देहरादून, (ब्यूरो): पहले तो दून में पार्किंग लिमिटेड हैं। इसके बावजूद भी अवैध पार्किंग खुलेआम चल रही है। पुरानी तहसील परिसर में वर्तमान में किसी ठेकेदार का कोई ठेका नहीं है। मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने बहुमंजिला बिल्डिंग के लिए पुरानी तहसील के पुराने भवन तोड़ दिए। नियमानुसार जब कंस्ट्रक्शन कार्य शुरू हो गया है, तो सुरक्षा की दृष्टि से इस एरिया में पार्किंग नहीं की जा सकती है। बताया जा रहा है कि जिस ठेकेदार के नाम पर पहले पुरानी तहसील परिसर का पार्किंग का ठेका था उसका कॉन्ट्रेक्ट 30 सितंबर को पूरा हो चुका है। एमडीडीए ने भी प्रशासन को पार्किंग संचालन बंद करने को पत्र लिखा है। मजेदार बात यह है कि प्रशासन भी यहां पर पार्किंग नहीं ले रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यहां से रोजाना लाखों की पार्किंग कौन उठा रहा है। तहसील प्रशासन के नाक के नीचे ही जब अवैध वसूली हो रही है शहर के अन्य पार्किंग के क्या हाल होंगे। इसे आसानी से समझा जा सकता है।
एक लाख है रोजाना कमाई
जानकारों की मानें तो पुरानी तहसील सिटी के सबसे बड़े पलटन मार्केट, धामावाला, मोता बाजार की एक मात्र पार्किंग है। इस एरिया में दूसरी कोई बड़ी पार्किंग नहीं है। इस लिहाज से पुरानी तहसील में लोग वाहन पार्किंग करते हैं। पुलिस भी चौपहिया वाहनों को इससे आगे नहीं जाने देती हैं। बताया जा रहा है कि इस पार्किंग में रोजना लगभग दो हजार वाहन आते-जाते हैं। यहां पर दोपहिया से 20 और चौपहिया से 50 रुपए तक पार्किंग शुल्क लिया जा रहा है। इस हिसाब से पार्किंग से एक से डेढ़ लाख रोजाना की कमाई बताई जा रही है।
लाखों के राजस्व की चपत
सवाल यह है कि पुरानी तहसील परिसर में जब वैध पार्किंग ही नहीं है, तो अवैध रूप से पार्किंग की अनुमति किसने दी है। अवैध पार्किंग से की जा रही लाखों की शुल्क वसूली से किसी फायदा है। जब पार्किंग वैध नहीं है, तो राजस्व प्रशासन को जाने का सवाल ही नही है। जब प्रशासन को राजस्व नहीं मिल रहा है, तो पार्किंग की अनुमति भी नहीं है। बगैर अनुमति के कैसे कोई पार्किंग चला रहा है। यह तो अंधेर नगरी चौपट राजा जैसा है।
क्यों लावारिश छोड़ दी पार्किंग
रोजाना लाखों रुपए की कमाई करने वाली पार्किंग को प्रशासन ने लावारिश छोड़ दिया है। जब यहां पर बिल्डिंग बन रही है, तो पार्किंग क्यों संचालित की जा रही है। यदि पार्किंग चलाई जानी है, तो इसकी शॉर्ट टाइम परमिशन क्यों नहीं दी गई, ताकि राजस्व प्रशासन को मिल जाता। ऐसा अनजाने में हो रहा है या फिर जानबूझ कर अधिकारी मौन हैं। ये वे सवाल हैं, जो अवैध वसूली के लिए विभाग के मिलीभगत की ओर से इशारा कर रहा है।
बन रही मल्टीस्टोरी पार्किंग
पुरानी तहसील जर्जर हो चुकी थी। यहां बिल्डिंग सौ साल पुरानी हो गई थी। इसको तोड़कर नया कंस्ट्रक्श्न ही एक मात्र विकल्प था। इस एरिया में कहीं भी पार्किंग नहीं है। प्रशासन ने यहां पर मल्टीस्टेारी पार्किंग बनाने का निर्णय लिया है। इसका जिम्मा एमडीडीए को सौंपा गया है। एमडीडीए मल्टीस्टोरी पार्किंग का एस्टीमेट तैयार कर रहा है। बताया जा रहा है कि यहां पर 6-7 मंजिला पार्किंग बनाई जानी है। इस बिल्डिंग के बनने से तहसील एरिया में पार्किंग की बड़ी समस्या समाप्त हो जाएगी।
अगैर अनुमति के हो रही वसूली
एमडीडीए के अफसरों ने बताया कि पुरानी तहसील परिसर में मल्टीस्टोरी पार्किंग को पुराने निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया है। मल्टीस्टोरी पार्किंग निर्माण के लिए जल्द टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। यहां चल रही पार्किंग के संचालन को बंद करने के लिए स्थानीय प्रशासन को पत्र भेजा गया है। फिलहाल पार्किंग लेने को कोई अधिकृत नहीं है।
गजब: 10 महीने से नहीं चला पता
उत्तराखंड में किस कदर अफसर दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। इसकी बानगी दून में देखने को मिली है। तहसील प्रशासन के नाक के नीचे एक दो दिन, सप्ताह, महीना नहीं, बल्कि पिछले 10 महीने अवैध पार्किंग चलाकर लाखों की वसूली की जा रही है, लेकिन तहसील प्रशासन को इसकी कानो-कान खबर नहीं है। क्या यह संभव है या फिर पब्लिक की आंखों में धूल झोंका जा रहा है। यदि वास्तव में तहसील प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है, तो ये बहुत गंभीर बात है। यह कार्यों में घोर लापरवाही को दर्शाता है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस मामले में कार्रवाई करता है। या नहीं।
पुरानी तहसील परिसर में पार्किंग कौन ले रहा है, इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है। यहां पर एमडीडीए मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बना रहा है। शायद एमडीडीए कर रहा होगा। इस बारे में पता करके बता पाऊंगा।
विवेक राजौरी, तहसीलदार, सदर, दून
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