दोनों देशों के बीच 1,700 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है जिसके दोनों ओर रहने वाले लोग ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक रूप से बहुत ही घुले-मिले हैं।
लेकिन इतिहास बताता है कि रिश्ते हमेशा मधुर नहीं रहते हैं।
समय-समय पर इन दोनों देशों के रिश्तों में भी तनाव आया है, और कभी-कभी तो हालात यहां तक पहुंचे हैं कि उनसे उबरने में ख़ासा समय लगा।
नेपाल में पिछले दिनों नया संविधान लागू होने के बाद भी हालात कुछ-कुछ ऐसे ही पैदा हो रहे हैं, ख़ासकर इस संविधान को लेकर भारत की 'ठंडी प्रतिक्रिया' के बाद।
संविधान पर 'तनातनी'
बहुत से नेपाली दोनों देशों के बीच जल संधियों पर भी सवाल उठाते हैं
भारत खुले तौर पर दक्षिणी नेपाल की उन पार्टियों का समर्थन कर रहा है जो संविधान का विरोध कर रही हैं जबकि नेपाल की बड़ी पार्टियों ने भारत पर देश की आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाया है।
नेपाल की छोटी सी अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह से, भारत से आने वाले सामान की आपूर्ति पर टिकी है। बात नमक की हो या कारों, पेट्रो उत्पादों की या अस्पताल के आपात उपकरणों की आपूर्ति की, सब कुछ भारत से ही आता है।
नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने और उसका समर्थन करने का श्रेय भी बहुत हद तक भारत को ही जाता है।
इतने सघन आपसी तालमेल के बावजूद भारत को लेकर कुछ ऐसी बातें जो नेपाली लोगों को क़तई पसंद नहीं आती हैं।
एक नज़र इन्हीं बातों पर.
1.‘बिग ब्रदर’ वाला नज़रिया
बहुत से नेपाली लोगों को लगता है कि नेपाल के मामले में भारत 'बड़े भाई वाला दबदबा' दिखाता है।
भारत पर आरोप लगते हैं कि वो कूटनीतिक ताक़त का इस्तेमाल नेपाल में अपने हितों को साधने के लिए करता है।
हालिया 'नाकेबंदी' प्रकरण को भी बहुत से लोग इसी का एक उदाहरण मानते हैं।
2.'असमान' संधियां
ऐसी संधियों की एक लंबी सूची है जिन्हें नेपाली पक्ष असमान मानता है।
1950 की शांति और मित्रता संधि से लेकर इस सूची में गंडक, कोशी और महाकाली जल संधियां शामिल हैं। बहुत से लोगों को लगता है कि नेपाल को उसके हिस्से का पानी नहीं दिया जा रहा है।
हाल में नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारत विरोधी प्रदर्शन हुए
बहुत से लोग इस बात से भी ख़फ़ा रहते हैं कि नेपाली राजनीतिक नेतृत्व ‘भारत की शर्तों को सामने आसानी से झुक जाता है’।
3. संप्रभुता के लिए ‘सम्मान नहीं’
बहुत से नेपाली लोग सोचते हैं कि नेपाल किसी भी अहम मुद्दे पर भारत से सलाह-मशविरा ज़रूर करता है, भले ही वो घरेलू मुद्दा क्यों न हो।
नेपाल के नए संविधान को वहाँ के लगभग 90 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों ने अपना समर्थन दिया है।
बहुत से नेपाली लोग भारत की 'आपत्ति' से नाराज़ हैं।
4. सीमा पर प्रवेश चौकियों पर बदसलूकी
काम की तलाश में भारत जाने वाले बहुत से नेपाली कामगार शिकायत करते हैं कि प्रवेश चौकियों पर भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवान उनसे ठीक बर्ताव नहीं करते हैं।
पिछले साल अपने नेपाल दौरे में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थिति में सुधार का वादा किया था, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
5. सीमावर्ती इलाकों का ‘अतिक्रमण’
नेपाल की ज़मीन के अतिक्रमण से जुड़ी शिकायतें भी दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव का कारण बनती हैं।
हालांकि ये समस्या कुछ ही सीमावर्ती इलाक़ों तक सीमित है, लेकिन इससे दोतरफ़ा रिश्तों में समस्याएं तो आ ही जाती हैं।
मिसाल के तौर पर कालापानी और लिपुलेक के इलाक़ों में नेपाली पक्ष का कहना है कि भारत ने (चीन से लगने वाले) अहम रणनीतिक बिंदुओं का अतिक्रमण कर दिया है, जो उसके मुताबिक़ नेपाली क्षेत्र का हिस्सा हैं।
6. 'असंवेदनशील' भारतीय मीडिया
भारतीय मीडिया और ख़ास कर टीवी न्यूज़ चैनल को नेपाल में सनसनी और अतिराष्ट्रवाद फैलाने का औज़ार माना जाता है।
बहुत से लोग मानते हैं कि भारत मीडिया को पड़ोसी देशों की चिंताओं और उनसे जुडे तथ्यों की कोई परवाह नहीं है और वो छोटे पड़ोसी देशों के प्रति असंवेदनशील है।
नेपाल में हाल में आए भूकंप के बाद जब भारतीय मीडिया वहां कवरेज के लिए पहुंचा तो ट्विटर पर #GohomeIndianmedia ट्रेंड ख़ूब चर्चा में रहा।
7. दोस्ती-दुश्मनी वाला रिश्ता
नेपाली लोगों को भारत की बहुत सारी चीज़ें पसंद हैं।
भारत में उनके बहुत सारे तीर्थस्थल हैं। इसके अलावा भारत की फ़िल्में, खाना समेत कई ऐसी चीजें हैं जिनके बिना नेपालियों का गुज़ारा मुश्किल है।
लेकिन अगर नेपाल के बारे में अगर कोई नकारात्मक बात कही जाती है तो वो उन्हें चुभती है।
वर्ष 2000 में बॉलीवुड अभिनेता रितिक रोशन के एक बयान के बाद नेपाल के कुछ हिस्सों में दंगे भड़क गए थे। हालांकि रितिक रोशन ने ऐसा कोई बयान देने से इनकार किया कि उन्हें नेपाल से नफ़रत है।
8. नेपाल पर ‘चीन का असर’
बहुत से लोग मानते हैं कि नेपाल में 'बढ़ते हुए चीन के असर' को लेकर भारत की चिंताओं को ज़रूरत से ज़्यादा तूल दिया जाता है।
ज़्यादातर नेपाली लोगों का मानना है कि कोई भी देश नेपाल के इतने क़रीब नहीं हो सकता जितना भारत है क्योंकि उनके बीच बहुत सी समानताएं हैं।
लेकिन वो इस बात से ख़ुश नहीं हैं कि भारत नेपाल जैसे छोटे देश के मुश्किल हालात को नहीं समझ रहा है। जबकि नेपाल दो बड़े देशों के बीच संतुलन साधने में जुटा है।
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