देहरादून, (ब्यूरो): महिलाओं को एक ऐसा गैंग, जिसके पास न हथियार और क्रिमिनल रिकॉर्ड। फिर भी नाम है गैंग। आपको ये सुनकर अजीब लग रहा होगा। लेकिन, ये सच है। जी हां, बात हो रही है दून से करीब 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित गुलाबी गैंग की। ये वह गुलाबी गैंग है, जिसमें केवल महिलाएं शामिल हैं और सभी महिलाएं पिंक ड्रैस में अपने हाथों से हुनर को अंजाम देते हैं। इस गुलाबी गैंग की काबिलियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी पहचान न केवल उनके अपने क्षेत्र में है, बल्कि, उत्तराखंड के अलावा कई राज्यों में वह अपने साख की शाखाओं को फर्श से अर्स तक पहुंचा चुकी हैं।

किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं

गुलाबी गैंग। जिसकी अब अपनी अलग पहचान बन चुकी है। इस गैंग को यहां तक पहुंचाने का श्रेय जाता है श्यामा चौहान को। श्यामा चौहान की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं हैं। एक वक्त था जब श्यामा को एक-एक पाई के लिए मोहताज होना पड़ा। यहां तक कि परिस्थितियों व हालातों ने श्यामा को इतना झकझोर कर दिया कि घर तक बिकने को तैयार हो गया। लेकिन, कहते हैं कि मुश्किलों से सामना करने वाले ही असल बाजीगर होते हैं। श्यामा ने इन सबका सामना किया, वह घबराई नहीं। बल्कि, अपनी मेहनत, लगन और हुनर बरकरार रख कर वह हासिल किया, जिसकी श्यामा को जरूरत थी। यही कारण है कि आज श्यामा अपने परिवार का ही नहीं, कई परिवारों की आजीविका का भी गुजर बसर कर रही हैं।

पाबंदियों की दहलीज कीं पार

श्यामा चौहान एक ऐसी महिला हैं, जिनके पति का कारोबार चौपट हो गया। फिर क्या, श्यामा ने परिवार की मदद के लिए घर से ही छोटे से रोजगार से शुरूआत की। लेकिन, इस दौरान सामाजिक बंदिशें यानि महिलाओं में घूंघट प्रथा की वजह से सामाजिक दुश्ववारियों का भी सामना करना पड़ा। इसके बावजूद श्यामा ने हालातों का डटकर मुकाबला किया। सामाजिक बंदिशों को तोड़ा। बल्कि, खुद सफलता का मुकाम हासिल किया। वक्त ने भी किस्मत के साथ करवट बदली और उनकी अगुवाई में सैकड़ों महिलाएं रोजगार पा रही हैं और आगे भी अन्य महिलाओं को रोजगार से जोडऩे की बात कर रही हैं।

2012 में रखी थी बुनियाद

बात श्यामा की सफलता की करें तो वर्ष 2012 में उन्होंने महिला जागृति स्वयं सहायता समूह की बुनियाद दखी। इसके बाद वह ब्लॉक मुख्यालय में सरकारी योजनाओं से सबंधित जानकारी लेने पहुंची। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के बारे में जानकारी लेते हुए उन्होंने समूह को नए सिरे से संगठित किए जाने की सलाह दी। इस स्वयं सहायता समूह के बदौलत श्यामा चौहान ने ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान में जूट बैग और फाइल फोल्डर बनाने का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद स्वयं सहायता समूह में 6 महिलाओं को साथ में जोड़ा और इस दिशा में काम शुरू करने के लिए कदम बढ़ा दिए। लेकिन, उनके सामने चैलेंज ये था कि आखिर काम शुरू करने के लिए कुछ धनराशि की जरूरत पड़ेगी। उसका भी समाधान ढूंढ निकाला और बैंक से 25 हजार का लोन ले लिया।

गैंग इन प्रोडक्ट्स को कर रहा है तैयार

-जूट बैग

-फाइल फोल्डर

-नो प्लास्टिक बैग

-टेक होम राशन

-अचार

-एलोवेरा जेल

-जूस

-डेयरी उत्पाद

अपने नाम किए, कई सम्मान

अब इसको श्यामा चौहान की काबिलियत कहें या फिर किस्मत, जो भी है। लेकिन, अपने मेहनत और लगन के बदौलत श्यामा चौहान को उत्तराखंड का सबसे बड़ा नारी श्क्ति सम्मान तीलू रौतेली अवॉर्ड प्रदान किया जा चुका है। जबकि, कई और भी सम्मान उनके नाम हैं।

महिलाओं को करती हैं प्रेरित

श्यामा चौहान अपने संगठन को सशक्त बनाना चाहती है। यही वजह है कि संगठन की सभी महिलाएं गुलाबी रंग की ड्रेस पहने रखती हैं। इसीलिए उनकी पहचान अब गुलाबी गैंग नाम से प्रसिद्ध हो गई है। श्यामा चौहान की खासियत ये भी कि वह आर्थिक , शारीरिक, मानसिक व सामाजिक स्तर पर सशक्त होने के लिए अपनी सहयोगी महिलाओं को प्रेरित करती है।

मास्टर ट्रेनर के तौर पर दे रही ट्रेनिंग

गुलाबी गैंग की संचालिका श्यामा चौहान बताती हैं कि गैंग से जुड़ी महिलाओं ने सबसे पहले अपने घर व गांव से ही इसकी शुरुआत की। अब वे श्यामा उत्तराखंड के अलावा दूसरे गांवों तक बतौर मास्टर ट्रेनर के तौर पर महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं।

गुलाबी गैंग पर एक नजर

-श्यामा की बायोग्राफी पर बन रही लघु फिल्म

-जब माधुरी दीक्षित की फिल्म देखी, गुलाबी गैंग बनाने का लिया फैसला

-इस गैंग से जुड़ी महिलाएं पहनते हैं गुलाबी रंग के कपड़े।

-गैंग से जुड़ी हुई हैं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर 10 हजार महिलाएं।

-ये महिलाओं को इस ग्रुप से जुडऩे के बाद मिल पा रहा है रोजगार।

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