इस दिन व्रत रखकर भगवान बैकुण्ठ नाथ का पूजन और सवारी निकालने का उत्सव किया जाता है।कहीं-कहीं मंदिरों में बैकुण्ठ द्वार बने हुए होते हैं जो इसी दिन खोले जाते हैं तथा उसी में भगवान की सवारी निकाली जाती है।ऐसा माना जाता है और विश्वास है कि इस दिन भगवान की सवारी के साथ बैकुण्ठ दरवाजे में से निकलने वाले प्राणी भगवान का कृपापात्र बन बैकुण्ठ में जाने का अधिकारी बन जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की कमल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए तत्पश्चात भगवान शंकर की पूजा की जानी चाहिए।यह व्रत वैष्णवों के साथ साथ शैव मतानुयायियों द्वारा भी किया जाता है।इस व्रत के करने से बैकुण्ठधाम अवश्य प्राप्त होता है।
व्रत कथा
एक बार नारदजी मृत्युलोक से घूमकर नारायण के धाम बैकुण्ठ पहुंचे।भगवान विष्णुजी ने प्रसन्नतापूर्वक बैठाते हुए आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा भगवन, आपके धाम में पुण्यात्मा जीव प्रवेश पाते हैं,यह तो उनके कर्म की विशेषता हुई।फिर आप जो करुणा निधान कहलाते हैं,उस कृपा का क्या रूप है।आपने अपना नाम तो कृपा निधान रख लिया है किंतु इससे केवल आपके प्रिय भक्त ही तर पाते हैं, सामान्य नर-नारी नहीं।इसलिए कोई ऐसा सुलभ मार्ग बताएं जिससे अन्य भक्त भी मुक्ति पा सकें।
भगवान ने दिया ये जवाब
इस पर भगवान बोले हे नारद,जो नर नारी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को व्रत का पालन करते हुए श्रद्धा भक्ति से पूजन करेंगे,उनके लिए साक्षात स्वर्ग होगा। इसके बाद उन्होंने कहा कि आज से यह नियम पालन करना है कि प्रति वर्ष कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तिथि को मेरे बैकुण्ठ धाम का द्वार ,प्रत्येक जीव को जो उस दिन व्रत रखकर पवित्र हो जाये और मेरे धाम में प्रवेश के लिए इच्छा करे खोल देना। उस दिन जीव के पूर्व कर्मों का लेखा देखने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी।इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजन करेगा,उसे बैकुण्ठ धाम मिलेगा।
-ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा