देहरादून, (ब्यूरो): कहते हैं कि बच्चें घर के संस्कार और माहौल से ज्यादा सीखते हैं। घर का जैसा वातावरण होगा बच्चे उसी का अनुसरण करेंगे, लेकिन जिन घरों में पैरेंट्स ही अवेयर नहीं होंगे, तो उन घरों के बच्चों में क्या कोई उम्मीद की जा सकती है। क्या उनसे रूल्स फॉलो करने की आदत आएगी। यही परखने के लिए वेडनैसडे को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की टीम ने स्कूलों की छुट्टी के वक्त शहर के विभिन्न इलाकों का दौरान किया, तो हकीकत सामने आई। पुलिस लगातार बिना हेलमेट और नाबालिगों को अवेयर करने को ड्राइव चला रही है, लेकिन इसका असर कहीं देखने को नहीं मिल रहा है। खुद पेरेंट्स नियम फॉलो करने को तैयार नहीं हैं, तो बच्चे कैसे होंगे। यह चिंता का विषय है। इस पर सभी को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

एक बाइक, 5-5 सवार

छुट्टी के वक्त स्कूलों के आस-पास का नजारा देखकर नहीं लगता है कि यहां कोई ट्रैफिक नियम लागू भी है। बच्चे ही नहीं तमाम अभिभावक भी बिना हेलमेट धड़ल्ले से खुले आम सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं। कई स्कूटी और बाइक पर 4-4 व 5-5 बच्चों को लादकर ले जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि वे बच्चे नहीं कोई सामान लेकर जा रहे हैं। आखिर इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया जा रहा है। यदि कोई हादसा हो जाता है, तो तब खुद नहीं पुलिस-प्रशासन पर जिम्मेदारी थोप देंगे।

ट्रैफिक नियमों की नहीं जानकारी

इन नाबालिगों को न तो यातायात नियमों की जानकारी होती है और न ही दुर्घटना होने का भय। ये जितनी तेजी से वाहन चला सकते हैं उतनी तेजी से चलाते गुजर जाते हैं। काफी रफ्तार से इन्हें वाहन चलाता देख लोग सहम जाते हैं और दुर्घटना होने की आशंका से कांप भी जाते हैं। कई रेसर बाइक नाबालिगों के पास है।

पहले खुद सुधरे पैरेंट्स

नाबालिग वाहन चालकों के पकड़े जाने पर चालान के अलावा कोई ऐसा कानून नहीं है, जिससे पुलिस कोई बड़ी कार्रवाई करे। इसमें माता-पिता की भी विशेष भूमिका होती है कि वो अपने बच्चों को तय उम्र से पहले वाहन की चाबियां न पकड़ाएं और नाबालिग चालक अपनी और दूसरों की जान से खिलवाड़ न करें। लोगों का कहना है कि नाबालिगों के तेज गति से वाहन चलाने के लिए उनके अभिभावक भी जिम्मेदार हैं। नाबालिगों को बाइक अथवा कार की चाबी सौंपते समय उन्हें सोचना चाहिए कि उनका बच्चा अभी वाहन चलाने योग्य हुआ है या नहीं। साथ ही उसकी उम्र ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की हुई है या नहीं।

ट्रैफिक रूल्स फॉलो नहीं

- हेलमेट न लाइसेंस, चला रहे फिर भी बाइक-स्कूटी

- कहां है नियम, एक-एक बाइक-सकूटी पर 4-4 व 5-5 बच्चे सवार

- पुलिस खानापूर्ति के लिए चलाती है ट्रैफिक अवेयरनेस अभियान

- नाबालिगों के पास नहीं होता लाइसेंस, फिर भी चलाते हैं बाइक-स्कूटी

- अभिभावक भी तोड़ रहे ट्रैफिक नियम, पुलिस भी मूंद लेती है आंख

इन इलाकों में चलाते वाहन

रेसकोर्स

धर्मपुर

राजपुर रोड

पटेलनगर

जीएमएस रोड

शिमला बाईपास

पेरेंट्स खुद जिम्मेदार

सभी को नियम फॉलो करना आवश्यक है। इससे जहां खुद की जान बची रहेगी वहीं दूसरों की जान से भी खिलवाड़ नहीं होगा। जो लोग निमय फॉलो नहीं करते हैं वहीं एक्सीडेंट होने पर सड़कों पर बवाल करते हैं।

आशीष गर्ग

सुरक्षित जिंदगी के लिए ट्रैफिक नियमों का पालन करना अति आवश्यक है। इसमें किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। अभिभावक हों या बच्चे सभी को ट्रैफिक नियमों की जानकारी होनी चाहिए।

मनोज कांबोज

मेरा मानना है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को रेसर बाइक ही नहीं बाइक-स्कूटी भी नहीं देनी चाहिए। बच्चे एक-दूसरे की देखादेखी करके बाइक में स्टंट और रेसिंग करने लगते हैं, जिसमें बड़ा जोखिम होता है।

अर्जुन सिंह रावत

हमारा मानना है कि स्कूलों में भी बच्चों को ट्रैफिक निमयों की जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही बाइक के खतरा से भी उन्हें अवगत कराना चाहिए। स्कूली बच्चों के लिए साइकिल सबसे आसान सवारी साबित होती है।

अनुराग कुकरेती

जीएमएस रोड पर कई सारे स्कूल हैं। जिनमें ज्यादातर बच्चे बाइक व स्कूटी लेकर स्कूल पहुंचते हैं। क्योंकि स्कूल में दोपहिया वाहन की एंट्री स्टूडेंट्स के लिए बैन है। इसलिए कैंपस के बाहर ही गाड़ी पार्क करते स्कूल जाते हैं। छुट्टी होने के बाद ट्रिपल राइडिंग व विदआउट हेल्मेट फर्राटा भरते सड़कों पर नजर आते हैं। ऐसे में यह स्टूडेंट््स सड़क पर चलने वाले और लोगों के लिए भी खतरा पैदा करते हैं।

आईएसबीटी से पटेलनगर तक कई सारे बड़े स्कूल हैं। जिनमें स्टूडेंट्स की संख्या काफी अधिक है। यहां पर भी कैंपस में स्टूडेंट्स के लिए टू व्हीलर लाना मना है। फिर भी बच्चे पावर बाइक और एक्टिवा लेकर आते हैं और कैंपस के बाहर ही सेफ जगह देखकर वाहन पार्क कर देते हैं। छुट्टी होते ही तमाम ट्रैफिक रूल्स को धत्ता बताते हुए ट्रिपल राइडिंग और विदआउट हेलमेट सड़कों पर वाहन दौड़ाते हैं।

सुभाष रोड पर शहर के कई बड़े स्कूल मौजूद हैं। हालांकि यहां पर ज्यादातर बच्चे स्कूल वैन से आते-जाते हैं और कुछ बच्चे पेरेंट्स के साथ ही स्कूल आते हैं। इसके बावजूद भी कुछ सीनियर क्लास के बच्चे अपने व्हीकल्स से स्कूल आते-जाते हैं। यहां पर भी और स्कूलों जैसा ही नजारा देखने को मिलता है। ज्यादातर बच्चे ट्रैफिक रूल्स को फॉलो नहीं करते और हेलमेट न लगाना तो जैसे इन स्टूडेंट्स की आदत बन चुकी है। फिर चाहे भले ही वो किसी दुर्घटना का शिकार ही क्यों न हो जाएं।

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