- 25 से 40 हजार तक खर्च आ रहा है एक पेड़ को ट्रांसप्लांट करने में
- तकनीकी के साथ ही जगह की भी हो रही है भारी कमी

देहरादून, 23 मार्च (ब्यरो)।
राजधानी दून में ट्रांसप्लांट तकनीक पेड़ों को नया जीवन दे रही है। रोड चौड़ीकरण की जद में आए वर्षों पुराने पेड़ों को पुनर्जीवित करने में ट्रांसप्लांट अहम भूमिका निभाग रहा है। दून में यह प्रयोग पहली बार हुआ है। खास बात यह है कि ट्रांसप्लांट किए गए पेड़ 70 से 80 परसेंट तक जीवित होने पर पीडब्ल्यूडी के अफसर गदगद हैं। अफसरों का कहना है कि ट्रांसप्लांट में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरण को बचाने के लिए यह तकनीक बहुत ही फायदेमंद है, लेकिन चुनौतियां राह में रोड़ा अटका रही है। सबसे पहले उपयुक्त जमीन नहीं मिल पा रही है। सिटी के अंदर कहीं जगह नहीं मिल पा रही है।

80 परसेंट तक सर्वाइवल रेट
पीडब्ल्यूडी के अफसरों का कहना है कि पेड़ों का सर्वाइवल रेट ओवरऑल 70 से 80 परसेंट तक है। रायपुर में थोड़ा कम है, लेकिन डांडा लखौंड, खुदानेवाला, हर्रावाला आदि जगहों पर ट्रांसप्लांट किए गए पेड़ों का सर्वाइवल काफी अच्छा है। परिणाम अच्छे मिले तो दूसरे प्रोजेक्ट्स में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।

बड़ी डाया की मशीन नहीं
इससे पेड़ों को निकालने में कुछ पेडों की जड़ें टूट रही हैं, जिससे पेड़ सुरक्षित नहीं निकल पा रहे हैं। अफसरों का कहना है कि विदेशी मशीनें काफी महंगी हैं। जिनको खरीदना मुश्किल है। ऐसे में जितना भी संभव हो रहा है जेसीबी और पोकलेन मशीनों से ही काम चलाया जा रहा है।

ये हैं चैलेंजेज
- ट्रांसप्लांट के नहीं मिल पा रही उपयुक्त जगह
- बड़ी मशीनों के लिए जगह नहीं, छोटी से नहीं चल रहा पूरा काम
- संकरी सड़कें और घुमावदार मोड़ आ रहे आड़े
- सड़कों पर बिजली, टेलीफोन की तारें भी बन रही रुकावटें
- नदी के किनारे लगाए गए पेड़ कर रहे कम सर्वाइव
- मेंटनेंस के साथ ही अधिक दूरी से महंगी पड़ रही तकनीक

ये फलदार पेड़ किए ट्रांसप्लांट
- आम
- जामुन
- लुकाट
- गुलमोहर
- जर्कन
- सिल्वर ओक
- तुन
- रीठा
- सेमल
- कंजी
- छतुन

दून-पांवटा से 6000 पेड़ कटे
दून-पांवटा हाइवे के चौड़ीकरण के काम काम चल रहा है। रोड चौड़ीकरण के लिए करीब 6 हजार पेड़ काटे गए हैं। काटे गए पेड़ साल प्रजाति के थे। एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पीके के मौर्य का कहना है कि साल के पेड़ ट्रांसप्लांट में सर्वाइव नहीं करते हैं। इसलिए पेड़ों को ट्रांसप्लांट नहीं किया गया। लेकिन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट को सॉल के पेड़ों को आर्टिफीशियल तरीके से कैसे लगा सकते हैं, इसके रिसर्च के लिए एफआरआई को 1 करोड़ रुपए दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि भविष्य में दूसरे प्रोजेक्ट््स पर ट्रांसप्लांट तकनीक को यूज करने का अधिक से अधिक प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया दून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट के तहत भी 157 पेड़ों को ट्रांसप्लांट किए गए हैं।

हाल ही में कटे पेड़
- 20000
पेड़ काटे गए अभी तक सड़क चौड़ीकरण में
- 6000
पेड़ दून-पांवटा मार्ग से काटे गए
- 10752
पेड़ काटे गए दून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट के लिए
- 1500
पेड़ किए गए हैं अब तक ट्रांसप्लांट
- 25000
से लेकर 40 हजार तक खर्च आ रहा है एक पेड़ को ट्रांसप्लांट करने पर
- 40
करोड़ दिए गए हैं दून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे में पौधरोपण के लिए

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ट्रांसप्लांट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके हरियाली को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। पहली बार यह तकनीक ईजाद की जा रही है। फिलहाल इसे दून में एक-दो प्रोजेक्ट पर प्रयोग के तौर पर किया गया है। रिजल्ट सही रहा तो अन्य प्रोजेक्ट्स में इस पर विचार किया जाएगा।
दीपक कुमार यादव, एचओडी, पीडब्ल्यूडी

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इस तकनीक को सभी विभागों को अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए। तभी पेड़ों की लाइफ बच पाएगी। पेड़ों को बचाने का सरकार ने जो कदम उठाया है वह काफी सराहनीय है।
प्रमोद कपरुवाण शास्त्री, अध्यक्ष, देवभूमि महासभा

इससे जहां पर्यावरण नुकसान होने बचेगा वहीं शहर में हरियाली भी बची रहेगी। एक पेड़ एक पीढ़ी होती है। रोड से हजारों पेड़ जो बेकार जाने थे उन्हें बचाकर बड़ा काम किया जा रहा है।
अनुराग उनियाल, आरटीआई एक्टिविस्ट

नए पेड़ लगाने के साथ पुराने पेड़ों को बचाकर बहुत ही नेक काम किया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि इस तकनीक को उन सभी विकास कार्यों पर लागू करना चाहिए, जिनसे पेड़ों को काटा जाना है।
कुसुम शमा, सोशल वर्कर

जितना आवश्यक पेड़ लगाना है उससे अधिक जरूरी पेड़ को बचाना है। पेड़ सौ परसेंट सर्वाइव क्यों नहीं कर रहे हैं, अच्छी बात यह है कि पेड़ों को नया जीवन मिल रहा है।
केएस महर

सड़क किनारे भी पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जाना चाहिए। हरिद्वार बाईपास रोड भी पेड़ ट्रांसप्लांट किए गए हैं। इसी तरह दूसरी सड़कों पर पेड़ लगाए जाएं, इससे हरियाली भी बची रहेगी व पेड़ भी नहीं मरेंगे।
गोविंद सिंह

पेड़ों लगाने के साथ ही उनका संरक्षण भी जरूरी है। समिति के सदस्य ट्री गार्ड फ्री मुहिम के तहत सैकड़ों पेड़ों को लोहे के ट्री गार्ड से मुक्त करा चुके हैं। आज गढ़ी कैंट में 5 पेड़ों को मुक्त कराया गया।
रोशन राणा, अध्यक्ष, महाकाल सेवा समिति