देहरादून (ब्यूरो) : दून निवासी राधिका गुरुंग की ज्यादातर स्कूलिंग और कॉलेज की पढ़ाई दून से हुई। जब भी समय मिला, वह पेंटिंग, कड़ाई-सिलाई के साथ कोरियोग्राफी और ट्यूशन पढ़ाती रही। पति आर्मी में थे। पहले लखनऊ जाने का मौका मिला, जहां उन्होंने अपने पसंदीदा पढ़ाई जारी रखी। वापस दून लौटने पर उन्होंने एक कॉलेज में ब्यूटिशियन काम भी संभाला। दून वापसी के दौरान उन्होंने कैटरिंग की शुरुआत की। लेकिन राधिका को फिर से हैदराबाद जाने का मौका मिला। जहां उन्होंने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत सेल्फ इंप्लॉयमेंट की शुरुआत करते हुए टॉप स्थान पाया। उन्हें 6 हजार रुपए का उपहार मिला। सुभाष चंद्र बोस की नातिन के साथ भी काम करने का मौका मिला। राधिका ने 18 दिन तक जरूरतमंद बच्चे को अपने पास रखकर उसकी परवरिश भी की और जरूरतमंद महिलाओं की डिलीवरी करवाने में भी वह आगे रही। नीति आयोग की ओर से गवर्नमेंट जॉब का ऑफर आया, ज्वाइन नहीं किया। लेकिन, मिस मैरीज इंडिया का खिताब अपने नाम किया है। फिलहाल, राधिका का समाज सेवा में हाथ बढ़ा रही है, जिसको वह जीवन का लक्ष्य बता रही हैं।


समाज के लिए प्रेरणा बन गए गुरविंदर

दिल्ली के एक व्यक्ति को एक दिन ऐसी प्रेरणा मिली कि वह जरूरतमंद बच्चों के उत्थान के लिए ऋषिकेश के होकर रह गए। जी हां, मन में यदि समाज के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो रास्ता खुद ब खुद बन जाता है। गुरविंदर सलूजा ने इस बात को सत्य साबित किया है। यही वजह है कि उनकी चाहत और मेहनत से दर्जनों जरूरतमंद बच्चों का भविष्य संवर रहा है। उन्हें इस बात की खुशी है कि जो बच्चे कल तक सड़कों पर घूम रहे थे, वह पढ़ लिख कर भविष्य में कुछ बनेंगे।

पिता के साथ आए थे ऋषिकेश

गुरविंदर सलूजा के मुताबिक वह कात्यायनी मंदिर दिल्ली की संस्था से जुड़े हैं। वे अपने पिता ज्ञान चंद के साथ अक्सर ऋषिकेश आया करते थे। इस दौरान उन्हें चंद्रेश्वर नगर में हर बार कुछ च्च्चे स्कूल छोड़ गलियों में घूमते नजर आते थे। जब उन्होंने च्च्चों से पूछा तो कोई जबाव नहीं मिला। फिर क्या, वे सवाल का जबाव ढूंढने के लिए उनके माता-पिता तक पहुंच गए। पता चला कि वे आर्थिक रूप से कमजोर हैं। पब्लिक स्कूल की फीस नहीं दे पाते। इस वजह से वे च्च्चों को स्कूल तक नहीं भेज पा रहे। इस दौरान गुरविंदर के मन में विचार आया कि क्यों न वह स्कूल खोलकर च्च्चों पढ़ाए, वहीं से नए सफर की शुरुआत हुई। गुरविंदर नेे पिता और माता के नाम पर ज्ञान करतार पब्लिक स्कूल के नाम से चंद्रेश्वरनगर में 2016 में स्कूल की स्थापना की। उस वक्त 37 च्च्चे थे, अब संख्या 200 तक पहुंच गई। गुरविंदर अपने स्कूल में च्च्चों को निशुल्क शिक्षा के साथ ही दिन का खाना और बुक्स दे रहे हैं। हालांकि, दिल्ली के कुछ लोगों ने उनकेइस नेक काम में हेलप की है। अब ऋषिकेश में भी लोग उनसे जुडऩे लगे हैं।

dehradun@inext.co.in