पितृपक्ष में शुभ कार्य जैसे— विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, मकान—वाहन की खरीद आदि वर्जित हैं। इसका लोक पक्ष एवं कर्मकाण्ड से संबंध है।
वर्ष के 12 माह, 24पक्ष में पन्द्रह दिन ऋतु परिवर्तन के कारण शुद्ध आचरण से स्वयं को एकाग्र करने की एक सशक्त वैज्ञानिक प्रक्रिया का माध्यम है-श्रद्धा, विश्वास। इसी श्रद्धा का ही दूसरा नाम श्राद्ध है।
विवाह आदि मांगलिक कार्य से पूर्व जो श्राद्ध कर्म होता है उसे काम्य श्राद्ध कहते हैं। यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख प्राप्त होता है-नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि एवं पारनव।
पितरों के निमित्त पिण्ड दान करते हुए, नदी के किनारे जो श्राद्ध कर्म होता है, वह विभिन्न योनियों में विचरण करती कुल-वंश की अव्यक्त आत्माओं की तृप्ति का कार्य है। अतः इस कर्म अवधि में शुभ कार्य सर्वथा वर्जित कहे गए हैं।
— ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट
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'खंडित हुआ पिंडदान तो भूलोक पर भटकेगी पूर्वजों की आत्मा'
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