हालात खराब होपे पर भी नहीं डगमगाए कदम
कई बार पॉजिटिव होने के बाद भी संभाल रहीं जिम्मेदारी
बच्चों के फोटो को देखकर ही कर लेतीं हैं तसल्ली
देहरादून। देश में महामारी कि बीच आज इंटरनेशनल नर्सेज डे है। ऐसे माहौल में नस दिन का महत्व और भी ज्यादा हो जाता है। बेहद कठिन हालात और पारिवारिक परिस्थितियों के बीच बैलेंस बनाते हुए मरीजों की सेवा के काम में जुटी नर्सेज को आज हर कोई कृतज्ञता के साथ धन्यवाद देना चाहता है। अपने घरबार से दूर ये नर्सेज बीते डेढ़ साल से बिना थके लगातार कोविड पेशेंट की देखभाल कर रही हैं। इस बीच यह खुद संक्रमण का शिकार भी हुई और फिर ठीक होने के बाद उसी जोश और जज्बे के साथ अपनी जिम्मेदारी पूरा करने में जुट गई। सिटी के हर हॉस्पिटल में आज यही हाल है। हर जगह विपरीत हालात में पीपीई किट पहने इन नर्सेज का हर कोई धन्यवाद दे रहा है।
नहीं किया सेवा से समझौता
कोरोना संक्रमण के बीच जब सब जगह नेगेटिविटी फैली, लगातार लोगों के मरने जैसी खबरें आ रहीं हैं। लगातार कोरोना के मामले बढ़ते देख जब सभी घबरा रहे हैं, मगर नर्सेज ने सेवा से समझौता नहीं किया। इनकी ही समर्पण भाव का नतीजा है कि कई लोगों ने कोरोना की जंग जीत अपने घर सकुशल लौट रहे हैं। वह हर समय अपनी ड्यूटी में जुटीं हैं और हिम्मत की नई मिसाल पेश कर रहीं हैं।
नहीं कतराते कदम
कोरोना पॉजिटिव पेशेंट की देखभाल कर रहीं नर्सेज इन दिनों हॉस्पिटल में भर्ती पेशेंट का परिवार बनी हुई हैं। उनके दवा से लेकर उनके खाने पीने और साफ सफाई की व्यवस्था करते है। आईसीयू में भर्ती पेशेंट को अपने हाथों से खाना तक खिलाती हैं। कोरोना संक्रमित पेशेंट की देखभाल के लिए उनके पास जाने से उनके कदम नहीं ठिठकते, जिससे उनकी देखभाल में कोई कमी न हो।
कई बार करते है डबल शिफ्ट
दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने जब इन नर्सेज से बात की तो उन्होंने बताया कि कई बार क्षमता से ज्यादा पेशेंट हो जाते थे। ऐसे में भी हॉस्पिटल से किसी भी पेशेंट को बेड न होने के कारण वापस जाना पड़े ऐसी नौबत नहीं आने दी। हौसला रखा और दिन रात सेवा कर पेशेंट की देखभाल की। इस दौरान कभी समय का पता नहीं चलता था तो कभी कोई साथी संक्रमित हो जाता तो डबल शिफ्ट भी करनी पड़ी।
गांधी शताब्दी हॉस्पिटल में हर तरह के पेशेंट आते है। यहां गर्भवती महिलाओं के उपचार के लिए किसी भी तरह की नेगेटिव रिपोर्ट की जरूरत नहीं होती है। सैंप¨लग कराने के बाद दूसरे दिन रिपोर्ट आती है पॉजिटिव आने पर उन्हें अलग बेड में रखा या अन्य हॉस्पिटल में भेजा जाता है। ऐसे में हमेशा संक्रमण का खतरा बना रहता है। घर में दो बेटियां हैं, वह भी छोटी हैं। इनकी देखभाल में परिवार बड़ा सहारा बना। जिससे कदम कभी डगमगाए नहीं। कोरोना पॉजिटिव होने के बाद दोबारा ड्यूटी ज्वाइन कर जिम्मेदारी निभाई।
मीनाक्षी जखमोला, प्रांतीय अध्यक्ष, उत्तराखंड नर्सेज एसोसिएशन
दो साल पहले दून हॉस्पिटल में बतौर नर्सिग स्टाफ ज्वाइन किया था। इस बीच कोरोना महामारी के चलते अपने पैरेंट्स से मिलने नहीं जा सकी। माता पिता चमोली के दुशात गांव में रहते हैं। अक्सर वह लगातार कोरोना संक्रमण के मामले सुनकर घबरा जाते हैं। ऐसे में उन्हें भी हौसला देकर दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। कई बार डबल ड्यूटी भी करने की नौबत आ जाती है।
दीक्षा गणिया, स्टाफ नर्स, दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल
हमेशा दून हॉस्पिटल के आईसीयू में ड्यूटी रही। इस बीच कई बार कोरोना संक्रमण का शिकार भी हुई। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। पति व परिवार ने साथ दिया तो तो कोरोना संक्रमण काल में भी ड्यूटी कर जिम्मेदारी निभाई। कई कई दिन बच्चों से नहीं मिल पाती थी। इसका भी दुख रहता था। मेरी 17 और 7 साल की दो बेटियां हैं। उनकी देखभाल में पति और परिवार ने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया, जिससे ड्यूटी करने में आसानी हुई।
कमला देवरी, सीनियर नर्सिग ऑॅफिसर दून महिला हॉस्पिटल
मार्च 2020 से लगातार दून हॉस्पिटल में ड्यूटी कर रही हूं। दो छोटे-छोटे बच्चों को कभी माता-पिता के घर, कभी उनके चाचा-चाची के घर छोड़ा। परिवार को खुद से दूर रखा। इस बीच ससुर की कोरोना संक्रमण का शिकार होकर मौत हो गई। इसके बाद भी लगातार जिम्मेदारी निभा रही हूं। हॉस्पिटल में कई बार पेशेंट को रोता हुआ देख उनका हौसला बढ़ाते हैं। खुद का मोरल डाउन हुआ, लेकिन खुद को भी संभाला, लेकिन कभी भी जिम्मेदारी से समझौता नहीं है। बच्चों की फोटो देखकर ही मन संतुष्ट किया।
भारती जुयाल, नर्सिग ऑफिसर, आईसीयू दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल