‘जंग’ कहता है कि पाकिस्तानी सीनेट में दिए गए बयान में अज़ीज़ ने अमरीका से रिश्तों में आई तल्ख़ी की वजह, अमरीका में भारतीय लॉबी की ‘नकारात्मक सरगर्मियों’ को बताया। अज़ीज़ ने कहा कि इसी वजह से हक्कानी नेटवर्क, परमाणु प्रतिष्ठानों और ओसामा बिन लादेन को पकड़वाने में मदद करने वाले डॉक्टर शकील अफ़रीदी के मुद्दे पर अमरीका से रिश्ते तनाव भरे हैं।
अख़बार लिखता है कि वैसे भी पाकिस्तान में लोग मानते हैं कि अमरीका मुश्किल समय में पाकिस्तान का साथ छोड़ देता है और ऐसा भारतीय लॉबी की वजह से होता है जो हमेशा पाकिस्तान के हितों को नुक़सान पहुंचाने के लिए सक्रिय रहती है। अख़बार कहता है कि जब पाकिस्तान को एफ़-16 लड़ाकू विमान देने की बात आई, तो भारतीय लॉबी ने शोर मचा दिया कि उन्हें भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है, जबकि वो दहशतगर्दी से लड़ने के लिए दिए जा रहे थे। रोज़नामा दुनिया लिखता है कि दरअसल अमरीका, पाकिस्तान के साथ रिश्तों को भारतीय नज़रिए से देखता है।
अख़बार की राय है कि भारत, क्षेत्र में अपनी चौधराहट क़ायम करने के लिए पाकिस्तान को दबाव में रखना चाहता है और इसलिए उसने काबुल से लेकर वॉशिंगटन तक, सब जगह प्रभाव बना रखा है। अख़बार के मुताबिक़ इसी असर से पाकिस्तान के साथ इन देशों के रिश्तों पर असर होता है।
वहीं रोज़नामा ‘पाकिस्तान’ ने अज़ीज़ के बयान के इस हिस्से को तवज्जो दी है कि अगर अमरीका की तरफ़ से भारत को हथियारों की सप्लाई होती रही, तो फिर आधुनिक हथियार हासिल करना पाकिस्तान की भी मजबूरी हो जाएगी। अज़ीज़ ने ये भी कहा कि भारतीय लॉबी एफ़-16 की पूरी डील को ख़त्म करना चाहती थी, लेकिन अमरीका, पाकिस्तान को ये विमान देना चाहता है और इस पर बातचीत जारी है।
अख़बार कहता है कि पाकिस्तान को भारत के ख़िलाफ़ एफ़-16 विमान इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान ने अपने बचाव में जो मिसाइल सिस्टम तैनात किया है और जो समय समय पर अपडेट होता है, भारत से मुक़ाबले के लिए वही काफ़ी हैं। वहीं औसाफ़ अख़बार ने पनाना लीक्स को लेकर विपक्ष के चौतरफ़ा हमले झेल रहे, प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के बारे में लिखा है- विपक्ष पर बरस पड़े प्रधानमंत्री।
अख़बार के मुताबिक़ नवाज़ शरीफ़ ने कहा- "विपक्ष का एजेंडा भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि मेरा पीछा करना है और मुझे जो बात संसद में करनी है, संसद में करूंगा और जो न्यायिक जांच आयोग के सामने करनी है, वहीं करूंगा।" अख़बार कहता है कि विपक्ष को सरकार की आलोचना का पूरा हक़ है, लेकिन यहां मामला विदेशों में छिपा कर रखी गई दौलत का है।
अख़बार के मुताबिक़ जिन लोगों के नाम इस सिलसिले में सामने आए हैं, वो आयोग के सामने आएं और अपनी संपत्ति को वैध साबित करें और वतन में वापस लाकर तरक्की के कामों में लगाएं। वहीं ‘जरासत’ का संपादकीय है, 'देश क़र्ज़े में दबा है और हुक्मरान मस्त हैं'। अख़बार लिखता है कि पाकिस्तान के हुक्मरान ख़ुश हो रहे हैं कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 51 करोड़ डॉलर की क़र्जे की किस्त मंज़ूर करा ली है, लेकिन इसकी क़ीमत क्या है? अख़बार के मुताबिक़, ये क़ीमत दो वाक्यों में वित्त मंत्री इसहाक़ डार ने बता दी है, पहली आईएमएफ़ की शर्तें पूरी कर दीं और दूसरी घाटे में चलने वाले विभागों का ज़ल्द निजीकरण करेंगे।
अख़बार के मुताबिक़ जो शर्तें पूरी कर दीं, वो क्या हैं किसी को नहीं पता और जब पता चलेगा तो जनता उसकी क़ीमत अदा कर चुकी होगी। रुख़ भारत का करें तो ‘हिंदुस्तान एक्सप्रेस’ ने अपने संपादकीय में उत्तराखंड का ज़िक्र किया है, जहां लंबी रस्साकशी के बाद हरीश रावत सरकार को बहाल कर दिया गया है। अख़बार लिखता है कि भारतीय जनता पार्टी ने सोचा था कि कांग्रेस के नौ बाग़ी विधायकों के दम पर वो राज्य में सत्ता हासिल कर लेगी, लेकिन स्पीकर ने उसके इरादों को नाकाम कर दिया।
अख़बार के मुताबिक़ सियासी मैदान में लड़ी जाने वाली जंग, अदालतों में लड़ी गई और अब इसपर ना कहने की कोई वजह नहीं है कि उत्तराखंड को लेकर केंद्र सरकार का नज़रिया असंवैधानिक था।
वहीं रोज़नामा ‘खबरें’ ने लंदन में पाकिस्तान मूल के सादिक़ ख़ान के मेयर चुने जाने पर संपादकीय लिखा है। अख़बार लिखता है कि उनकी जीत साबित करती है कि लंदन अब भी जेंटलमैन की सरज़मीन है। अख़बार की राय है कि ये जीत कुछ गढ़ी गई धारणाओं को ग़लत साबित करती है, ख़ास कर तब, जब दुनिया भर में मुसलमानों को दहशतगर्द बनाकर पेश करने की कोशिश की गई है।
International News inextlive from World News Desk
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