी अपनी बंदूकें नहीं लौटाई जिसकी वजह से वहां इतने सारे घरों में बंदूकें हैं. 2006 में हुई गोलीबारी में स्कीइंग चैंपियन कॉरिन रे बेले और उनके भाई की हत्या कर दी गई. ये गोलीबारी कॉरिन के पति ने की और उसके बाद अपनी भी जान दे दी.
इस घटना के बाद स्विट्जरलैंड में बंदूकों से जुड़े कानूनों को सख्त कर दिया गया. हालांकि पूर्व सैनिक अब भी हथियार खरीद सकते हैं, लेकिन इसके लिए ये बताना होगा कि उन्हें इसकी जरूरत क्यों है.
आत्मरक्षा और देश सेवा
मथियास सेना में काम करते हैं और अपनी पीएचडी भी कर रहे हैं. वो कहते हैं, “सेना के निर्देशानुसार मैं बंदूक और उसकी नाल को अलग रखता हूं. उसकी नाल को मैंने तहखाने में रखा है ताकि अगर कोई मेरे घर में घुस कर बंदूक ले भी ले तो वो उसके किसी काम की नहीं होगी.”
वो बताते हैं, “अब हमें गोलियां नहीं मिलती हैं. सभी तरह का गोला बारूद केंद्रीय शस्त्रागार में रखा जाता है.” ये प्रावधान 2007 में किया गया था.
मथियास कहते हैं कि उनके पास गोलियां हों भी तो वो बंदूक का इस्तेमाल किसी हमलावर के खिलाफ नहीं कर सकते हैं. वो बताते हैं, “ये बंदूक मेरी या मेरे परिवार की रक्षा के लिए नहीं दी गई है. ये बंदूक मेरे देश ने मुझे देश की सेवा के लिए दी है और इसकी देखभाल करना मेरे लिए गर्व की बात है.”
स्विट्जरलैंड में जहां बंदूक देश सेवा के लिए दी जाती है, वहीं अमरीका में ये आत्मरक्षा के लिए होती है. इसके बावजूद स्विट्जरलैंड में गोलीबारी कांड हुए हैं. पिछले ही महीने जिनेवा से सौ किलोमीटर दूर फ्रेंच भाषी एक गांव डैलन में मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति ने स्थानीय लोगों पर गोलियां चला दी जिसमें तीन लोग मारे गए और दो घायल हो गए.
बंदूक से नफरत
ऐन इथेन भी 27 सितंबर 2001 की उस घटना को नहीं भूल पाती हैं जब त्सुग इलाके की असेंबली में वो एक बैठक का नेतृत्व कर रही थीं कि उन्होंने गोलियों की तड़ातड़ आवाजें सुनीं. स्थानीय परिषद से बैर रखने वाले एक व्यक्ति ने 14 लोगों की जान ले ली और 18 को घायल कर दिया.
ऐन इथेन को भी तीन गोलियां लगीं. एक रीढ़ में, एक जांघ में और एक पेट में. वो बताती हैं कि एक गोली लगने के बाद शिथिल हो गईं और दो अन्य गोलियों के बारे में उन्हें पता भी नहीं चला. ऐन को बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी एक किडनी और आंत का बड़ा हिस्सा निकालना पड़ा.
ऐन कहती है कि वो इस हमले से पहले भी बंदूकों से नफरत थी. यहां तक कि शादी के बाद उन्होंने अपने पति से कहा था कि उनके घर में बंदूक नहीं रहेगी. ऐन ने फरवरी 2011 में बंदूक रखने के खिलाफ हुए जनमतसंग्रह के समर्थन में अपना वोट दिया. लेकिन 56.3 प्रतिशत मतदाताओं ने इसे खारिज कर दिया.
वो कहती हैं, “मुझे लगता है कि स्विट्जरलैंड में हम बंदूकों को लेकर ढीलाढाला रवैया रखते हैं. मुझे निराशा हुई जब जनमतसंग्रह में बहुमत ने बंदूकों के हक में अपना फैसला दिया, वो भी खास कर ऐसे समय में जब यहां गोलीबारी की घटनाएं बढ़ रही हैं.”
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