मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है?

मनुष्य के जीवन का उद्देश्य, हमारे यहां होने का कारण अपनी स्वयं की दिव्यता, आत्मबोध और आत्म-चेतना का अनुभव करना है। अपने इस मस्तिष्क के साथ वास्तव में हमारे पास वह शक्ति और क्षमता है कि हम उस चेतना के स्तर तक पहुंच सकें। पशु व पेड़-पौधे निश्चित रूप से हमसे बेहतर अवस्था में हैं। हम जिस स्तर पर कार्य कर रहे हैं, हम यह नहीं कह सकते कि मनुष्य उद्भव के शिखर पर है। पशु किसी अन्य पशु को केवल दो कारणों से नुकसान पहुंचाते हैं: या तो उन्हें खाने की आवश्यकता होती है या उन्हें दूसरे से खतरा होता है। हम एकमात्र ऐसी प्रजाति हैं, जो भोजन या अपनी व अपने बच्चों की शारीरिक सुरक्षा के अलावा अन्य कारणों के लिए भी किसी को नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि हमारे पास आत्मावलोकन करने की क्षमता है, जो किसी और प्रजाति के पास नहीं है। यह ज्ञानोदय को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण घटक है। हमारा उद्देश्य उस क्षमता का उपयोग करना है ताकि हम अपने भीतर दिव्यता का अनुभव कर सकें और यह केवल आध्यात्मिक अभ्यास, ध्यान, प्रार्थना तथा अनुग्रह के माध्यम से हो सकता है. इससे हमें महज शरीर होने का नहीं, बल्कि आत्मा या चेतना होने का अनुभव मिलता है।

हम सभी इतना नकारात्मक क्यों सोचते हैं? हम नकारात्मक अवस्था से बाहर किस प्रकार आ सकते हैं?
मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है?

मनुष्य के जीवन का उद्देश्य, हमारे यहां होने का कारण अपनी स्वयं की दिव्यता, आत्मबोध और आत्म-चेतना का अनुभव करना है। अपने इस मस्तिष्क के साथ वास्तव में हमारे पास वह शक्ति और क्षमता है कि हम उस चेतना के स्तर तक पहुंच सकें। पशु व पेड़-पौधे निश्चित रूप से हमसे बेहतर अवस्था में हैं। हम जिस स्तर पर कार्य कर रहे हैं, हम यह नहीं कह सकते कि मनुष्य उद्भव के शिखर पर है। पशु किसी अन्य पशु को केवल दो कारणों से नुकसान पहुंचाते हैं: या तो उन्हें खाने की आवश्यकता होती है या उन्हें दूसरे से खतरा होता है। हम एकमात्र ऐसी प्रजाति हैं, जो भोजन या अपनी व अपने बच्चों की शारीरिक सुरक्षा के अलावा अन्य कारणों के लिए भी किसी को नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि हमारे पास आत्मावलोकन करने की क्षमता है, जो किसी और प्रजाति के पास नहीं है। यह ज्ञानोदय को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण घटक है। हमारा उद्देश्य उस क्षमता का उपयोग करना है ताकि हम अपने भीतर दिव्यता का अनुभव कर सकें और यह केवल आध्यात्मिक अभ्यास, ध्यान, प्रार्थना तथा अनुग्रह के माध्यम से हो सकता है. इससे हमें महज शरीर होने का नहीं, बल्कि आत्मा या चेतना होने का अनुभव मिलता है।

हम सभी इतना नकारात्मक क्यों सोचते हैं? हम नकारात्मक अवस्था से बाहर किस प्रकार आ सकते हैं?

जीवन मंत्र: ऐसे पा सकते हैं नकारात्मक सोच और कुंठा से मुक्ति

नकारात्मक सोच एक दुखद अवस्था है, जिसके शिकार हममें से कई हैं। हम नकारात्मक सोचते हैं क्योंकि हमें यही सिखाया गया है। हम ऐसी संस्कृति में पले-बढ़े हैं, जो पुरस्कारों के बजाय दंड पर आधारित है, साथ ही हमें बताया जाता है कि हमारे जीवन में कुछ कमी है। हमने इस संदेश को आत्मसात कर लिया और इसी विश्वास के साथ जीवन जीने लगे। लिहाजा नकारात्मक विचारों से निपटने के लिए सबसे पहले अपने जीवन में करुणा के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित करें। दयालुता से प्यार करने की प्रतिबद्धता जताएं। अच्छी बात यह है कि हम वास्तव में ऐसा कर सकते हैं। अगर हम अपने दिमाग में सकारात्मक विचार लाएंगे, तो वह उसकी नई अवस्था हो जाएगी और फिर नकारात्मक विचार स्वत: ही दूर हो जाएंगे। विचारों से युद्ध करने के बजाय दिमाग के पूरे परिदृश्य को बदलें ताकि नकारात्मक विचारों के लिए कोई जगह ही न बचे।

निराशा और कुंठा से निपटने के कुछ अच्छे तरीके क्या हैं?

जीवन मंत्र: ऐसे पा सकते हैं नकारात्मक सोच और कुंठा से मुक्ति

स्वीकारोक्ति और कृतज्ञता। हम अपने प्रियजनों से प्यार करते हैं, साथ ही उम्मीद व प्रार्थना करते हैं कि वे कभी बीमार न पड़ें और हमें कभी छोड़कर न जाएं। लेकिन किसी स्तर पर हमें यह जानना होगा, भले ही हम इसे मानें या न मानें, कि वास्तव में इन चीजों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसी संभावनाएं हमेशा बनी रहेंगी। हालांकि यह हमें प्यार करने से और अपने जीवन में आगे बढऩे से नहीं रोकती हैं। हम इस बात को समझने में सक्षम हैं कि कुछ भी हमारे हाथों में नहीं है, हमारे पास मौजूद सबकुछ ईश्वर की कृपा है। जितना अधिक हम इस बात को मानेंगे, उतने ही कृतज्ञ बनेंगे। कृतज्ञता ही हमें लगातार अहसास दिलाती है कि हम कितने लायक हैं। ईश्वर की कृपा के प्रति हम हर पल खुद को जितना जागरूक करेंगे, उतनी ही कम उम्मीदें रखेंगे और जितनी कम उम्मीदें हमें घेरेंगी, उतनी ही कम निराशा और कुंठा हमें होगी।

-साध्वी भगवती सरस्वती

परिचय: साध्वी भगवती सरस्वती जी केलिफोर्निया के एक अमेरिकी परिवार में पली बढ़ी हैं। वे वर्ष 1996 में ऋषिकेष स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम आईं और उन्हें वर्ष 2000 में जाने-माने आध्यात्मिक गुरु स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने दीक्षा दी। वे ध्यान और आध्यात्म जैसे विषयों की गहरी जानकारी रखती हैं और लोगों का मार्गदर्शन करती हैं।

 

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