जब संत झूलेलाल को कैद करने पहुंची सेना
सात दिन तक वरुण देव की पूजा करने के बाद वरुण देवता मछली पर सवार होकर संत झूलेलाल के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि वह शीघ्र ही अत्याचारियों का नाश करने के लिए नसीरपुर शहर में रतन राय के घर जन्म लेंगे। कुछ समय बाद संत झूलेलाल ने माता देवकी की कोख से जन्म लिया। घर वालों ने उस बालक का नाम उदयचंद्र रखा। उनकी माता ने उन्हें झूलेलाल नाम से उसे पुकारा तब से उन्हें झूलेलाल कहा जाने लगा। जब संत झूलेलाल के बारे में बादशाह मिरख को खबर लगी तो उसने उन्हें अगवा करने के लिए अपने वजीर एवं सेना को भेजा। वजीर सेना समेत बादशाह के पास लौट आए। उन्होंने मिरख शाह से कहा कि वह कोई साधारण नहीं है बल्कि एक चमत्कारी बालक हैं।
संत झूलेलाल ने ऐसे तोड़ा बदाशाह का अहंकार
बादशाह ने अहंकार में किसी की नहीं सुनी और एक बड़ी सेना संत झूलेलाल को पकडऩे के लिए भेजी दी। संत झूलेलाल ने बादशाह का घमंड चूर करने के लिए उसके महल पर अपनी दिव्य शक्ति से कहर बरपा दिया। देखते ही देखते महल धू-धू कर जलने लगा। बादशाह यह देखकर इतना घबराया कि वह दल-बल समेत संत झूलेलाल के चरणों में आ गिरा। चारों तरफ चीख-पुकार सुनकर संत झूलेलाल ने अग्नि देव और वायुदेव को शांत कर दिया। संत झूलेलाल से बादशाह मिरखशाह इतना प्रभावित हुआ कि उसने उनके जन्म स्थल पर एक भव्य-मंदिर बनवाया। उसका नाम जिंदा पीर रखा। तभी से यह स्थान हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए पवित्र तीर्थस्थल बन गया जहां आज भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने जाते हैं।
चेटीचंड पर्व से शुरु होता है नववर्ष
संत झूलेलाल ने अपने भक्तों से कहा कि मेरा वास्तविक रूप जल एवं ज्योति ही है। इसके बिना संसार जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने समभाव से सभी को गले लगाया तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देते हुए दरियाही पंथ की स्थापना की। सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का था। सिंधी समुदाय चेटीचंड पर्व से ही नववर्ष प्रारम्भ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं। इस दिन सूखोसेसी प्रसाद वितरित करते हैं। चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरुष तालाब या नदी के किनारे दीपक जला कर जल देवता की पूजा-अर्चना करते हैं।
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