देहरादून, (ब्यूरो): राजधानी की एक मात्र रिस्पना रिवर जिसे लोग बरसाती नदी के नाम से जानते हंै। यह नदी बरसात में ही दिखती है। बाकी सालभर इसमें पानी नहीं दिखता। यह आधा सच है। पूरा सच जानकर आप हैरान हो जाएंगे। यह बरसात नहीं बल्कि सदानीरा यानि बारामास रिवर है। यह नदी सालभर बहती है। दिखती इसलिए नहीं कि यह सतह से करीब 4 से लेकर 5 फीट नीचे बहती है। बरसात में पानी अधिक होने पर यह सतह के ऊपर आ जाती है। शोधकर्ता अभिजय नेगी ने बताया कि आईआईटी रुड़की की ओर से किए गए रिसर्च में यह जानकारी सामने आई है।

8 जल धाराओं वाली रिस्पना
रिस्पना मॉसी फॉल से शुरू होती है। मॉसी फॉल मसूरी के वुड स्टोक स्कूल के पास है। कुछ दूरी पर थल्याणी गाड है। यह अलग-अलग 6 से 8 धाराओं से मिलकर बन रही है। मोथरोवाला के बाद रिस्पना सुसुवा बन जाती है। वुड स्टोक से लेकर खनक माफी रायवाला तक पहुंचने के बाद यह गंगा में मिल जाती है। कई लोगों की आपत्ति है कि गंगा में मिलने के बाद भी सरकारी की ओर से इसे गंगा बेसिन प्रोजेक्ट में शामिल नहीं किया गया है।

मकड़ैत कंक्रीटिंग में तब्दील
रिस्पना के कैचमेंट एरिया के पास मकड़ैत में जबरदस्त तरीके से कंस्ट्रक्शन हो रहा है। यहां पर होम स्टे, गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट व अन्य निर्माण तेजी से रहा है। इसके अलावा नदी किनारे बस्तियां भी दिन-रात बस रही है। कंक्रीटिंग के चलते नदी लगातार सूखती जा रही है। पिछले 30 साल में नदी में 80 परसेंट पानी सूख गया है।

पुनर्जीवन के प्रयास नाकाफी
एक्सपर्ट का कहना है कि जिस तेजी से नदी के कैचमेंट एरिया से लेकर नदी किनारे कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है। उस हिसाब से नदी के पुनर्जीवन के कार्य नहीं हो रहे हैं। नदी लगातार सूखती जा रही है। गंदगी के चलते नदी का पानी खेती लायक भी नहीं रह गया है। इस पर सरकार को गहन मंथन कर वृहद स्तर पर सफाई के साथ ही पौधरोपण व अन्य जल संरक्षण के कार्य करने की जरूरत है।

दिखती क्यों नहीं रिस्पना
रिसर्चकर्ताओं के अनुसार रिस्पना रिवर करीब 25 से 30 साल पहले तक साफ-सुधरी बहती थी। नदी किनारे जैसे-जैसे बस्तियां बस्ती गई। वैसे-वैसे नदी गंदी होने लगी। बस्ती वासियों ने सारा कूड़ा नदी में डालना शुरू किया। धीरे-धीरे नदी कम यह कूड़ा डंपिंग जोन बन गई। बस्तियों का सीवर भी सीधे नदी में डाल दिया गया। आज नदी में लाखों टन कचरा जमा हो गया। कचरा व गाद भरने से नदी का जल नीचे चला गया। यही वजह है कि नदी सिर्फ बरसात के दिनों में दिखती है, बाकी दिनों में सतह से करीब 5 फुट नीचे बहती है।

सालों से नहीं हुई सफाई
रिस्पना नदी में कूड़े के ढेर जमा हैं। लाखों टन कचरा व प्लास्टिक जमा होने से नदी सतह से काफी ऊपर उठ चुकी है। सफाई न होने से उप खनिज की मात्रा भी काफी जमा है। बीच-बीच में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयास भी हुए, लेकिन यह प्रयास अंजाम तक नहीं पहुंचे। कुछ दिन चले अभियान के बाद सालों तक मुड़कर नहीं देखा गया, जिससे नदी की पूरी तरह सफाई नहीं हो पाई।

15 एमएलडी पानी पीने के लिए
रिस्पना का आधा पानी शहर में पीने के लिए सप्लाई हो रहा है। रिस्पना के कैचमेंट एरिया से ही पीने का पानी खींचा जा रहा है। ऊंचाई पर होने के कारण कैचमेंट एरिया से दून के लिए ग्रेविटी के जरिए पानी पहुंच रहा है। इसमें किसी भी तरह की बिजली उपयोग में नहीं आ रही है। सबसे कम खर्च पर सबसे अधिक पानी रिस्पना रिवर से उपलब्ध हो रहा है।

रिस्पना से जुड़ी खास बातें
- रिसर्च में आया सामने, सतह से 5 फीट नीचे बह रही नदी
- 8 जल धाराओं के मेल से बन रही रिस्पना
- मसूरी के वुड स्टोक से थल्याड़ी गाड समेत कई गाड-गदेरे शामिल
- कैचमेंट एरिया से हो रहा 15 एमएलडी पानी दून के लिए सप्लाई
- लाखों टन कचरे और गाद से भर चुकी है नदी
- बस्तियों के सीवर व कूड़े से गंदगी से पटी नदी
- एक्सपट्र्स का मानना है कि पुनर्जीवन के हों वृहद स्तर पर कार्य

रिस्पना एक बारामास नदी है। गाद और कूड़े के ढेर के चलते नदी की सतह नीचे चली गई है। सीवर व कूड़े आदि की गंदगी के चलते नदी प्रदूषित हो गई है। यदि ठोस प्रयास हों, तो नदी अभी तक पूर्व अवस्था में आ सकती है।
डॉ। दीपक भट्ट, जियोलॉजिस्ट, बीडीएस, पीजी कॉलेज

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