नई दिल्ली (ब्यूरो)। हिंदी सिनेमा में करियर बनाने के लिए मैं वर्ष 1999 में मुंबई आया था। अगर मैं निगेटिव रहता तो आगे बढ़ नहीं पाता। चौदह वर्ष बाद अपने लिए स्क्रिप्ट लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। निर्माताओं से नहीं कह पाता कि मुझे हीरो लेकर फिल्म बना दो। यह पागलपन जरूरी है। यह पागलपन तभी संभव है, जब हम अपना जोश कायम रखें।' यह बात विनीत कुमार सिंह ने नौवें जागरण फिल्म फेस्टिवल के दौरान आयोजित परिचर्चा में कही। 
बड़े फिल्मकारों के सिक्योरिटी गार्ड रोक देते थे: इस अवसर पर उन्होंने अपने लिखे रैप गाने भी सुनाए। उनके साथ उनकी फिल्म 'मुक्काबाज' की अभिनेत्री जोया हुसैन भी थीं। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते विनीत ने बताया, 'मेरा कोई परिचित फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था। बड़े फिल्मकारों से मिलने के लिए उनके दफ्तर जाता था, मगर सिक्योरिटी गार्ड रोक देते थे। एक महीने की जद्दोजहद के बाद गार्ड भी मुस्करा देता था। वह मुझे बताता था फलां असिस्टेंट डायरेक्टर है। उसे भी मैं अपनी प्रगति मानता था। अगर मैं यह अप्रोच नहीं रखता तो मुकाम हासिल नहीं कर पाता। मेरी कोशिश बेहतर चीजों को तलाशने की होती हैं। वही आपको खुश रखती है।' 
खुद लिखना किया शुरू: 'मुक्काबाज' की राइटिंग से विनीत जुड़े हैं। वह बताते हैं, 'फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'बांबे टॉकीज' और 'अग्ली' के बाद मुझे वैसे किरदार ही ऑफर हो रहे थे। मैं खुद से सवाल करता कि क्या मैं मुंबई सरवाइवल के लिए आया हूं। मैं किसी फिल्मकार पर मनपसंद रोल में लेने का दबाव नहीं बना सकता था, सो मैंने खुद ही लिखना शुरू किया। अपने जीवन के रोचक अनुभवों को उठाया। खेल आधारित फिल्में तब बनती हैं, जब खिलाड़ी बड़ा पदक जीत लेता है। उस पदक को जीतने के बाद उसकी जिंदगी का कायापलट हो जाता है। मगर उससे पहले उसे किन कठिनाइयों से जूझना पड़ा, यह मैंने दिखाया है। मैं खुद राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल का प्लेयर का रहा हूं। वहीं से मेडल जीतने के पहले की कहानी लिखने का आइडिया आया।' 

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नई दिल्ली (ब्यूरो)। हिंदी सिनेमा में करियर बनाने के लिए मैं वर्ष 1999 में मुंबई आया था। अगर मैं निगेटिव रहता तो आगे बढ़ नहीं पाता। चौदह वर्ष बाद अपने लिए स्क्रिप्ट लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। निर्माताओं से नहीं कह पाता कि मुझे हीरो लेकर फिल्म बना दो। यह पागलपन जरूरी है। यह पागलपन तभी संभव है, जब हम अपना जोश कायम रखें।' यह बात विनीत कुमार सिंह ने नौवें जागरण फिल्म फेस्टिवल के दौरान आयोजित परिचर्चा में कही। 

बड़े फिल्मकारों के सिक्योरिटी गार्ड रोक देते थे: इस अवसर पर उन्होंने अपने लिखे रैप गाने भी सुनाए। उनके साथ उनकी फिल्म 'मुक्काबाज' की अभिनेत्री जोया हुसैन भी थीं। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते विनीत ने बताया, 'मेरा कोई परिचित फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था। बड़े फिल्मकारों से मिलने के लिए उनके दफ्तर जाता था, मगर सिक्योरिटी गार्ड रोक देते थे। एक महीने की जद्दोजहद के बाद गार्ड भी मुस्करा देता था। वह मुझे बताता था फलां असिस्टेंट डायरेक्टर है। उसे भी मैं अपनी प्रगति मानता था। अगर मैं यह अप्रोच नहीं रखता तो मुकाम हासिल नहीं कर पाता। मेरी कोशिश बेहतर चीजों को तलाशने की होती हैं। वही आपको खुश रखती है।' 

खुद लिखना किया शुरू: 'मुक्काबाज' की राइटिंग से विनीत जुड़े हैं। वह बताते हैं, 'फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'बांबे टॉकीज' और 'अग्ली' के बाद मुझे वैसे किरदार ही ऑफर हो रहे थे। मैं खुद से सवाल करता कि क्या मैं मुंबई सरवाइवल के लिए आया हूं। मैं किसी फिल्मकार पर मनपसंद रोल में लेने का दबाव नहीं बना सकता था, सो मैंने खुद ही लिखना शुरू किया। अपने जीवन के रोचक अनुभवों को उठाया। खेल आधारित फिल्में तब बनती हैं, जब खिलाड़ी बड़ा पदक जीत लेता है। उस पदक को जीतने के बाद उसकी जिंदगी का कायापलट हो जाता है। मगर उससे पहले उसे किन कठिनाइयों से जूझना पड़ा, यह मैंने दिखाया है। मैं खुद राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल का प्लेयर का रहा हूं। वहीं से मेडल जीतने के पहले की कहानी लिखने का आइडिया आया।' 


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