शब्दों का चयन:

चिट्ठी लिखना भी एक कला होती थी। इसमें ऐसे शब्द होते थे कि भेजने और पढ़ने वाले एक दूसरे को महसूस करते थे। शायद तभी जब बेटे के बार्डर या बेटी के ससुराल से चिट्टी भेजने पर लोग भावुक हो जाते थे। आज ई-मेल्स में ऐसा कुछ नहीं हैं।

तो ये है चिट्ठी की खास बात,तभी लोग ई-मेल के बावजूद उसे करते याद...

शुरुआत:

इसकी पहली लाइन में अपने हाल-चाल बताने और दूसरे के पूछने का तरीका काफी अच्छा लगता था। सेवा में....यहां सब कुशल मंगल है! आशा करते हैं कि आप सब लोग भी ठीक होंगे।

इंतज़ार:

आज इंतजार शब्द तो संदेश देने के मामले में जैसे रह ही नहीं गया है। चिट्ठियों के मामले चिट्ठी भेजने से लेकर उसके पहुंचने तक का इंतजार दोनों तरफ होता था। इसके बाद उसके जवाब मिलने में भी इंतजार होता था।  

तो ये है चिट्ठी की खास बात,तभी लोग ई-मेल के बावजूद उसे करते याद...

भावनाएं:

आज कहीं भी किसी जगह बैठे हो ईमेल आया खोलकर पढ़ लिए जाते हैं। जबकि चिट्ठी हाथ में मिलती थी तो उसे खोलकर पढ़ने में अंदर से काफी अच्छा लगता था। इसमें सिर्फ शब्द नहीं भावनाएं और अपनापन होता था।

चिट्ठियों की किताब:

ई-मेल बॉक्स में अक्सर संदेश ज्यादा आ जाने पर डिलीट किया जाता है। जब कि चिट्ठी को लोग सहेज कर अपनी दराज में रखते थे। कई बार तो लोग चिट्ठियों से एक पूरी किताब सी बना डालते थे।

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