इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम शत्रुघ्न सिन्हा का रहा है जो हमेशा काफी मुखर स्वर में बीजेपी की नीतियों का ना सिर्फ विरोध करते रहे हैं बल्कि कई बार उसके विरोधी नेताओं की तारीफ भी करते रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी है और वो सारे प्रयासों के बावजूद कभी भी पार्टी की सरकारों में बड़े पद पर नियुक्त नहीं हो सके।
सुब्रमण्यन स्वामी
ऐसा ही एक नाम सुब्रमण्यन स्वामी का भी है जो समय समय पर बीजेपी की नीतियों और फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली की योग्यता को ही कई बार कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने नोटबंदी पर उंगली उठाते हुए कहा था कि सरकार की नीतियों की वजह से देश आर्थिक मंदी के खतरे की ओर बढ़ रहा है।
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अरुण शौरी
ऐसा ही कुछ रवैया पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे बीजेपी नेता अरुण शौरी का रहा है। उन्होंने भी कहा था कि देश की अर्थ व्यवस्था चरमराने लगी है। देश में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर भी उन्होंने सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया था।
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शिवसेना
बीजेपी की प्रमुख सहयोगी शिवसेना भी समय समय पर सरकार से विरोध जताती रही है। पिछले दिनों हुए मंत्रीमंडल के फेरबदल से लेकर नोटबंदी जैसे कई मामलों पर शिवसेना अपनी नाराजगी दिखाती रही है और अपना सर्मथन वापस लेने की धमकी भी देती रही है। बीते दिनों भी शिवसेना के मुखपत्र सामना में इस तरह की बात की गई थी।
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संघ का रूख
इतना ही नहीं बीजेपी का मूल संगठन आरएसएस भी उसके कुछ फैसलों को सर्मथन नहीं देता। हाल ही में संघ के वरिष्ठ विचारक और अर्थशास्त्री गुरुमूर्ति ने आर्थिक नीतियों को लेकर नाराजगी दिखाई थी। एक अंग्रेजी दैनिक को दिये गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि देश की अर्थ व्यवस्था ठीक नहीं है ये डूबने की कगार पर है।
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