देहरादून (ब्यूरो) एक्शन एंड रिसर्च फॉर कंजर्वेशन इन हिमालयाज (आर्क) के फाउंडर प्रतीक पंवार की मानें तो उनकी संस्था वर्ष 2010 से गौरेया को बचाने की मुहिम में जुटी हुई हैैं। प्रतीक पंवार का कहना है कि 2010 से पहले दून में अचानक गौरेया के संख्या में गिरावट देखने को मिली। उसके बाद आर्क के साथ ही कई अन्य संस्थाओं व पर्यावरणप्रेमियों ने गौरेया को बचाने के लिए कदम बढ़ाए। इसके लिए हाथ से तैयार किए जाने वाले घोंसले पर जोर दिया गया। यही कारण रहा है कि अब गौरेया की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है।
सेलिब्रेशन में आर्क संस्था रही शामिल
आर्क के फाउंडर प्रतीक पंवार बताते हैं कि दुनियाभर के टॉप संस्थाओं ने जब 2010 में गौरेया दिवस मनाया। तब उत्तराखंड से आर्क को भी शामिल किया गया था। उसका आयोजन दून के एमकेपी कॉलेज में हुआ था।
एग्रीकल्चर एरिया पर फोकस
गौरेया को बचाने को लेकर लंबे समय से जुटे हुए पर्यावरण प्रेमी प्रतीक पंवार बताते हैं कि गौरेया ह्यूमन फ्रेंडली मानी जाती है। जिसका ब्रीडिंग सीजन अक्सर मार्च से लेकर अगस्त तक होता है। इसी दौरान इनके घोंसले पर जोर दिया गया। इसके लिए सिटी के आउटर जैसे एग्रीकल्चर वाले इलाके चिन्हित किए गए। गौरेया एक सीजन में करीब तीन बार ब्रीडिंग करती है और एक गौरेया 7 से 10 बच्चे तैयार करती है। जाहिर है कि घोंसले की बढ़ोत्तरी होने के बाद इनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होने लगी। यही कारण है कि अब दून के अधिकतर घरों में घोंसले नजर आने के साथ ही नन्ही गौरेया भी फुदकते हुए नजर आने लगी हैं। प्रतीक पंवार कहते हैं जिन घोंसलों को उन्होंने तैयार किया, उनका कॉपीराइट भी किया। इसमें गौरेया प्रेमी मेघा पंवार व दीना रमोला ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। ।
रोशन फ्री बांटते हैैं घोंसले
पिछले लंबे समय से गौरैया को बचाने के लिए रोशन राणा भी घोंसले तैयार करने पर जुटे हुए हैं। रोशन राणा के मुताबिक गौरेया की संख्या में गिरावट आने की बड़ी वजह आहार की कमी, कीटनाशक का ज्यादा यूज, लाइफ स्टाइल में चेंजेज, पॉल्यूशन व मोबाइल टावर रहे हैं। झंडा बाजार निवासी रोशन राणा कहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के लिए गौरेया का बचाव जरूरी है। इसके लिए वे अपने लेवल से गौरेया के लिए घोंसले तैयार करने पर जुटे हुए हैं। जिनको निशुल्क वितरण करने के साथ ही अवेयर कर रहे हैं।
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