कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। भगवान विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी की उत्पत्ति करके उन्हें प्राणीमात्र का सृजन करने का वरदान दिया और उनके द्वारा 84 लाख योनियों को उत्पन्न किया। श्री विष्णु भगवान की उत्पत्ति कर उन्हें जगत में उत्तपन्न सभी प्राणियों की रक्षा और भरण-पोषण का कार्य सौंप दिया। प्रज्ञा का ठीक सुचारू रूप से पालन और हुकूमत करने के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली तिव्रगामी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। बाद में संसार के प्रलय के लिए एक अत्यंत दयालु बाबा भोलेनाथ श्री शंकर भगवान की उत्पत्ति की।
जब भगवान शंकर को तीसरा नेत्र प्रदान किया
इसके साथ ही उन्हें डमरू, कमण्डल, त्रिशुल आदि प्रदान कर उनके ललाट पर प्रलयकारी तीसरा नेत्र भी प्रदान कर उन्हें प्रलय की शक्ति देकर शक्तिशाली बनाया। हमारे धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरुपों और अवतारों का वर्णन प्राप्त होता है। विराट विश्वकर्मा-सृष्टि के देवता, धर्मवंशी विश्वकर्मा-महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र, अंगिरावंशी विश्वकर्मा-आदि विज्ञान जन्मदाता ऋषि अथवी के पुत्र, भृगुवंशी विश्वकर्मा-उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य(शुक्राचार्य के पौत्र)।
ऐसे हुई विश्वकर्मा समाज की उत्पत्ति
देवगुरू बृहस्पति की भगिनी भुवना के पुत्र भौवन विश्वकर्मा की वंश परम्परा अत्यंत वृद्ध है। सृष्टि से वृद्धि करने हेतु भगवान पंचमुख विश्वकर्मा के सघोजात नामवाले पूर्व मुख से सामना दूसरे वामदेव नामक दक्षिण मुख से सनातन, अघोर नामक पश्चिम मुख से अहिंमून, चौथे तत्पुरूष नामवाले उत्तर मुख से प्रत्न और पांचवे ईशान नामक मध्य भागवाले मुख से सुपर्णा की उत्पत्ति शास्त्रों में वर्णित है। इन्हीं सानम, सनातन, अहमन, प्रत्न और सुपर्ण नामक पांच गौत्र प्रवर्तक ऋषियों से प्रत्येक के प्रत्येक-पच्ची सन्ताने उत्पन्न हुई जिससे विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है।
-पंडित दीपक पांडेय
Vishwakarma Puja 2019: क्यों करते हैं ये पूजा, जानें महत्व और कथा
Spiritual News inextlive from Spiritual News Desk