देहरादून (ब्यूरो) ट्यूजडे को उत्तराखंड विधानसभा सत्र के दूसरे दिन सदन की कार्यवाही शुरू होने पर संसदीय कार्यमंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण से इस विधेयक को पेश करने की अनुमति मांगी। जैसे ही सीएम पुष्कर ङ्क्षसह धामी ने विधेयक को सदन में पेश किया। वैसे ही बीजेपी विधायकों ने जय श्रीराम और भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू कर दिए।

विपक्ष ने स्टडी के लिए मांगा वक्त
विपक्ष कांग्रेस ने उनका पक्ष सुनने के संबंध में नारेबाजी की। लीडर अपोजिशन यशपाल आर्य ने कहा कि विधेयक के अध्ययन के लिए उन्हें पूरा मौका दिया जाए। कहा, सरकार विधेयक को लेकर जल्दबाजी कर रही है। सीएम ने विपक्ष के नारेबाजी के बीच विधेयक सदन में पेश किया। विधेयक प्रस्तुत होने के बाद स्पीकर ने अध्ययन के लिए सदस्यों को करीब ढाई घंटे का समय देते हुए सदन की कार्यवाही दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी। इसके बाद दोपहर दो बजे विधेयक पर चर्चा शुरू हुई।

एक नजर में यूसीसी
सदन में पेश यूसीसी पर एक नजर
-विधेयक को चार खंडों, विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव-इन रिलेशनशिप) और विविध में किया गया है विभाजित।
-विधेयक के पारित होने के बाद राजभवन, फिर राष्ट्रपति भवन को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।
-विधेयक में बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाओं पर रोक का प्रावधान।
-विधेयक में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार के किए गए हैं प्रावधान।
-लिव-इन में रहने के दौरान जन्मे बच्चों को मिलेगा अधिकार।
-सभी धर्मों के लिए विवाह की समान आयु सीमा की गई निर्धारित
-राज्य में रहने वाले सभी लोगों पर लागू होगा कानून।
-यूसीसी लागू करने के लिए पेश विधेयक के दायरे में लिया गया है पूरा राज्य।
-कानून बनने पर यह उत्तराखंड के उन लोगों पर भी लागू होगा, जो रह रहे हंै राज्य से बाहर।
-अनुसूचित जनजातियों व देश के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से रखा गया बाहर।

विवाह के लिए समान उम्र का प्रावधान
विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह-विच्छेद पर केंद्रित है। स्पष्ट किया गया है कि बहु विवाह व बाल विवाह अमान्य होंगे। विवाह के समय लड़की की न्यूनतम आयु 18 व लड़के की कम से कम 21 वर्ष होनी चाहिए। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का रजिस्ट्रेशन जरूरी है। रजिस्ट्रेशन न कराने पर दंड का प्रावधान है। इसमें अधिकतम तीन माह तक की जेल व 25 हजार तक का जुर्माना तय है। जबकि, सभी धर्मों के लिए दांपत्य अधिकारों का भी विधेयक में उल्लेख है।

विवाह विच्छेद पर फोकस
विधेयक में विवाह-विच्छेद के संबंध में स्पष्ट किया गया है कि कोई भी इस संहिता में उल्लिखित प्रावधानों के अलावा दूसरे प्रकार से विवाह विच्छेद नहीं कर सकेगा। उल्लंघन करने पर छह माह तक का कारावास व 50 हजार रुपये जुर्माने की व्यवस्था की गई है।

उत्तराधिकार में महिलाओं को समान अधिकार
विधेयक में उत्तराधिकार में संपत्ति में सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। ये भी स्पष्ट किया गया है कि सभी जीवित बच्चे, पुत्र, पुत्री संपत्ति में बराबर के अधिकारी होंगे।

लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्ट्रेशन जरूरी
लिव-इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी किया गया है। इस अवधि में पैदा होने वाला बच्चा वैध संतान माना जाएगा। उसे वह सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो वैध संतान को प्राप्त होते हैं। जोड़े में से किसी एक पक्ष के नाबालिग होने या विवाहित होने की स्थिति में लिव-इन की अनुमति नहीं मिलेगी। लिव इन संबंध कोई भी पक्ष समाप्त कर सकता है। लेकिन, ऐसी स्थिति में उसे संंबंधित क्षेत्र के निबंधक को जानकारी उपलब्ध करानी होगी। रजिस्ट्रेशन न कराने पर तीन माह का कारावास व 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसमें किसी भी प्रकार के संदेह को दूर करने के लिए उत्तराखंड विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 2010 को निरस्त करने की संस्तुति की गई है।
dehradun@inext.co.in