देहरादून (ब्यूरो) कोच अनूप बिष्ट कहते हैं कि पहले नौकरी की कमी थी। 2012 में स्पोट्र्स कोटा बंद होने के कारण युवाओं में स्पोट्र्स के प्रति थोड़ा कम इंट्रेस्ट देखने को मिला। लेकिन, अब एथलीट्स और प्लेयर्स को सरकारी नौकरी में सरकार की ओर से कोटा निर्धारित किया गया है। ऐसे में अब फिर से युवाओं के खेल के प्रति उत्साह नजर आने लगा है। यही कारण है कि देश में जिन टॉप-10 एथलीट्स का चयन होता है, उनमें से करीब 3 प्लेयर्स उत्तराखंड के शामिल रहते हैं। ये उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है।

बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर से उम्मीद
कोच अनूप बिष्ट बताते हैं कि उत्तराखंड की स्पोट्र्स पॉलिसी में काफी बदलाव देखने को मिले हैं। सरकार आउट ऑफ टर्न नियुक्ति दे रही है। यहां तक कि अब प्लेयर्स को कैश अवॉर्ड तक दिया जा रहा है, जो हरियाणा के बराबर है। यहां तक कि नेशनल लेवल पर क्वालीफाई करने पर 2 लाख का कैश अवॉर्ड मिल पा रहा है। जिससे प्लेयर्स को न केवल मोटिवेशन मिल रहा है। बल्कि, उनमें गेम्स के इंट्रेस्ट भी बढ़ रहे हैं। वैसे भी अब उत्तराखंड में नेशनल गेम्स प्रस्तावित हैं। इसको लेकर बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर पर खास ध्यान दिया जा रहा है। इसका लाभ राज्य के नए खिलाडिय़ों को मिल सकेगा। दून स्थित महाराणा प्रताप स्पोट्र्स कॉलेज में पहले एक एथलेटिक्स ट्रैक था, अब 8 से 10 सिंथेटिक ट्रैक बन रहे हैं।

यहां बन रहे सिंथेटिक ट्रैक
-श्रीनगर
-पिथौरागढ़
-लोहाघाट
-रुद्रपुर

स्पोट्र्स हॉस्टल व कोच बढ़े
गेम्स में बेहतर परफॉर्मेंस के लिए जहां पहले सीमित 13 कोच हुआ करते थे, अब हर जिले के लिए 8 कोच व 30 कॉन्ट्रेक्ट कोच हैं। ऐसे ही पहले एक फुटबॉल हॉस्टल था। अब हर जिले में एक हॉस्टल है। अब कुल 13 स्पोट्र्स हॉस्टल हो चुके हैं और हर हॉस्टल में 25 बच्चे हैं।

मनीष ने दिलाई थी पहचान
चमोली निवासी रियो ओलंपियन भारतीय एथलीट मनीष सिंह रावत का कहना है कि जिस प्रकार से सरकार प्लेयर्स को सपोर्ट कर रही है। ऐसे ही ग्रासरूट पर हर गेम्स में सरकार सपोर्ट करे। आने वाले समय में उत्तराखंड हर खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करेगा। मनीष रावत ने 2016 में रियो ओलंपिक में 20 किमी वॉक रेस में पार्टिसिपेट किया था। उन्होंने ये रेस1 घंटा 21 मिनट 31 सेकेंड में पूरी कर 13वां स्थान हासिल किया था। वर्तमान में वे इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं और एथलीट ट्रेनर हैं, वे 2023 से लगातार खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। मनीष रावत वही एथलीट हैं, जिनका सफर गांव से शुरू होकर ओलंपिक तक रहा। उनके एथलेटिक्स में दिए गए योगदान को युवा खिलाड़ी रोल मॉडल के तौर पर लेते हैं।

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