देहरादून ब्यूरो। स्पेक्स संस्था ने सिटी के अलग-अलग हिस्सों से पीने के पानी के कुल 97 नमूने लेकर अपनी केन्द्र सरकार से मान्यताप्राप्त लैब में उनका परीक्षण किया। इनमें से 94 नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे। यानी शहर में सप्लाई किया जाने वाला 95 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है। केवल पांच नमूने ही मानकों पर खरे उतर पाये हैं।
वीआईवी एरियाज में एक्स्ट्रा क्लोरीन
रिपोर्ट के अनुसार शहर के वीआईपी क्षेत्रों में जो पानी सप्लाई किया जा रहा है, उसमें क्लोरीन की मात्रा सामान्य से कई गुना ज्यादा है। मानक से ज्यादा क्लोरीन अल्सर और पेट की बीमारियों के साथ कैंसर का कारण भी बन सकता है। जिन 41 क्षेत्रों के पानी के क्लोरीन की मात्रा निर्धारित मानक से ज्यादा पाई गई, उनमें राज्य सचिवालय, कई मंत्रियों के आवास, जिलाधिकारी आवास, जिला जज आवास आदि शामिल हैं। इसके विपरीत 50 अलग-अलग क्षेत्रों के पानी के नमूनों में क्लोरीन मिला ही नहीं। यानी इस क्षेत्रों में बिना क्लोरीन का पानी सप्लाई किया जा रहा है।
टोटल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया
देहरादून के पानी के खतरनाक बैक्टीरिया टोटल कॉलीफॉर्म की मात्रा भी सामान्य से कई गुना ज्यादा पाई गई है। पानी में टोटल कॉलीफॉर्म की सामान्य मात्रा 10 एमपीएन प्रति लीटर होती है, लेकिन देहरादून में कई जगहों पर टोटल कॉलीफॉर्म की मात्रा 52 एमएनपी प्रति 100 मिमी तक पाई गई है। स्पैक्स की रिपोर्ट बताती है कि सहस्रधारा रोड के पानी के सैंपल में टोटल कॉलीफॉर्म की मात्रा 52 एमपीएन प्रति 100 मिली तक पाई गई है। इसके अलावा बंजारा बस्ती, केवल विहार, भंडारी बाग, संजय कॉलोनी और पटेलनगर जैसी बस्तियों की पानी में टोटल कॉलीफॉर्म चिंताजनक स्तर तक पाया गया है।
फीकल कॉलीफॉर्म भी खतरनाक
यही स्थिति पानी में मौजूद फीकल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की भी है। यह बैक्टीरिया पेट संबंधी अनेक बीमारियों, दस्त, पीलिया, उल्टी और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। देहरादून के पानी में फीकल बैक्टीरिया की मौजूदगी 2 से 14 एमपीएन प्रति 100 मिली तक पाई गई है।
आरओ का पानी भी सेफ नहीं
स्पेक्स के सचिव डॉ। बृजमोहन शर्मा का कहना है पानी के नमूनों की जांच की रिपोर्ट साफ करती है कि देहरादून में एक तरफ जहां वीआईपी के आवासों में सप्लाई किये जाने वाले पानी में निर्धारित मानक से कई गुना ज्यादा क्लोरीन मिलाकर इस पानी को स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक बनाया जा रहा है। दूसरी तरफ शहर के एक बड़े हिस्से में दिये जा रहे पानी का क्लोरीनेशन किया ही नहीं जा रहा है। वे कहते हैं पिछले कुछ वर्षों में देहरादून रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) का चलन तेजी से बढ़ा है। वे विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी की गई चेतावनी कंा हवाला देते हुए वे कहते हैं कि आरओ का पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।