दो तरह के होते हैं कपड़े
दरअसल ऐसा होता है कपड़ों के खास तरह के फाइबर के कारण। यहां सबसे पहले आपका ये जानना जरूरी होगा कि अमूमन कपड़ों का फाइबर दो तरह का होता है। पहला सिंथैटिक और दूसरा ऑर्गेनिक। सिंथेटिक फाइबर, ऑर्गेनिक फाइबर से बिल्कुल अलग होता है। सिंथेटिक फाइबर इंसानों के बनाए पॉलिमर का होता है। इनमें पॉलिस्टर, रेयान जैसे कपड़े आते हैं। इन कपड़ों का फाइबर पेट्रोलियम बेस्ड कैमिकल का बना होता है। ऐसे में ये सिंथेटक फाइबर धोने पर श्रिंक नहीं होते। इसका एक कारण ये भी है वॉशिंग मशीन इन पेट्रोलियम बेस्ड फाइबर्स के लिए गर्म नहीं होती। इस वजह से इसके मॉल्यूकुलर स्ट्रकचर पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके अलावा इनके न सिकुड़ने का एक और कारण ये भी होता है कि इनका फाइबर नैचुरली एकदम सीधा-सीधा होता है। ये अपने आप ही बुनने के लिए तैयार होता है। इसको बुनने लायक बनाना नहीं पड़ता। ऐसे में धोने के बाद भी इसका फैब्रिक अपने प्राकृतिक रूप में सीधा ही बना रहता है। वो सिकुड़ता नहीं।
दूसरे होते हैं ऑर्गेनिक फाइबर
इन फाइबर की बनावट प्राकृतिक तौर पर सीधी नहीं होती। ये आमतौर पर इतने मुड़े हुए होते हैं कि इनको बुनने लायक बनाना पड़ता है। मैन्यूफैक्चरर्स को इसको सीधा करके इससे बुनने के लिए धागा निकालना पड़ता है। ऐसा फाइबर धोने पर एक बार पानी के संपर्क में आने से वापस अपने मुड़े हुए रूप में आ जाता है। कुल मिलाकर आखिर में वो सिकुड़ जाता है। अब वॉशिंग मशीन में हीट के साथ-साथ मैकेनिकल और कैमिकल एनर्जी भी होती है। इन सबके मिलने से ऑर्गेनिक क्लोथ जल्द ही सिकुड़ जाता है। वैज्ञानिक इसको श्रिंकेज का नाम देते हैं।
आइए अब बात करते हैं कपड़ों के सिकुड़ने के तीन तरीकों की। दरअसल तीन तरह से आपके कपड़े सिकुड़ते हैं। क्या हैं वो तीन तरीके, आइए जानें।
रिलेक्सेशन
कपड़ों के सिकुड़ने का पहला तरीका होता है उनका रिलैक्स होना। इस तरीके में कॉटन के कपड़े शामिल होते हैं। दरअसल कॉटन के कपड़ों को मार्केट में उतारने से पहले उनकी रफनेस को खत्म करने के लिए उनपर स्टार्च किया जाता है। अब जब इन कपड़ों को पानी में या वॉशिंग मशीन में धोने के लिए डालते हैं तो इनके धागों पर से स्टार्च की परत हट जाती है। स्टार्च की ये परत हटने से कपड़ा बिना स्टार्च का अपने नैचुरल फॉर्म में आ जाता है। अब ये सिकुड़ जाता है या यूं कहें कि पूरी तरह से रिलैक्स मोड में आ जाता है।
फेल्टिंग
कपड़े सिकुड़ने का ये तरीका ऊनी कपड़ों पर लागू होता है। दरअसल ऊनी कपड़ों के धागे काफी सॉफ्ट होते हैं। इनके आपस में उलझने का डर रहता है। ये डर वास्तविक रूप में सामने आ जाता है तब जब ऊनी कपड़ों को वॉशिंग मशीन में डालते हैं। मशीन में पानी में बार-बार घूमन से उसके रेशे ऊपर-नीचे होकर आपस में उलझ जाते हैं। इस वजह से ये अपने बीच का स्पेस खो देते हैं और सिकुड़ जाते हैं। सिर्फ यही नहीं, उसके बाद ये उतने मुलायम भी नहीं रह जाते, जितने इनको धोने से पहले होते हैं।
कॉनसोलिडेशन
इस तरह की सिकुड़न मशीनी कारण से आती है। कपड़े पर जब मशीन चलने के कारण उसपर तनाव पड़ता है तो वो खुद ब खुद सिकुड़ जाते हैं। एक तरह से देखा जाए तो मशीन के अंदर कपड़ों को एकसाथ पीटा ही जाता है। इस पिटाई के कारण वो आपस में उलझ कर सिकुड़ जाते हैं।
कपड़ों का सिकुड़ना उनके फाइबर पर भी निर्भर करता है
रिसर्चर ऐसा मानते हैं कि अलग-अलग फाइबर्स पर श्रिंकेज का अलग असर पड़ता है। जैसे कॉटन का इस्तेमाल दो अलग-अलग तरह के कपड़ों को बनाने में किया जाता है। एक डेनिम और दूसरा गिंघम। इनमें से डेनिम के कपड़ों के तारों को काफी सख्ती के साथ बुना जाता है। ये इतनी सख्ती के साथ बुने जाते हैं कि इनके बीच सिकुडने की जगह ही नहीं होती। वहीं गिंघम फैब्रिक की बुनाई में उनके रेशों के बीच काफी जगह होती है। इनको सिकुड़ने के लिए पूरी-पूरी जगह मिल जाती है।
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