- दो दशक पहले तक दून की पहचान ही बासमती थी, अब नाम मात्र का उत्पादन
- दून में सिमट रहा बासमती का उत्पादन, 500 हेक्टेयर भूमि में हो रही वर्तमान में खेती
- कंपनियां टैग लगा कर दूसरे प्रदेशों की बासमती दून के नाम से बेच रही विदेशो में
देहरादून (ब्यूरो): गिनी चुनी जगहों पर ही उत्पादन सिमट कर रह गया है। लोकल में 150 रुपये और विदेशों में 350 रुपये प्रति किलो बासमती बिक रही है। बासमती की खेतों में अब बड़ी-बड़ी इमारतें उग आई हैं। मेन सिटी से पैदावार लगभग न के बराबर हो गई है। आउटर के इलाकों में थोड़ा बहुत बासमती की खेती हो रही है। जानकारों की मानें तो सरकार के पास दून की बासमती जिसे टाइप-3 नाम से भी जाना जाता है इसका बीज संरक्षित न होने से यह प्रजाति सिमट रही है। इसकी जगह बासमती की दूसरी प्रजातियां ले रही है।
विदेशों में खूब बिक रही बासमती
दून में बासमती टाइप-3 का उत्पादन भले ही विलुप्ति की कगार पर है, लेकिन दून की बासमती आज भी विदेशों में खूब बिक रही है। जानकरों की मानें तो सऊदी अरब से लेकर जर्मन तक कई देशों में दून की बासमती की खुशबू दूसरी प्रजातियों ने ले ली है। कंपनियां दून बासमती के टैग लगाकर विदेशों में बड़े पैमाने पर बासमती का इम्पोर्ट कर रहे हैं। आजकल कई किसान दून में जम्मू बासमती 370 का उत्पादन कर रहे हैं। यह बासमती थी खुशबूदार है और इसकी पैदावार दून की बासमती के मुकाबले अधिक होने से किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।
बासमती की खेत पर एक नजर
वर्ष एरिया कुल उत्पादन
हेक्टेयर में क्विंटल में
2021 255 6481
2022 260 9099
2023 480 15915
विकासखंडवार बासमती प्रोडक्शन
वर्ष विकासनगर सहसपुर डोईवाला
2020 20 34 23
2021 25 115 36
2022 30 120 38
2023 50 130 42
(उत्पादन हेक्टेयर में)
10 हजार क्विंटल पैदावार
वर्तमान में दून में बासमती का उत्पादन मात्र 10 हजार क्विंटल तक हो रहा है। करीब 480 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही बासमती की खेती हो रही है। जानकारों के अनुसार 30 साल पहले दून में बासमती की उत्पादन 50 से 70 हजार क्विंटल से अधिक होता था। राजधानी बनने के बाद शहर का तेजी से विकास हुआ। कृषि भूमि पर रातों-रात बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई। मिड सिटी में ही अधिक मात्रा में बासमती की खेती होती थी। राजधानी बनने के बाद इन जगहों पर आवासीय भवन और कॉलोनियां खड़ी हो गई, जिससे बासमती की खेती घट गई।
चिपचिपी और छोटी बासमती
कृषि विभाग की टेक्नीकल अधिकारी गरिमा पुनेठा ने बताया कि दून की बासमती दिखने में छोटी होती है, लेकिन पकने के बाद चावल लंबा हो जाता है। यह चिपचिपी भी होती है। इसकी खुशबू प्रेशर कुकर की सीटी से गायब हो जाती है। आज लोग जानकारी के अभाव में बासमती के लंबे दाने को बासमती समझते हैं। इस प्रजाति की पैदावार बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
यहां होती थी बासमती की खेती
माजरा
जीएसएस रोड
ब्राह्मणवाला
रायपुर
लाडपुर
दुधली
डोईवाला
नया गांव पेलियो
सहसपुर
विकासनगर
पैदावार और कीमत
10000 क्विंटल रह गया प्रोडक्शन
6500 प्रति क्विंटल तक धान की कीमत
4000 प्रति क्विंटल है दूसरी प्रजाति के धान की कीमत
500 हेक्टेयर में हो रही वर्तमान में खेती
180 हेक्टेयर तक पहुंच गई थी पैदावार
350 प्रति किलो तक विदेशों में कीमत
150 प्रति किलो तक लोकल में कीमत
क्या कहते हैं किसान
दून की बासमती के दाने की लंबाई घट रही है। पुराना बीज संरक्षित न होने से इसकी ब्रीड मिक्स होने से खुशबू भी कम हो रही है। इसकी जगह नई हाइब्रिड क्वालिटी सीएसआर-30 प्रजाति की बासमती अधिक पैदावार दे रही है। जल्दी बीमारी पकडऩे से भी किसान इसकी पैदावार करने बच रहे हैं।
यशपाल राणा
दून की बासमती की मात्रा घटने के पीछे कई कारण हैं। जिन इलाकों में यह प्रजाति होती थी वहां पर या तो भवन खड़े हो गए हैं या फिर प्लॉटिंग हो चुकी है। नई जगहों पर इसकी पैदावार कम होने से किसान इसकी खेती कम कर रहे हैं।
अनिल नौटियाल
दून की बासमती टाइप-3 की खेती धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है। इसके लिए सरकार को बीज संरक्षित कर किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए। यह दून की पहचान है। इसका फायदा उठाकर कंपनियां दूसरी वैरायटी की प्रजाति को दून बासमती के नाम से विदेशों में इंपोर्ट कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।
उम्मेद सिंह बोरा
बासमती को पिछले तीन-चार साल से सरकार की ओर से तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं। तीन साल पहले तक 180 हेक्टेयर में ही इसकी खेती रह गई थी जो अब बढ़कर 450 हेक्टेयर तक पहुंच गई है। भविष्य में इसकी मात्रा और अधिक करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
नीरज कुमार, अपर प्रोजेक्ट डायरेक्टर (आत्मा), कृषि विभाग, देहरादून
DEHRADUN@inxt.co.in