वट वृक्ष को देवता माना जाता है। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्माजी, तने में भगवान विष्णु का तथा डिलियों एवं पत्तियों में भगवान शिव का निवास माना जाता है। मां सावित्री भी वटवृक्ष में निवास करती हैं। अक्षय वटवृक्ष के पत्ते पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने प्रलयकाल में मार्काण्डेय आदि को दर्शन दिए। यह अक्षय वटवृक्ष प्रयाग मेंं गंगातट पर बेणीमाधव के निकट स्थित है। वटवृक्ष की पूजा दीर्घायु, सौभाग्य, अक्षय उन्नति आदि के लिए की जाती है। उक्त जानकारी कानपुर के पंडित दीपक पांडेय ने दी है।
बरगदाही के दिन बांस की दो टोकरी लें, उसमें सप्तधन्य( गेहूं, जौ, चावला, तिल, कांगनी, श्यामक, देवधान्य) भर लें, उसमें से एक पर ब्रह्मा और सावित्री तथा इसकी टोकरी में यदि इनकी प्रतिमाएं आपके पास नहीं हैं तो मिट्टी की प्रतिमा बनाई जा सकती है। वट वृक्ष के नीचे बैठकर पहले ब्रह्मा फिर सावित्री का तदुउपरान्त सत्यवान एवं सावित्री का पूजन कर लें। सावित्री के पूजन में सौभाग्य वस्तुएं (काजल, मेंहदी, चूड़ी, बिन्दी, वस्त्र, स्वर्ण आभूषण, दर्पण इत्यादि) चढ़ाएं। अब माता सावित्री को अर्घ्य देते हुए मंत्र का उच्चारण करें- 'अवैधव्यं च सौभाग्यं देही त्वं मम सुव्रेत पुत्रान पौत्रांक्ष सौरव्यं च गृहाणआधर्य नमोस्तुते।'
वट सावित्री व्रत : महिलाओं के विशेष पूजन में सुकर्म आयोग सौभाग लेकर आता है
तत्पश्चात वटवृक्ष का पूजन करें। वटवृक्ष का पूजन करने के उपरान्त वट की जड़ों में प्रार्थना के नाम जल चढ़ाएं और मंत्र करें 'वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।
यथा शाखा प्रशाखाभिर्वृद्धोsसि त्वं महीतले।।' वटवृक्ष की परिक्रमा करें, परिक्रमा करते हुए वटवृक्ष के तने पर कच्चा सूत लपेटें 108 परिक्रमा का विधान है किन्तु न्यूनतम सात बार तो करनी ही चाहिए। अन्त में वट सावित्री की कथा सुने। पंडित दीपक पाण्डेय के अनुसार किसी बहन या बेटी गांव में हो तो उसको बयाना निकालने के लिए भेजना चाहिएस, कथा के बाद भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उस पर यथाशक्ति रुपये रखकर अपनी माम को देना चाहिए तथा उनका चरण स्पर्श करना चाहिए।
पंडित दीपक पांडेय