कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 'नरक चतुर्दशी' और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ' वैकुण्ठ चतुर्दशी' कहलाती है। नरक चतुर्दशी को नरक के अधिपति यमराज की और वैकुण्ठ चतुर्दशी को वैकुण्ठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह तिथि अरुणोदय व्यापिनी ग्रहण करनी चाहिए। जो इस वर्ष 22 नवम्बर 2018 को पड़ रही है।
व्रत विधान
प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर दिनभर का व्रत करना चाहिए और रात्रि में भगवान् विष्णु की कमल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात् भगवान शिव की यथा विधि पूजा करनी चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
रात्रि के बीत जाने पर दूसरे दिन शिव जी का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। वैकुण्ठ चतुर्दशी का यह पावन व्रत शैवों एवं वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी कथा
एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। यहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान् विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिव जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
भगवान श्रीहरि को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आँखे कमल के ही समान हैं, इसलिए मुझे 'कमलनयन' और 'पुण्डरीकाक्ष' कहा जाता है। एक कमल के स्थान पर मैं अपनी आँख ही चढ़ा देता हूँ- ऐसा सोचकर वे अपनी कमल सदृश आँख चढ़ाने को उद्यत हो गये।
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का महत्व
भगवान् विष्णु की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न हो देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले -हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है, आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रतपूर्वक पहले आपका पूजन कर जो मेरा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।
भगवान शिव ने श्रीहरि को दिया सुदर्शन चक्र
भगवान शिव ने विष्णु को करोड़ों सूर्यों की प्रभा के समान कान्तिमान सुदर्शन चक्र दिया और कहा कि यह राक्षसों का अंत करने वाला होगा। त्रैलोक्य में इसकी समता करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा।
— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र
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