देहरादून, (ब्यूरो): एक तो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मानसूनी बारिश की आफत, ऊपर से भू-स्खलन होने के कारण सड़क व संपर्क मार्ग ध्वस्त। ऐसे में, कोई महिला प्रसव पीड़ा से गुजर रही हो या फिर किसी व्यक्ति की अचानक तबीयत खराब हो गई तो लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सोशल मीडिया पर गढ़वाल व कुमाऊं मंडल के दो केस कुछ इसी प्रकार से सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। जहां स्थानीय लोगों को प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को कंधे पर स्ट्रेचर के माध्यम से अस्पताल तक ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। हालांकि, दोनों पूरी तरह सलामत हैं, अस्पतालों में उनका इलाज चल रहा है। लेकिन, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य की सच्चाई कुछ यही है। इन इलाकों में निवास कर रहे लोगों के पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है। इसीलिए इन घटनाओं को सोशल मीडिया पर लोग शेयर कर रहे हैं कि साल बदले, सरकारें बदली, बस बदली नहीं तो पहाड़ों की तकदीर।
केस-1
चमोली जिले के सुदूरवर्ती गांव बलाण में एक महिला का प्रसव होने के बाद स्वास्थ्य गड़बड़ाने लगा। ग्रामीणों ने कड़ी मशक्कत के बाद करीब 3 किमी दूर पैदल दूरी तय कर बीमार महिला को डंडी कंडी के सहारे कालीताल नामक स्थान तक पहुंचाया। इसके बाद महिला को एक और वाहन से घेस गांव पहुंचाया गया। लेकिन, घेस में दो स्थानों पर सड़क बंद होने से करीब 1 किमी पैदल दूरी तय कर एक बार फिर से बड़ी मशक्कत के बाद ग्रामीणों ने भू-स्खलन प्रभावित सड़क से पार करवाया। वहीं, एक अन्य वाहन से करीब 1 बजे हॉस्पिटल कर्णप्रयाग में भर्ती कराया गया। जहां महिला का उपचार चल रहा है।
केस-2
सोशल मीडिया पर दूसरा वीडियो धारचूला विकासखंड के मेतली गांव के बीमार व्यक्ति की है। जिसको स्थानीय लोग डोली के सहारे 12 किमी पैदल चलकर सड़क पर पहुंचा रहे हैं। उसके बाद वहां से 108 एंबुलेंस के जरिए डीडीहाट अस्पताल तक पहुंचाया। लेकिन, यहां भी उन्हें प्राथमिक उपचार मिला और हायर सेंटर के लिए रेफर कर किया गया।
सोशल मीडिया पर आने वाले रिएक्शंस
भाई भगवान के आशीर्वाद और ग्रामीणों की हिम्मत से वो बच गई, ये बड़ी सुखदायक खबर है।
-एसजे-अंकिता का परिवार।
बहुत मुश्किल पर अच्छी बात ये है कि हॉस्पिटल पहुंच गई है और अब उपचार मिल रहा है।
-योगेश तोमर।
बड़ा दुखदायी। उम्मीद है कि वो जल्द ही रिकवर होंगी।
-सिनेमा फ्रेम्स।
पहाड़ में कठिन समस्या है।
-शैलेश भारद्वाज।
बहुत ही खतरनाक रास्ते हैं।
-आहिल खान।
जब तक सरकारें धर्म के नाम पर जीतते रहेंगे। पूरे भारत का यही हाल होगा।
-राजीव यादव।
डबल इंजन का अभूतपूर्व विकास?
-एसएस रावत।
बुरे हाल हैं, आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में।
-विजय भट्ट।
धन्य है ये लोग, जो एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं। धरातल की हकीकत कुछ और ही होती है।
-संजय पुरोहित।
हमने सरकारी व्यवस्था के कायम होने से पहले ही अपनी व्यवस्था को समाप्त कर दिया। अब हमारे पास न हमारी व्यवस्था रही न सरकारी। पहले हर गांव में एक-दो दाई मां होती थी, जो ऐसे नाजुक मौके पर संभाल लेती थी। सरकार को गांव में ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू करना चाहिए।
-विशेश्वर गौनियाल।
उत्तराखंड बने 24 साल हो गए। लेकिन, सड़क कई गांवों के लिए स्वप्न के समान हैं। पीडब्ल्यूडी रोड बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण करती भी तो मुआवजा खाता खतौनी में। जिसके नाम उतनी भूमि न हो, उसको दे देती है। राजस्व पटवारी से सवाल किया तो सीधे डीएम नाराज, कुछ कीजिए।
-विजय कांत नवानी।
अगर आप ये सोच रहे हो कि सब कुछ उनके ऊपर पहाड़ पे आ जाएगा तो पॉसिबल नहीं है। सबको पता है कि एक्सेसिबिलिटी मैदान में है। पहाड़ के हालात अभी नहीं सुधरेंगे, जो बनेगा, सभी बर्बाद हो जाएगा।
-दीपांशु गुप्ता।
हम सब की उम्मीदें ही गलत है। सरकारें बनती हैं अपने विकास के लिए। आप देखो, अलग राज्य बनने का क्या आधार होता है। सबको पता ही है। सच में लगता है कि किस व्यवस्था में जी रहे हैं हम सब। कैसे आजादी है ये। यहां जनता हमेशा ही शोषित ही है। बस जब तक किसी का दांव नहीं लगता, तब तक ही ईमानदार हैं वो।
-नवीन बंसल
साल बदले, सरकारें बदलीं, पर नहीं बदले पहाड़ी वोटर। पहले भी हमने बेईमान चुने और अब भी। काम के बंदों और क्षेत्रीय दलों को हमने तब भी ठेंगा दिखाया और इस बार भी। करनी हमारी तो दोषी कौन।
-विजय कुमार नेगी।
जब इलेक्शन होते हैं, उस टाइम जो नेता वोट मांगने आपके दरवाजे पर आते हैं, आप भी तो उन्हें इग्नोर कर सकते हो। उस वक्त तो आप उनकी खारितदारी में लग जाते हो। इन सबसे बाहर निकला, अपनी सोच को बदलो।
-सुरेंद्र सिंह।
कठोर काननू होता तो मरीज हेलीकॉप्टर से जाता। सिलक्यारा टनल भूल गए। पूरा सिस्टम लग गया था। एक देश एक कानून।
-बीएस बिष्ट।
dehradun@inext.co.in