देहरादून (ब्यूरो) राज्य आंदोलनकारियों को वर्ष 2004 में नारायण दत्त तिवारी सरकार के समय रिजर्वेशन देने का फैसला लेते हुए जीओ जारी किया गया था। इस आधार पर सरकारी सेवाओं में आंदोलनकारियों को आरक्षण दिया जा रहा था। वर्ष 2011 में हाईकोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए आरक्षण पर रोक लगा दी। इसके बाद आंदोलनकारी आरक्षण को कानूनी रूप देने की तैयारी चल रही थी, जो इस वर्ष फरवरी में विधानसभा से विधेयक पारित कर पूरी हुई।

एक नजर
-वर्ष 2004 में आरक्षण देने का जीओ हुआ था जारी।
-नैनीताल हाईकोर्ट ने वर्ष 2011 में 10 परसेंट क्षैतिज आरक्षण पर लगाई रोक।
-वर्ष 2015 में हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए इस आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया।
-वर्ष 2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से पारित करा राजभवन को भेजा आरक्षण विधेयक।
-सितंबर 2022 में सात साल बाद राजभवन ने वापस लौटाया विधेयक।
-मार्च 2023 में कैबिनेट ने लिया फिर से विधेयक लाने का निर्णय।
-सितंबर 2023 में कैबिनेट ने विधेयक लाने का प्रस्ताव किया पारित।
-सात सितंबर 2023 को विधानसभा ने प्रवर समिति को सौंपा विधेयक।
-11 नवंबर को प्रवर समिति ने विधानसभा अध्यक्ष को सौंपी रिपोर्ट।
-फरवरी 2024 में सदन ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित कर राजभवन भेजा।
-राजभवन की मुहर लगने पर 18 अगस्त को अधिनियम बनने का रास्ता साफ।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के त्याग और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमने राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 परसेंट क्षैतिज आरक्षण देने का निर्णय लिया। सदन से पारित इस विधेयक पर राजभवन ने सहमति दे दी है। इसके साथ ही राज्य आंदोलनकारियों की एक बड़ी लंबित मांग पूरी हो गई है।
-पुष्कर ङ्क्षसह धामी, सीएम, उत्तराखंड।

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