एक बार तुलसी महारानी तीर्थों में भ्रमण करती हुईं गंगा तट पर जा पहुंची। तभी वहां उन्होंने गणेश जी को देखा, जोकि देखने में अत्यंत आकर्षित थे। उनके मुख पर मंद-मंद मुस्कान थी, जो बेहद मनमोहक लग रही थी। उन्हें देखकर तुलसी जी उनकी तरफ आकर्षित हो गईं।
तुलसी ने किया गणपति का उपहास
गणपति जी जब वहां ध्यान में बैठे थे, तब तुलसी जी ने उन्हें लम्बोदर तथा गजमुख कह कर उनका उपहास उड़ाया। इस पर गणेश जी का ध्यान भंग हुआ और उन्होंने तुलसी जी से पूछा, "माता तुम कौन हो? कहां से आई हो?"
तुलसी का विवाह प्रस्ताव
तुलसी जी ने कहा, "प्रभु, मैं धर्मात्मज की नवयुवती कन्या हूं और पति प्राप्ति के लिए यहां तप करने के लिए आई हूं। आपने मेरा मन मोह लिया है, तो आप मेरे पति हो जाइए।"
गजानन बोले, "हे माता, विवाह करना बड़ा भयंकर होता है। विवाह अनेक दुखों का कारण है और उससे कभी भी सुख नहीं मिल सकता। केवल प्रभु भक्ति से ही सब कष्टों का निवारण हो सकता है। इसलिए अाप कोई और वर की तलाश कीजिए।"
गणेज जी ने दिया श्राप
भगवान गणेश के ऐसे वचन सुनकर तुलसी जी ने क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे डाला कि आपका विवाह अवश्य होगा। यह सुन गणपति जी ने भी उन्हें श्राप दिया कि तुम निस्संदेह असुर द्वारा ग्रस्त होने के बाद एक वृक्ष के रूप में हो जाओगी।
यह सुनकर तुलसी जी को अपने कहे हुए वचनों पर पश्चाताप हुआ। तभी उन्होंने भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति की। उनकी प्रार्थना से खुश होकर गणेश जी ने कहा, "वैसे तो सब देव आपकी आराधना करेंगे, लेकिन श्री कृष्ण के लिए आप सबसे प्रिय बन जाओगी। पृथ्वी पर सब लोग तुम्हारी पूजा-अर्चना करेंगे।
-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी
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