देहरादून (ब्यूरो)। दून के मनोचिकित्सकों के अनुसार दून में ज्यादातर युवा सस्ता नशा ले रहे हैं। जिसका इस्तेमाल करने के बाद वे साइट इफेक्ट्स का शिकार हो रहे हैं। जिससे उन्हें भ्रम होना, चक्कर आना, खुजली, खराब डाइजेशन, पेट में दर्द होना जैसी परेशानी होती है। ऐसे में धीरे-धीरे वह मानसिक रोग का शिकार हो रहे हैं। सस्ते नशें में सबसे ज्यादा भांग कस सेवन करने वाले सामने आ रहे हैं।

महंगा नशा लेने के कारण हो रही तकलीफ ज्यादा
डॉक्टर के अनुसार युवाओं में हेरोइन और स्मैक का एडिक्शन सबसे जल्दी होता है। एक-से दो बार लेने के बाद इसकी आदत पड़ जाती है। यह नशा मंहगा होने के कारण इसका खर्च उठाना इनके लिए मुश्किल हो जाता है। इस नशे को लेने के लिए चोरी जैसी हरकतें करने लगती है।

ये नशे भी ले रहे युवा
व्हाइटनर
कॉमर्शियल ग्लू (इनहेलिनेट)
वार्निश
पेट्रोल
शराब
गांजा
स्मैक
चरस
तंबाकू

रोज हॉस्पिटल पहुंच रहे युवा
दून हॉस्पिटल में साइकियाट्रिस्ट की ओपीडी में रोजाना की ओपीडी में दस से 15 परसेंट पेशेंट ऐसे होते है जो नशे के कारण मानसिक परेशानी का शिकार होकर हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं। दून हॉस्पिटल में 70 पेशेंट्स की ओपीडी में से 10-12 पेशेंट नशा करने के बाद हो रही परेशानी लेकर हॉस्पिटल पहुंचते हैं या दूसरे डिपार्टमेंट से रेफर किए जाते हैं।

इन चेंजेस पर हो जाएं अलर्ट
-परिवार से दूर-दूर रहना
-घर से ज्यादा पैसे मांगना
-घर का छोटा-मोटा सामान गायब होना
-जेब में कोई पुडिय़ा मिलना

मेंटल हॉस्पिटल भी पहुंच रहे एडिक्ट
जानकारी के अनुसार मानसिक हॉस्पिटल में रोजाना 100 पेशेंट्स से ज्यादा की ओपीडी होती हंै। जिसमें इन रोगियों में स्मैक के शिकार पेशेंट 15-18 तक होते हैं। वहीं शराब और बड़े नशे का शिकार करीब 30 से 32 पेशेंट तक पहुंचते हैं। नशे के आदी युवाओं और विदेशी सैलानियों को भी लेकर कई बार मानसिक हॉस्पिटल में इलाज के लिए लाया जाता है।

नशे से होने वाली बीमारियां
टेंशन, डिप्रेशन, इरीटेशन, बहस करना, सिरदर्द, गुस्सा, ख्यालों में खोना, हीनभावना, माइग्रेन

15 से 30 साल की उम्र में नशे का ज्यादा असर
मनोचिकित्सकों के अनुसार नशे के शिकार युवाओं में सबसे ज्यादा असर 15 से 30 साल के लोगों में मिल रहा है। यह लोग गांजा, चरस और स्मैक का नशा करने के बाद हॉस्पिटल में पैरेंट्स के जरिए पहुंच रहे हैं।

इलाज के लिए खुद पहुंचने वालों में अच्छे रिजल्ट
मनोचिकित्सक के अनुसार कई बार नशे की लत को छुड़ाने के लिए युवा या व्यक्ति हॉस्पिटल में खुद से पहुंचकर जांच कराता है तो वह जल्द ठीक हो जाता है। बीते कुछ सालों में कई युवाओं ने खुद से हॉस्पिटल पहुंचकर जब अपने लत का इलाज करा ठीक हुए हैं।

फिर शुरू कर देते हैं नशा
मानसिक हॉस्पिटल के डॉक्टर के अनुसार माता-पिता या परिवार के किसी सदस्य द्वारा पकड़े जाने और परिजनों के ट्रीटमेंट कराने के बाद भी अधिकतर युवा नशा छोडऩे के 6 माह बाद दोबारा शुरू कर देते हैं। इसके बाद जब उन्हें नशा नहीं मिलता तो वह मानसिक रोग का शिकार हो जाते हैं। इनमें हर तरह का नशा शामिल होता है। जिसमें भांग से लेकर स्मैक का नशा भी शामिल है।

दून हॉस्पिटल में पहुंचने वाले मानसिक रोगियों में कई ऐसे पेशेंट होते है जो नशा करने के बाद साइड इफेक्ट्स का शिकार होते हैं। इन्हें भ्रम होने के साथ दूसरी फिजीकल प्रॉब्लम्स होने लगती है। लेकिन अच्छी विल पावर वाले युवा ठीक भी होते हैं, मगर उनकी संख्या कम है।
डॉ। जया नवानी, साइकियाट्रिस्ट दून हॉस्पिटल