देहरादून, (ब्यूरो): हर साल दून में पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। अगर अब भी नहीं संभलें तो भविष्य में इसके दुष्परिणाम देखने को मिल सकते है। यह अलार्मिंग टाइमिंग का सिग्नल दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ-साथ यह समस्या बढ़ती जाएगी और वह दिन ज्यादा दूर नहीं होगा। जब रोजाना जरुरत के लिए पानी जुटाना मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए सभी को संभलने की जरुरत हंै। यह जानकारी दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की ओर से चलाए गए 'पानी बड़ी चीज है। कैंपेन के तहत राउंड द टेबल पैनल डिस्कशन के दौरान जल संस्थान के अधीक्षण अभियंता राजीव सैनी ने दी। उन्होंने बताया कि वाटर संरक्षण के लिए शिकायत के आधार पर पानी की बर्बादी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। ये तो सभी को समझना होगा कि हमें डंडे से सुधरेंगे या फिर खुद ही संभल जाए। सभी को समझने की जरूरत है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग सबसे कारगर
पैनल डिस्कशन के दौरान विभिन्न क्षेत्रों से आए विशेषज्ञों ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग (आरडब्ल्यूएच) आज समय की मांग है। वर्षा जल संग्रहण जमीन को रिचार्ज करने का सबसे सरल तरीका है। कहा कि पार्षद से लेकर मंत्री तक के घर में हजार लीटर का टैंक रखें। जिससे रेन वाटर हार्वेस्टिंग किया जा सकता है। इसके साथ ही होटल्स में भी रेन वाटर को स्टोर किया जा सकता है। व्यापारी प्रवीन सैनी ने सिटी के स्कूलों और खाली पड़े ग्राउंड्स में वाटर हार्वेस्टिंग करने की वकालत की।
विभागों में सामंजस्य नहीं होना दिक्कत
चर्चा के दौरान जब सिटी में जगह जगह हो रही वाटर लीकेज पर चर्चा की गई तो। जल संस्थान के अधिकारी ने स्वीकारा सिटी में जो लाइन है वह बहुत पुरानी है। अगर कहीं पर लीकेज की समस्या आती है तो वहां खुदाई करवाने के लिए परमिशन कई-कई दिनों में मिलती है। यही नहीं परमिशन के लिए खर्चा भी ज्यादा बताया जाता है। ऐसे में खुदाई के लिए परमिशन में ही कई कई दिन लग जाते है। ऐसे में कई हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। अधिकारी ने बताया कि इस पर चर्चा की जा रही है।
पेपर का कम करें यूज
पेपर मिल और लैदर इंटस्ट्री में सबसे ज्यादा पानी खर्च होता है। एक पेपर को तैयार करने में कई लीटर पानी खर्च होता है। पब्लिक को इस विषय में समझना होगा कि पेपर को व्यर्थ में ही बर्बाद न करें। इससे न केवल पेड़ बचेंगे, बल्कि पानी भी बचाया जा सकता है।
वाटर हार्वेेस्टिंग से बचेगा पैसा
सोसायटी ऑफ पॉल्यूशन एंड इनवायरमेंटल कंजरवेशन साइंटिस्ट (स्पेक्स) के सचिव डॉ। बृज मोहन शर्मा ने कहा कि वर्षों से दून की प्रमुख रिस्पना और बिंदाल नदी में चुगान बंद है, जिससे वाटर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। नदी में जमा भारी सिल्ट बरसात में विनाशकारी साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि नदियों में हर 10 मीटर पर गड्ढे होने चाहिए। उन्होंने वाटर कंजर्वेशन के लिए हर घर में काम करने पर जोर दिया।
अधिक से अधिक लगाएं पेड़
महाकाल के दीवाने संस्था के मेंबर गौरव जैन ने कहा कि पानी के स्रोतों के आस-पास पौधरोपण जरूरी है। हम जमीन से पानी निकाल रहे हैं, लेकिन उसमें डाल कुछ नहीं रहे हैं। ऐसे ही चलता रहा, तो एक दिन अंडरग्राउंड वाटर खत्म हो जाएगा। तब जीवन बचाना मुश्किल हो जाएगा।
ये फैक्ट्स आए सामने
- सरकारी विभागों में सामंजस्य की कमी।
- वाटर क्राइसिस कम करने को पानी बचाना ही होगा।
-दूषित पानी की अपने घर पर ही करें जांच।
- जल संस्थान समय-समय पर पानी बचाने को करता है अवेयर।
- कैंप के माध्यम से पब्लिक को रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए किया जाता है अवेयर।
- पॉपुलेशन का बढऩा, पेड़ों का कटना वाटर क्राइसिस के लिए जिम्मेदार।
- सुपरक्लोरीनेशन की पब्लिक को दी जाए पहले से जानकारी, जिससे कम हों बीमारियां।
दून में पानी की क्राइसिस को कम करने के लिए घरों में दो-दो टैंक बनाने को कर्मचारी अवेयर कर रहे हैं। इसके साथ ही सभी को समझने की जरूरत है। इसके साथ ही सर्वे किया जा रहा है। ताकि पानी की बर्बादी कम की जा सके।
राजीव सैनी, अधीक्षण अभियंता, जल संस्थान
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