देहरादून ब्यूरो। शीशमबाड़ा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट देख रही कंपनी रैमकी का कामकाज शुरू से ही विवादों में रहा है। कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों के अनुसार प्लांट में जमा होने वाले कचरे का बायो डीजल बनाया जाना था, लेकिन शीशमबाड़ा में ऐसा कुछ नहीं हुआ। पिछले वर्षों में यहां लगातार कचरे के ढेर लगते चले गये। इसमें नगर निगम के अधिकारी भी बराबर के दोषी रहे हैं। किसी भी अधिकारी ने रैमकी के कामकाज पर देखने की जरूरत नहीं समझी। कुछ अधिकारी प्लांट का निरीक्षण करने पहुंचे भी तो उन्होंने केवल खानापूर्ति ही की और रैमकी मनमानी करती रही।
नहीं सुना गया लोगों का विरोध
कचरे की प्रोसेसिंग न होने से शीशमबाड़ा में कचरे के पहाड़ बनते गये और प्लांट के चारों ओर कचरे की बदबू आसपास के क्षेत्रों में फैलती चली गई। लोग बार-बार विरोध के लिए सड़कों पर उतरते रहे, लेकिन नगर निगम के तत्कालीन अधिकारियों ने समस्या का स्थाई समाधान करने की दिशा में काम करने के बजाय प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलवाने और मुकदमे दर्ज करवाने की रणनीति अपनाई।
वक्त से पहले विदाई
नगर निगम और रैमकी इनवायरो कंपनी की जुगलबंदी समय से पहले ही टूट गई। शीशमबाड़ा प्लांट बनाने के लिए नगर निगम की ओर से 22 करोड़ रुपये दिये गये थे और रैमकी ने बाकी काम पीपीपी मोड में किया था। नगर निगम और रैमकी के बीच 15 वर्ष का एग्रीमेंट हुआ था, लेकिन यह जुगलबंदी समय से पहले ही टूट गई।
70 करोड़ का बिल
रैमकी एनवायरो और उसकी सिस्टर कंपनी चेन्नई एमएसडब्ल्यू ने नगर निगम का 70 करोड़ रुपये बकाया का बिल थमाया है। यह बकाया शीशमबाड़ा प्लांट की मेटेनेंस और सिटी के 69 वार्डों में कचरा उठाने का है। रैमकी एनवायरो कंपनी शीशमबाड़ा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट का रखरखाव करती है तो चेन्नई एमएसडब्ल्यू सिटी के 100 में से 69 वार्डों का वेस्ट कलेक्ट करने का काम करती है।
कोर्ट जा सकता है मामला
रैमकी और नगर निगम के बीच चल रही तनातनी के बीच यह तय है कि नगर निगम रैमकी के दावे के मुताबिक 70 करोड़ का बिल चुकता नहीं करेगा। ऐसे में रैमकी और चेन्नई एमएसडब्ल्यू कोर्ट जा सकते हैं। यह भी माना जा रहा है कि 10 अक्टूबर को नोटिस पीरियड पूरा हो जाने के बाद भी रैमकी और चेन्नई एमएसडब्ल्यू अपना काम कुछ दिन और जारी रख सकते हैं। ऐसा ये कंपनियां कोर्ट में अपना पक्ष मजबूत करने के लिए कर सकती हैं।
ये हो सकती है योजना
रैमकी और चेन्नई एमएसडब्ल्यू अब इस रणनीति पर काम कर रहे हैं कि कोर्ट में उन पर यह आरोप न लगाया जा सके कि सिटी को अधर में छोड़ दिया। वे नोटिस के बाद भी नगर निगम को अपनी व्यवस्था करने के लिए पूरा समय दे सकती हैं। ताकि कोर्ट में मजबूती के साथ यह दावा रखा जा सके कि उन्होंने नोटिस पीरियड खत्म होने के बाद भी नगर निगम को सहयोग दिया।
नगर निगम में ये एग्जिक्यूटिव कौन
नगर निगम के पास बेशक कचरा उठाने और अन्य कार्यों के लिए पैसे की कमी न हो, लेकिन निगम में बड़ी संख्या में ऐसे एग्जिक्यूटिव नियुक्त हैं, जिन्हें हर महीने नगर निगम वेतन देता है। हालांकि ज्यादातर एग्जिक्यूटिव के बारे में यह तक पता नहीं कि वे किस पटल पर काम कर रहे हैं और उन्हें क्या जिम्मेदारियां दी गई है।