देहरादून ब्यूरो। जिस जमीन पर एक अच्छा-खास पार्क डेवलप किया जा सकता था, वह पिछले कई वर्षों से खाली पड़ी है। टीएचडीसी ने इतना जरूर किया कि जमीन के तीनों तरफ बाउंड्री वॉल बना दी है। एक तरफ बिंदाल नदी होने के कारण इस तरफ जाली लगाई गई है। बाउंड्री वॉल के बावजूद बच्चों के कुछ समूूह हर रोज इस जमीन के बीच के कुछ हिस्से को पिच के रूप में इस्तेमाल करके यहां क्रिकेट खेलते हैं। बच्चों ने इस हिस्से की सफाई भी की है, लेकिन बाकी हिस्सों में या तो झाडिय़ां हैं या गंदगी के ढेर।

बाउंड्री वाल बनी डंपिंग ग्राउंड
इस पार्क जैसे मैदान की बाउंड्री वाल का परम विहार की तरफ वाला हिस्सा डंपिंग ग्राउंड बना हुआ है। देखने से लगता है, आसपास का कचरा पिछले कई वर्षों से यहां फेंका जा रहा है। मैदान के एक किनारे पर भी कचरे का ढेर लगा हुआ है। एक जगह पुरानी गाडिय़ों का स्क्रैप भी पड़ा हुआ है। बताया जाता है कि बरसात के दिनों में पूरे मैदान में ऊंची झाडिय़ां उग आती हैं। टीएचडीसी के कर्मचारी साल कभी-कभी आकर इन झाडिय़ों को काटते हैं।

जमीन पर क्या बनेगा, पता नहीं
खाली पड़े इस मैदान को एक सुन्दर पार्क के रूप में डेवलप किया जा सकता है, लेकिन सरकारी विभागों को भी जमीनों से ज्यादा लगाव है। विभिन्न विभागों के पास ऐसी जमीन पड़ी है, जिन्हें पार्क के रूप में डेवलप करके या फिर कुछ अन्य तरह से उनका इस्तेमाल कर सिटी को खूबसूरत बनाया जा सकता है, लेकिन ऐसी जमीनें खाली पड़ी हैं और आसपास के लोग वहां कचरा फेंक रहे हैं।

क्या कहते हैं लोग
यह कहना कि खाली पड़ी जमीनों पर पार्क बनाए जाएं, ठीक नहीं है। पार्क के नाम पर कई जगह जमीन छोड़ी गई है। पार्कों की इन जमीनों पर अवैध कब्जे हैं। इन पार्कों को ही डेवलप किया जाए तो काफी कुछ हो सकता है।
ज्योत्सना पंवार

हमें पता चला है कि दून में सैकड़ों की संख्या में पार्क हैं, लेकिन हमने तो पांच-सात ही देखे हैं। पूरे शहर में ढूंढने के पांच-सात और मिल जाएंगे, सवाल यह है कि बाकी पार्क कहां हैं। इसका सीधा अर्थ है कि इन पार्कों के लिए छोड़ी गई जमीन पर अवैध कब्जे हैं। इन्हें छुड़ाना चाहिए।
शैलेन्द्र पंवार

शहरी जीवन में पार्कों की बड़ी भूमिका होती है। आमतौर शहरी घरों और घरों के आसपास इतनी जगह नहीं होती कि लोग कुछ देर टहल सकें। बच्चों के विकास में भी पार्कों की बड़ा महत्व है। जिस शहर में पार्क नहीं वहां बुजुर्गों को परेशानी होती है और बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता, ऐसा मुझे लगता है।
प्रकाश नेगी

कुछ मोहल्लों में पार्क नजर आ जाते हैं। वैसे मैंने कुछ पार्क देखे हैं देहरादून जो ठीक-ठीक स्थिति में हैं। लेकिन, ज्यादातर पार्कों की स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती। पार्कों की सफाई सबसे ज्यादा जरूरी है। पीने के पानी और शौचालय की व्यवस्था में पार्कों में होनी चाहिए। बैठने की व्यवस्था न होने से बुजुर्गों को परेशानी होती है।
मनोज कुंवर