मंगलवार को सुबह उन्होंने साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्यभार संभाला, फिर हैदराबाद हाउस में दक्षिण एशिया के नेताओं से मुलाक़ात की, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनके आवास पर भेंट की और फिर शाम को मंत्रिमंडल की बैठक हुई.
कैबिनेट की बैठक में काला धन पर विशेष जांच समीति के गठन का फ़ैसला लिया गया.
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का पहला दिन विदेश नीति के नाम रहा. हैदराबाद हाउस में उन्होंने दक्षिण एशियाई नेताओं से मुलाक़ात की.
ऐसा लग रहा था कि ये कोई सार्क देशों की औपचारिक छोटी कांफ्रेंस है.
इस तरह के अवसर की तैयारी कई महीने पहले शुरू की जाती है. लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही इन नेताओं को दिल्ली में जुटाकर एक शक्तिशाली पैग़ाम दिया है और वो ये है कि भारत तमाम पड़ोसी देशों के साथ शांति चाहता है.
पड़ोसी देश हमेशा से ये शिकायत करते आए हैं कि भारत 'बिग ब्रदर' का रवैया रखता है. मोदी ने पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शपथ ग्रहण समारोह में दावत देकर एक नई तरह के पहल की कोशिश की है.
हालांकि एक हल्क़े में यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि इससे भारत की 'बिग ब्रदर' की छवि और मज़बूत हो सकती है.
मंगलवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री का उनके देश आने का न्योता मोदी ने स्वीकार किया. समझा जाता है कि इससे बांग्लादेश में भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा.
चरमपंथ का मुद्दा
मंगलवार के कार्यक्रम का सबसे अहम क्षण था उनकी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से मुलाक़ात.
50 मिनट की इस मुलाक़ात में कई मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ चरमपंथ का मुद्दा भी उठा.
शरीफ़ ने बाद में मीडिया से कहा कि द्विपक्षीय बातचीत को दोबारा शुरू करने का फ़ैसला किया गया है. ये बातचीत लंबे वक़्त से थमी हुई है.
उन्होंने कहा, "हम लोगों ने ये तय किया है कि दोनों देशों के विदेश सचिव जल्द ही मिलेंगे जो दोतरफ़ा एजेंडे की आज की मुलाक़ात के परिपेक्ष्य में समीक्षा करेंगे."
इससे पहले भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेस में बताया कि बातचीत के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने 'सीमा पार चरमपंथ' के मुद्दे को उठाया.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बताया गया कि उनके देश को चरमपंथी गतिविधियों के लिए अपनी ज़मीन इस्तेमाल न होने देने का वादा याद रखना चाहिए.
शांति का नया दौर
भारत में आमतौर पर दोनों देशों के नेताओं के बीच बातचीत की सराहना की गयी है. इस बैठक को शांति के नए दौर के तौर पर देखा जा रहा है.
हालांकि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच कश्मीर के मामले पर बातचीत नहीं हुई, जो दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते के बीच रुकावट का कारण बना हुआ है.
मगर इस मुलाक़ात को इस पसमंज़र में देखना उचित होगा कि मोदी ने चुनावी मुहिम के दौरान मनमोहन सिंह सरकार की ये कहकर कड़ी आलोचना की थी कि पाकिस्तान के प्रति उनका रवैया नरम है.
लेकिन मोदी की शरीफ़ को भारत आने की दावत देना और फिर बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिश को उनके पुराने रुख़ में एक बड़ी तब्दीली के तौर पर देखा जा रहा है.
दोनों देशों के बीच पिछले एक साल से औपचारिक बातचीत नहीं हो रही है. इसके मद्देनज़र शरीफ़ ने कहा कि दोनों देशों के रिश्तों को बहाल करने का यह एक सुनहरा मौक़ा है.
वर्ष 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शरीफ के निमंत्रण पर बस से लाहौर गए थे और रिश्तों को बेहतर करने के लिए पहल की थी लेकिन उसके बाद कारगिल संघर्ष और शरीफ़ का तख्तापलट हो जाने के बाद वो प्रक्रिया पटरी से उतर गई थी.
विवाद
हालांकि पहले दिन की बात बिना विवाद के किए ख़त्म नहीं होगी. बीजेपी के सहयोगी दल शिव सेना के कोटे से बने मंत्री अनंत गीते ने कार्यभार संभालने से इंकार कर दिया. समझा जाता है कि वो अपने विभाग भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम से ख़ुश नहीं हैं.
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने धारा 370 के मुद्दे पर बयान देकर फिर से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य के दर्जे के विवाद को हवा दे दी.
और स्मृति ईरानी को दिए गए मानव संसाधन विभाग का कार्यभार भी सोशल मीडिया पर छाया रहा.
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