खबार के मुताबिक 29 वर्षीय एडवर्ड स्नोडेन सीआईए के पूर्व तकनीकी सहायक हैं और फिलहाल रक्षा विभाग के एक ठेकेदार बूज़ एलेन हैमिल्टन के कर्मचारी हैं. हाल में सामने आई जानकारियों के अनुसार अमरीकी एजेंसियों ने लाखों फ़ोन रिकॉर्ड जुटाए और इंटरनेट पर लोगों के बीच हो रही चर्चाओं की निगरानी की.
गार्डियन के अनुसार स्नोडेन की पहचान उन्हीं के अनुरोध पर सार्वजनिक की जा रही है.हाल में सामने आई जानकारियों के अनुसार अमरीकी एजेंसियों ने लाखों फ़ोन रिकॉर्ड जुटाए और इंटरनेट पर लोगों के बीच हो रही चर्चाओं की निगरानी की.
गार्डियन के अनुसार स्नोडेन की पहचान उन्हीं के अनुरोध पर सार्वजनिक की जा रही है. अखबार ने स्नोडेन के हवाले से लिखा है कि वो बीस मई को हॉन्ग कॉन्ग चले गए और खुद को एक होटल में बंद कर लिया.
स्नोडेन ने अखबार को बताया, “मैं उस समाज में नहीं रहना चाहता जहां ऐसा काम किया गया... मैं उस जगह नहीं रहना चाहता जहां मेरे सारे काम और मेरी बातें रिकॉर्ड की जाती हों.”
स्नोडेन ने गार्डियन अखबार के ग्लेन ग्रीनवैल्ड और लॉरा पोइट्रास को बताया, “कोई भी विश्लेषक किसी भी समय किसी को भी निशाना बना सकता है. हालांकि सभी विश्लेषकों के पास ये क्षमता नहीं है लेकिन मैं अपनी डेस्क पर बैठकर किसी के भी निजी वार्तालाप को जान सकता हूं.”
ब्रितानी अखबार गार्डियन ने खबर प्रकाशित की थी कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी बड़े पैमाने पर क्लिक करें फोन और इंटरनेट की निगरानी कर रही है. अखबार के अनुसार अमेरिकी खुफिया एजेंसी इस कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के निजी वीडियो, तस्वीरें और ईमेल तक निकाल लेती है ताकि विशिष्ट लोगों पर नजर रखी जा सके.
बाद में अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के निदेशक क्लिक करें जेम्स क्लैपर ने स्वीकार किया था कि सरकार इंटरनेट कंपनियों से उपभोक्ताओं की बातचीत के रिकॉर्ड प्राप्त करती है लेकिन उन्होंने कहा कि सूचना प्राप्त करने की नीति का लक्ष्य केवल गैर अमेरिकी लोगों के बारे में जानकारी लेना है.
अभिव्यक्ति की आज़ादी
गार्डियन अखबार के अनुसार जब एडवर्ड से पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है, उनके साथ अब क्या होगा तो उनका जवाब था 'कुछ भी अच्छा नहीं.’ एडवर्ड ने कहा कि वह हॉन्ग कॉन्ग इसलिए गए क्योंकि वहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी है.
गौरतलब है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस कार्यक्रम का बचाव करते हुए कहा था कि उनके प्रशासन ने सुरक्षा और गोपनीयता के बीच सही संतुलन बनाए रखा है.
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि एनएसए कार्यक्रम को मंजूरी अमरीकी संसद ने दी और संसद की खुफिया समितियां और गुप्त जासूसी की अदालतें इस कार्यक्रम की लगातार निगरानी करते हैं.
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि जब उन्होंने राष्ट्रपति की जिम्मेदारी उठाई थी तब दोनों कार्यक्रमों के बारे में काफी संदेह होते थे लेकिन उनकी जाँच और अधिक सुरक्षा के बाद उन्होंने फैसला किया कि यह स्वीकार्य है.
गौरतलब है कि अमरीकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर दी थी कि अमरीकी खुफिया एजेंसियां इंटरनेट की नौ बड़ी कंपनियों के सर्वर से उपयोगकर्ताओं के बारे में सीधे जानकारी प्राप्त कर रही हैं. इन कंपनियों में फेसबुक, यूट्यूब, स्काइप, एप्पल, पॉल टॉक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू भी शामिल हैं.
कंपनियों का इंकार
हालांकि इन सभी कंपनियों ने इस बात से इंकार किया था कि उन्होंने अपने सर्वर तक अमरीकी सरकार की पहुंच सुनिश्चित की थी. कहा जा रहा है कि क्लिक करें प्रिज़्म के जरिए एनएसए और एफबीआई ने ईमेल्स, वेब चैट और दूसरे संचार माध्यमों तक अपनी पहुंच बनाई. प्रिज़्म की स्थापना साल 2007 में दूसरे देशों के लोगों के बारे में गहराई से जानकारी लेने के मकसद से की गई थी.
इन खबरों के बाद वर्ल्डवाइड वेब यानी डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू के निर्माता सर टिम बरनर्ज़ ने प्रिज़्म कार्यक्रम पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि अमेरिकी सरकार की ओर से यह कदम बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है. उन्होंने इंटरनेट उपयोगकर्ताओं से कहा कि वह व्यक्तिगत रूप में इस मामले पर आवाज उठाएँ और विरोध करें.
दूसरी ओर फेसबुक के निर्माता मार्क ज़करबर्ग और गूगल के मालिक लैरी पेज ने अमेरिका खुफिया एजेंसी को उपभोक्ता जानकारी देने से इनकार किया था. इससे पहले एप्पल और याहू भी किसी भी सरकारी एजेंसी को अपने सर्वर तक सीधी पहुँच देने के आरोप से इनकार कर चुके हैं.
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