बात उस समय की है जब मां सती के वियोग में भगवान शिव घोर तपस्या में लीन हो गए। इधर तारकासुर नामक राक्षस ने तीनो लोक में हाहाकार मचा दिया। महादेव घोर तपस्या में लीन थे। तारकासुर से परेशान होकर इंद्र देव ब्रह्मा जी के पास गए तथा उन्हें तारकासुर के बारे में बताया। ब्रह्मा जी बोले कि मां सती पुनः पर्वत राज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लेंगी। देवी पार्वती तथा भगवान शिव के पुत्र के द्वारा ही तारकासुर का वध होगा।
पार्वती ने हिमालयराज की पुत्री के रूप में जन्म लिया। जब वे बड़ी हुईं तो उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की, जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर उनके समाने प्रकट हुए तथा उन्हें वरदान दिया।
जब शिवजी ने पावर्ती की परीक्षा लेने का फैसला किया
विवाह से पूर्व भगवान शिव ने मां पार्वती की परीक्षा लेनी चाही। अतः एक दिन जब मां पार्वती नदी के पास से गुजर रही थीं तो उन्हें किसी बालक के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। वे उस दिशा की ओर गयीं, जहां से बालक के चिल्लाने की आवाज आ रही थी, उन्होंने एक बालक को मगर के मुंह में पाया।
जब पार्वती ने मगर को दे दिए सारे पुण्य
मां पर्वती ने कहा, आप इस बालक के बदले जो भी मांगेंगे मैं आपको दूंगी परन्तु इस बालक को मुक्त कर दो। मगर मां पार्वती से बोला, मैं इस बालक को एक शर्त पर छोड़ सकता हूं। अगर आप भगवान शिव से प्राप्त वरदान का समस्त पुण्य मुझे दे दो। मां बोलीं, आप सिर्फ इस बालक को मुक्त कर दो तथा बदले में मेरे इस जन्म के ही नहीं बल्कि समस्त जन्म के पुण्य रख लें।
जैसे ही मां पार्वती ने अपने समस्त पुण्यों को मगर को दिया, मगर का समस्त शरीर तेज प्रकाश से चमकने लगा वह बहुत सुन्दर दिखाई देने लगा। मगर बोला, ‘हे देवी! एक साधारण से बालक के प्राण को बचाने के लिए आपने अपने समस्त पुण्यों का त्याग क्यों कर दिया?
मां पार्वती मगर से बोलीं की तप के द्वारा पुण्य तो मैं फिर से प्राप्त कर सकती हूं, परन्तु इस निर्दोष बालक को इस तरह मृत्यु को प्राप्त होना मैं सहन नही कर पाती।
बालक और मगर अचानक मां पार्वती के नजरों से ओझल हो गए। तब मां पर्वत की और गयी, तभी वहां महादेव उनके सामने प्रकट हो गए। भगवान शिव ने उनके पर्वत पर आने का कारण पूछा तो मां बोलीं कि एक बालक को मगर से बचाने के लिए मैंने अपने समस्त पुण्यों का दान कर दिया है, अतः मैं पुनः तपस्या कर रही हूं।
शिव जी ने खोल दिए राज
भगवान शिव मुस्कुराते हुए बोले कि मगर और बालक दोनों मैं ही था। महादेव ने कहा, मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था तथा मै तुमसे संतुष्ट हूं। फिर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनके तप के समस्त पुण्य उन्हें वापस लोटा दिए।
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