देहरादून ब्यूरो। सीएम ने कहा कि नीति आयोग द्वारा हिमालयी राज्यों में, यहां की इकोलॉजी, जनसंख्या घनत्व, फ्लोटिंग पॉपुलेशन और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को देखते हुए ही विकास का मॉडल बनाया जाए, जो विज्ञान-प्रौद्योगिकी पर आधारित हो। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हिमालयी राज्यों के लिए एक विशेष गोष्ठी का आयोजन किया जाए। मुख्यमंत्री ने इसका आयोजन उत्तराखंड में करने का अनुरोध किया।
जलधाराओं को पुनर्जीवित करेंगे
सीएम ने उत्तराखंड के कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत बिन्दुओं की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए अनुरोध किया कि केन्द्र पोषित योजनाओं के फॉरम्यूलेशन में राज्य की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 'वन स्किम फिट्स ऑलÓ के स्थान पर राज्य के अनुकूल 'टेलर मेड स्किम्सÓ तैयार करने पर भारत सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिये। पर्यटन, हार्टीकल्चर और सगन्ध पौध आधारित योजनाओं से राज्य को लाभ होगा। जल धाराओं के पुनर्जीवीकरण के लिये एक वृहद कार्यक्रम जिसमें चेक डैम और छोटे-छोटे जलाशय निर्माण करने की जरूरत है। इसमें भारत सरकार का तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग चाहिए। ग्रीन बोनस की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तराकंड पूरे देश को महत्वपूर्ण ईको सिस्टम सर्विस उपलब्ध करा रहा है। राज्यों के मध्य संसाधनों के आवंटन में इन पारिस्थितिकी सेवाओं को भी देखा जाना चाहिए।
फ्लोटिंग पॉपुलेशन का दबाव
सीएम ने कहा कि उत्तराखंड में फ्लोटिंग पॉपुलेशन का दबाव इफ्रॉस्ट्रक्चर पर पड़ रहा है। इस वर्ष अब तक लगभग 30 लाख चारधाम यात्री और चार करोड़ से ज्यादा कांवडिय़े राज्य में पहुंचे। लगातार इस संख्या में निरन्तर वृद्धि होने की संभावना है। राज्य की अधिकांश स्थानीय निकायों का आकार एवं उनके वित्तीय संसाधन काफी कम है। इसलिये केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय संसाधनों के हस्तांतरण में इस महत्वपूर्ण तथ्य को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
एसडीजी हासिल करने के प्रयास
सीएम ने कहा कि 2014 के बाद राज्य में सड़कों, रेलमार्गों, स्वास्थ्य सेवाओं और विभिन्न केन्द्र पोषित योजनाओं से विकास तेजी से बढ़ रहा है। विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बदरीनाथ, केदारनाथ के मास्टर प्लान के अनुरूप पुनर्निर्माण कार्य भी तेजी से कराया जा रहा है। सस्टेनबल डेवलपमेंट गोल्स को प्राप्त करने में उत्तराखंंड अग्रणी राज्य रहा है। राज्य में कृषि विविधीकरण की अपार संभावनायें हैं। मंडुआ, झंगोरा, रामदाना, पर्वतीय दलहन जैसे गहथ, राजमा आदि और संगध एवं औषधीय पौधों को निरन्तर बढ़ावा दिया जा रहा है। सेब और किवी के क्षेत्रफल और प्रसंस्करण क्षमता को बढ़ाया जा रहा है। राज्य में 38,500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में मिलेट एवं पौष्टिक अनाज फसलों का जैविक उत्पादन किया जा रहा है। डेनमार्क को उत्तराखंड से मिलेट का निर्यात किया जा रहा है। 6400 हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती के लिए क्लस्टर चयन का काम पूरा कर लिया गया है।