-उत्तराखंड में कुछ ऐसी है हॉकी खेल की सच्चाई
-कई बार नेशनल टीम तक के लिए नहीं मिल पाते प्लेयर्स
-सरकार व एसोसिएशन का उदासीन रवैया, सजा भुगत रहे प्लेयर्स
देहरादून,
आज पूरा देश स्पोर्ट्स डे मना रहा है। खेल को बढ़ावा देने के लिए बड़े-बड़े वादे के साथ खेल व खिलाडि़यों को बधाइयां दी जा रही हैं। लेकिन, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर मनाए जाने वाले खेल दिवस के मौके पर उत्तराखंड में खेलों की सच्चाई ये है कि राज्य में आज तक हॉकी की कोई भी स्टेट चैंपियनशिप ही नहीं हुई। यही नहीं, कई बार ऐसा भी हो चुका है कि राज्य में हॉकी के लिए खिलाडि़यों के अभाव में नेशनल टीम तक नहीं बन पा रही है। इधर, दून स्थित महाराणा स्पोर्ट्स कॉलेज में हॉकी का एस्ट्रो टर्फ भी अब तक पूरी तरह तैयार नहीं हो पाया है। हालांकि, कुछ निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं और दावा किया जा रहा है कि स्पोर्ट्स कॉलेज के हॉकी टर्फ नेशनल लेवल के टर्फ है।
40 से अधिक खेल संघ
राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई बड़ी घोषणाएं की जाती रही हैं और अभी की जा रही हैं। लेकिन, अभी भी राज्य में खेलों की स्थिति क्या है, सब वाकिफ हैं। कहने के लिए राज्य में करीब 40 से अधिक एसोसिएशन हैं। उनमें से हॉकी एसोसिएशन भी अस्तित्व में है। स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट के वेबसाइट पर अपलोड खेल एसोसिएशन की सूची के अनुसार उत्तरांचल हॉकी एसोसिएशन के अध्यक्ष की जिम्मेदारी पूर्व डीजीपी पीडी रतूड़ी और सचिव राजीव मेहता के पास है। लेकिन राजीव मेहता खुद आईओसी के जनरल सेक्रेटरी का जिम्मा संभाल रहे हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि आईओसी के जीएस कितना उत्तराखंड हॉकी को वक्त दे पाते होंगे। इसके अलावा राज्य में हॉकी हकीकत यह है कि 21 वर्षो में कोई स्टेट चैंपियनशिप तक नहीं हो पाई।
कॉम्पिटीशन के लिए दो टीमें तक नहीं बन पाती
हॉकी के जानकारों की मानें तो नेशनल लेवल की टीम के लिए कई बार टीम भी नहीं बन पाती है। इसकी वजह यह है कि पूरी टीम बनाने के लिए बेहतर खिलाड़ी ही नहीं मिल पाते हैं। जबकि आपस में कॉम्पिटीशन बढ़ाने के लिए दो टीमें भी नहीं बन पाती हैं। कई बार नेशनल टीम बनाने के लिए तमाम जिलों से खिलाड़ी लेने पड़ते हैं। ऐसे में ये खिलाड़ी फुल प्रैक्टिस में भी नहीं रहते हैं। एक्सपर्ट्स इसका सबसे बड़ा कारण एसोसिएशन के उदासीन रवैया को जिम्मेदार मानते हैं। जबकि दूसरे स्टेट में हॉकी के चयनित खिलाडि़यों की संख्या 70 से लेक 90 तक पहुंच जाती है। जानकार बताते हैं कि ऐसे में हॉकी के खिलाड़ी दूसरे राज्यों के लिए पलायन कर देते हैं। एक्सपर्ट्स इसके लिए टोक्यो ओलंपिक में शानदार परफॉर्मेंस करने वाली वंदना कटारिया का उदाहरण देते हैं।
स्पोर्ट्स कॉलेज का ग्राउंड भी अधूरा
दून स्थित महाराणा स्पोर्ट्स कॉलेज का हॉकी एस्ट्रो टर्फ का निर्माण भी ठीक से नहीं हो पाया। हॉकी के कोच सुरेश बौंठियाल बताते हैं कि एस्ट्रो टर्फ हॉकी के सभी मानकों को पूरा करता है। जहां सेना, यूनिवर्सिटीज, डिपार्टमेंट्स व डिग्री कॉलेजों के कैंप व हॉकी प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। लेकिन, अभी कोरोना के कारण अभी ग्राउंड का जीर्णोद्वार का काम जा रही है। वायरिंग के अलावा दूसरे काम पूरे किए जा रहे हैं। फिलहाल, महाराणा स्पोर्ट्स कॉलेज के हॉकी एस्ट्रो टर्फ में कोरोनाकाल में एसओपी जारी होने के कारण कोई आयोजन नहीं हो पाए हैं। जिससे टर्फ पर भी असर पड़ा है।
हॉकी एसोसिएशन के अध्यक्ष पूर्व डीजीपी
राज्य में हॉकी को बढ़ावा देने के लिए उत्तराचंल हॉकी एसोसिएशन का गठन किया गया है। जिसके अध्यक्ष पूर्व डीजीपी व आईपीएस पीडी रतूड़ी व सचिव राजीव मेहता हैं। खास बात ये है कि राजीव मेहता पहले ही इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के महासचिव का जिम्मा संभाल रहे हैं। हॉकी एसोसिएशन का दफ्तर उधमसिंहनगर के रुद्रपुर में भारत गैस एजेंसी पर मौजूद है।
हॉकी विजार्ड का मिला था टाइटल
हर वर्ष 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्म दिन पर नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है। महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद वह शख्सियत रहे, जो अपनी हॉकी स्टिक के साथ खेल के मैदान मानो जादू बिखेर देते थे। इसलिए उन्हें हॉकी विजार्ड का टाइटल भी दिया गया था। उन्होंने अपने इंटरनेशनल करियर की शुरुआत 1926 में की और उनकी कप्तानी के समय देश को 3 ओलिंपिक गोल्ड मैडल जिताने में मदद की। ये गोल्ड मैडल उन्होंने सन 1928, सन 1932 और सन 1936 में देश को हासिल हुए।