-दुर्घटनाओं को न्योता दे रहा तारों का जाल, पब्लिक भुगत रही खामियाजा
देहरादून (ब्यूरो): जिन वाहन दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन पुलिस-प्रशासन इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। अलबत्ता करीब दो साल पहले पुलिस-प्रशासन ने ऊर्जा निगम के साथ तारों का जाल हटाने के लिए अभियान भी चलाया, लेकिन यह अभियान कागजों से आगे नहीं बढ़ पाया, जिसका खामियाजा शहर की करीब 8 लाख आबादी को भुगतना पड़ रहा है।
सिटी की स्मार्टनेस बिगाड़ रहे तार
यह तो ठीक है, लेकिन जिस काम के लिए मुहिम शुरू की गई वह प्रपज आज तक पूरा नहीं हुआ। लिहाजा आज भी बड़ी संख्या मे खम्भों पर लटके तारों के जाल बिछे हुए हैं, जो न केवल दुर्घटनाओं को आमंत्रण दे रहे हैं, बल्कि शहर की सुंदरता पर भी दाग लगा रहे हैं। कहने को तो स्मार्ट सिटी है, लेकिन जिस तरह से शहर में तारों का कब्जा है वह नासूर बनता जा रहा है।
एक खंभे पर कई केबल
बिजली के खंभों पर न केवल बिजली के तार गुजर रहे हैं, बल्कि कई केबल गुजर रही हैं। टेलीफोन के तार से लेकर जियो फाइबर की वायर, टीवी केबल नेटवर्क की केबल, बीएसएनल समेत कई कंपनियों के टेलीफोन और वाईफाई नेटवर्क के तारें गुजर रही है। पूरे शहर में खंभे तारों से भरे पड़े हैं, जिनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है।
कागजी बना अभियान
शहर में बिजली समेत खंभों पर लटक रही विभिन्न प्रकार की तारों से हो रही दुर्घटनाओं के मध्यनजर पुलिस-प्रशासन ने ऊर्जा निगम के साथ अभियान चलाया। अभियान के तहत बिजली के खंभों से झूल रही तारों को व्यवस्था ही नहीं किया जाना था, बल्कि खंभों को तारों से हटाया जाना था। जोर-शोर से चले अभियान से तब लग रहा था कि जल्दी तारों से पब्लिक को मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन दो साल के लंबे अंतराल के बाद भी एक भी खंभे से तार नहीं हटी। इक्का-दुक्का खंभों से लटक रही तारों को जरूर ठीक किया गया है। पूरे अभियान की अब तक प्रोग्रेस यही है।
500 रुपये प्रति पोल तय है चार्ज
बिजली के खम्भे पर से केबल ले जाने के लिए संबंधित फर्मों और कंपनियों को 500 रूपये प्रति खम्भे के हिसाब से ऊर्जा निगम को चार्ज करना था, लेकिन यूपीसीएल के पास अभी तक इस मद में कितना पैसा आया इसकी कोई जानकारी नहीं है। बहरहाल अभियान पैसा वसूली के लिए नहीं, बल्कि तारों का जाल हटाकर पब्लिक को राहत पहुंचाना था, जो काम आज तक नहीं हुआ।
अंडरग्राउंड केबलिंग से मिलेगी निजात
ऊर्जा निगम दून की सड़कों से बिजली लाइनें अंडरग्राउंड करा रहा है। पहले फेज में सिटी की पांच सौ किलोमीटर लाइन को अंडर ग्राउंड किए जाने की योजना है। एडीबी से फंडिंग यह योजना कहां तक तारों के जाल को कम करने में सहायक सिद्ध होंगी यह तो आने वाले समय ही बताएग, लेकिन तार हटाने को लेकर जिस तरह की पुलिस-प्रशासन उदासीनता बरत रहा है वह दुर्घटनाओं को रोकने में नाकाफी है।
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