ऐसा महसूस करने वाले आप अकेले नहीं हैं। आम तौर पर सितम्बर महीने में अधिकांश लोगों को ऐसा ही लगने लगता है और विशेषज्ञों के अनुसार, शरद आते-आते ये एहसास और गहरा हो जाता है।

ये मौसम से जुड़ी हुई मानसिक हालत होती है जिसे 'सेप्टेंबर ब्लूज़' कहते हैं यानी उदासी भरा मौसम।

इस महीने में दिन पहले के मुक़ाबले छोटा होना होने लगता है और शरद ऋतु आती है।

दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध यानी पश्चिमी देशों में तो इस मौसम की उदासी और गहरी हो जाती है। लेकिन इससे कैसे बचें, ये पता हो तो आप बेफ़िक्र हो इस मौसम का भी लुत्फ़ उठा सकते हैं।

 

एसएडी बीमारी क्या है?
मौसम के बदलने के प्रति संवेदनशील लंदन में रहने वाले 25 वर्ष के कैल स्ट्रोड सीज़नल अफ़ेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) से पीड़ित हैं। उनके मुताबिक, "हर साल मुझे लगता है कि ब्रिटेन में ये मेरी आख़िरी सर्दी है।"

एसएडी ऐसी बीमारी है जिसमें लोग शरद और सर्दी के मौसम में अवसादग्रस्त हो जाते हैं।

वो कहते हैं, "जब दिन थोड़ा धुंधलका होने लगता है, ठंड बढ़ जाती है, मुझे उदासी घेरने लग जाती है, लगता है शरीर में दम नही बचा है।"

ब्रिटेन की सरकारी स्वास्थ्य सेवा एनएचएस के अनुसार, ब्रिटेन में इस बीमारी से 15 में से एक व्यक्ति पीड़ित है।

इसका सबसे बुरा असर ये हो सकता है कि आप शरद और सर्दी के महीनों में सामान्य काम के लायक भी नहीं रहते।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काम करने वाली एक संस्था एनेक्सिटी यूके के अनुसार, उसे अवसाद संबंधी फ़ोन सितंबर में बहुत आते हैं।

कैल स्ट्रोड को अपनी इस बीमारी को छह साल पहले तब पता चला जब वो अमरीका में पढ़ने गए हुए थे।

वो कहते हैं, "मैं सैन डियागो में था और क्रिसमस पर घर गया था, तभी मुझे अचानक अवसाद महसूस होने लगा और लगा कि कुछ भी करने की मेरे अंदर क्षमता ही नहीं बची है।"


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क्यों होता है अवसाद
हालांकि ये उनके लिए एक खुशी का वक्त था क्योंकि वो अपने परिवार से मिल रहे थे।

ऐसा माना जाता है कि इस बीमारी में सूरज की रोशनी मस्तिष्क के उस हिस्से पर असर डालती है जो सोने और ऊर्जा स्तर का नियमन करती है।

इससे छुटकारा पाने के लिए कैल हर दिन 45 मिनट एक लाइट बॉक्स के सामने गुज़ारने लगे।

वो बताते हैं कि इससे उन्हें कुछ हद तक फायदा पहुंचा।

लेकिन ठंड आते आते ये स्थिति और विकट हो सकती है। दिन बिल्कुल ही छोटे हो जाते हैं, मौसम ख़राब हो जाता है और क्रिसमस की छुट्टियां भी दूर होती हैं।

एनेक्सिटी यूके से जुड़ी निकी लिडबेटर कहती हैं, "ऐसा हर साल होता है और लगता है कि गर्मियों में लोगों का मूड अच्छा रहता है।"

उनके अनुसार, सूरज की रोशनी जब पर्याप्त होती है तो माहौल आरामदायक होता है। शरद में ये एहसास भर जाता है कि गर्मी चली गई। लगता है मानो कुछ खो गया हो।

वो कहती हैं, "सितंबर में लगता है कि ये समय थोड़ा गंभीर हो जाने का है और इससे एक किस्म की बेचैनी भी हो सकती है।"

सितंबर में उदासी या डिप्रेशन बढ़ क्यों जाता है?


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कैसे बचें?

मनोचिकित्सक डॉ शेरिलिन थॉम्पसन कहती हैं, "लंबे समय के आरामदायक माहौल के बाद काम का और व्यस्त होने का समय आता है, लेकिन यह आदतों और सेहतमंद रूटीन में आने का भी समय होता है।"

उनके अनुसार, "आपके लिए बहुत मुसीबत हो सकती है अगर आप रोज़मर्रा के काम में फंस गए हैं और कोई विकल्प नहीं बचा है।"

उनकी सलाह है कि गर्मियों के रूटीन या आदत को छोड़कर सितंबर में नई चुनौतियों का सामना करने की तैयारी करनी चाहिए।

वो कहती हैं, "सेहत से संबंधित आदतों को बनाए रखें और मिलने जुलने की आदत बनाए रखें, ये आपको बचाए रखेगा।"

मेंटल हेल्थ फ़ाउंडेशन से जुड़ीं क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ कैमिला रोसन के अनुसार, गर्मी की लंबी छुट्टियों के बाद ये एक मौका भी है कि आप दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलें। वो पहले से ही योजना बनाने का सुझाव भी देती हैं।

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