- चयनित स्थलों पर भी प्लांट का भारी विरोध, दूसरी जगहों की तलाश शुरू
- आबादी से 500 मीटर बाहर बनाया जाना है सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट

देहरादून (ब्यूरो): स्थानीय लोगों का कहना है कि प्लांट के इर्द-गिर्द कीचड़ ही कीचड़ जमा रहता है, जिससे उठती दुर्गंध से लोग परेशान हैं। डेड एनीमल्स को भी यहां पर रखा जा रहा है। सड़े हुए जानवरों को चील उठाकर कई घर लोगों के घरों में डाल रहे हैं। इन सारी परेशानियों को देखते हुए शीशमबाड़ा क्षेत्र के लोग लंबे समय से प्लांट को अन्यत्र स्थापित करने की मांग की जा रही है। सरकार ने आश्वासन भी दिया है कि जल्द प्लांट को यहां से हटाया जाएगा। इसके लिए दून में चंद्रबनी, हर्रावाला, रायपुर, मोथरोवाला में जगह भी चिन्हित की गई थी, लेकिन वहां पर विरोध के चलते अब दूसरी जगहों की तलाश की जा रही है। जिससे प्लांट शिफ्टिंग फिर कुछ और समय के लटक गया है। उधर, पछवादून संघर्ष समिति के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने प्लांट के अंदर जमकर हंगामा किया। कहा कि वह 2018 से प्लांट से उठने वाली बदबू से परेशान हैं। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि किसी भी कीमत पर प्लांट को अब यहां ज्यादा दिन तक बर्दाश्त नहीं करेंगे।

100 वार्ड और 400 मैट्रिक टन कूड़ा
बता दें कि दून में कूड़ा उठान को लेकर 15 साल के लिए नगर निगम ने रैम्की से अनुबंध किया था, लेकिन 4 साल में यह अनुबंध टूट गया। वर्ष 2018 में शहर का कूड़ा प्रबंधन रैम्की कंपनी को दिया गया था। कंपनी शहर के 100 वार्डों से घर-घर से रोजाना करीब 400 मैट्रिक टन कूड़े का उठान कर शीशमबाड़ा प्लांट में शोधन को ले जा रही थी, लेकिन विवादों के चलते रैम्की को बाहर का रास्ता दिखाया गया। कंपनी पर कूड़ा उठान और डिस्पोजल को लेकर कई आरोप थे। शीशमबाड़ा प्लांट का बदबू के चलते 2018 से ही विरोध चला आ रहा है।

अब वाटरग्रेस और इकॉन से अनुबंध
नगर निगम ने रैम्की को बाहर करने के बाद अब वाटरग्रेस और इकॉन कंपनी को वेस्ट मैनेजमेंट के डिस्पोजल और प्लांट का कार्य सौंपा है। कंपनी ने काम संभाल लिया है, लेकिन लोगों की समस्याएं जस की तस है। प्लांट से अभी भी लगातार बदबू फैल रही है। पिछले माह डीएम सोनिका ने प्रशासन और नगर निगम के अधिकारियों की बैठक ली, जिसमें प्लांट के लिए चंद्रबनी, रायपुर और हर्रावाला में जगह चिन्हित की गई। इसके लिए वन विभाग को जल्द एनओसी जारी करने के डीएम ने निर्देश दिए। लेकिन फिलहाल यह सारी कसरतें बेकार हो गई। बताया जा रहा है कि चिन्हित स्थलों के विरोध के चलते अब दूसरे स्थानों पर जगह की तलाश की जा रही है।

अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा रिसाइकिल
रैम्की के बाद नई कंपनी वाटरग्रेस भी कूड़े का वैज्ञानिक तरीके से शोधन नहीं कर पा रही है, जिससे प्लांट से लगातार उठ रही दुर्गंध लोगों का पीछा नहीं छोड़ पा रही है। पछवादून संयुक्त समिति के अध्यक्ष अनिल गौड़ का कहना है कि प्लांट के दुर्गंध से क्षेत्र की करीब एक लाख से अधिक की आबादी प्रभावित है। शीशमबाड़ा प्लांट में शोधन का काम वैज्ञानिक तकनीक पर नहीं हो रहा है। एक कर्मचारी के भरोसे पूरा प्लांट चल रहा है। शीशमबाड़ा प्लांट के नाम पर सिर्फ डंपिंग जोन बना हुआ है, जिससे हालात चिंताजनक बनी हुई है।

शीशमबाड़ा में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट का विधिवत और वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण नहीं हो रहा है, जिससे क्षेत्र में दुर्गंध फैल रही है और लोग बीमार पड़ रहे हैं। प्लांट को यहां से जल्द से हटाया जाए। सरकार ने प्लांट स्थापित करने के दौरान जो सपने दिखाए, वह पांच साल में भी अधूरे हैं।
अनिल गौड़, अध्यक्ष पछवादून संयुक्त समिति

शीशमबाड़ा प्लांट को शिफ्टिंग के लिए पूर्व में जो जगह चिन्हित की गई थी वहां पर भी विरोध हो रहा है। प्लांट को आबादी से 500 मीटर दूर लगाया जाना है। इसके लिए अब दूसरे स्थानों पर भूमि चिन्हित करने की कार्रवाई चल रही है, भूमि का चयन होते ही प्लांट शिफ्ट किया जाएगा।
मेयर, सुनील उनियाल गामा
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