फारस के संत अपुरायन सीरिया में बस गए थे और एक छोटी-सी झोपड़ी में वास करते थे। उनका रहन-सहन अत्यंत सादगीपूर्ण था। रूखी-सूखी रोटी उनका भोजन था और चटाई उनका बिस्तर। दिन-रात भगवत चिंतन में लगे रहते।
एक बार सीरिया का राजकुमार उनसे मिलने आया। वे जब झोपड़ी से बाहर आए, तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कीमती वस्त्र भेंट किए। यह देख संत बोले, 'राजकुमार, यदि आपके महल में स्वामिभक्त सेवक हों और वे दूसरे देश के वासी हों, आप उनसे संतुष्ट हों, मगर आपके पास यदि आपके देशवासी नौकरी मांगने आएं, तब क्या आप उन पुराने स्वामिभक्त सेवकों को नौकरी से अलग कर देंगे?'
'हरगिज नहीं,' राजकुमार ने उत्तर दिया। 'तो फिर जिन वस्त्रों को मैं पिछले सोलह वर्षो से पहन रहा हूं और जिनसे मेरी आवश्यकता पूरी हो जाती है, उन्हें निकलवाकर ये नए वस्त्र मुझे क्यों दे रहे हैं? यह कहकर संत झोपड़ी के अंदर चले गए।
कथासार
व्यक्ति की पहचान कपड़ों से नहीं, बल्कि उसके गुणों से होती है।
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