-कई वर्षो से कॉलेजों में मेहनत कर रहे थे छात्र नेता

-कइयों की उम्र सीमा भी छात्र संघ चुनाव के लिए कर चुकी पार

- कोरोना के चलते नहीं हो रहे छात्र संघ चुनाव, छात्र नेता परेशान

देहरादून,

कोरोना महामारी ने हर किसी के अरमानों पर पानी फेर दिया। किसी की नौकरी हाथ से निकल गई तो कोई से शहरों से पहाड़ों की ओर पलायन के लिए मजबूर हो गया। लेकिन, यहां तो छात्र नेताओं का भविष्य ही चौपट हो गया। दो वर्षो से कॉलेजों में न तो चुनाव हो पा रहे हैं और न ही इस वर्ष कहीं दूर तक आसार दिख पा रहे हैं। ऐसे में कई छात्र नेता तो कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि उनका छात्र राजनीतिक का भविष्य ही चौपट हो गया है।

कई वर्षो की मेहनत पर फिर गया पानी

कोरोनाकाल से पहले गत वर्षो में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक छात्र संघ चुनाव हुआ करते थे। कॉलेज में नए स्टूडेंट्स के मूवमेंट के साथ ही छात्र नेताओं की खूब चहल-पहल हुआ करती थी। लेकिन, गत दो सालों से न केवल कॉलेज के कैंपस सूने पड़े हुए हैं। बल्कि, कोरोना संक्रमण का अब तक डर व भय बना हुआ है। यही वजह है कि छात्र संघ चुनाव की तैयारी कर रहे छात्र नेताओं के उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है। वे इस बाद को खुद स्वीकार कर रहे हैं। डीबीएस के छात्र नेता अंकित बिष्ट कहते हैं कि वे 5 वर्षो छात्र संघ चुनाव के लिए मेहनत कर रहे थे। लेकिन, कोरोनाकाल में सब कुछ चौपट हो गया। एक बार फिर से कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं से पहचान बनानी होगी। लेकिन, यह कब तक संभव हो पाएगा। इस पर अब तक स्पष्ट नहीं है।

डीएवी कॉलेज पर रहती है निगाहें

दून के कुछ ऐसे कॉलेज हैं, जहां पर हर बार छात्र संघ के चुनावों पर सबकी नजर रहती है। इसमें खासकर डीएबी व डीबीएस सबसे आगे रहता है। इसके बाद एमकेपी और एसजीआरआर यूनिवर्सिटी भी कम नहीं है। खास बात ये है कि इन कॉलेजों के छात्र संघ चुनावों में तमाम राजनीतिक पार्टियों का सीधे दखल रहा करता है।

कई छात्र नेताओं की उम्र पार

कोरोनाकाल से पहले तमाम कॉलेजों में छात्र संघ के चुनाव लिंगदोह कमेटी सिफारिशों के अनुसार होते आई हैं। कमेटी के अनुसार छात्र नेता के चुनाव लड़ने के लिए आयु सीमा भी निर्धारित है। खासकर ग्रेजुएशन के लिए 23 वर्ष, पीजी के लिए 25 और रिसर्च स्कॉर के 28 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित है। लेकिन, कमेटी की संस्तुतियां के हिसाब से छात्र नेता बता रहे हैं कि कई सालों से छात्र संघ के चुनाव के लिए मेहनत कर रहे छात्र नेताओं की उम्र सीमा भी पार हो चुकी है। ऐसे में उनके लिए चुनाव लड़ना भी मुश्किल हो गया है।

:::दून के कुछ कॉलेजों की छात्र संख्या

-डीएबी---करीब 12 हजार

-डीबीएस--करीब 5 हजार।

-एमकेपी ---करीब चार हजार।

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-छात्र संघ चुनाव की तैयारियां के लिए गत 5 वर्षो से मेहनत पर जुटा हुआ हूं। लेकिन, पिछले दो वर्षो से कॉलेज ही नहीं खुल पाए। वैसे भी लिंगदोह की सिफारिशों के अनुसार युवाओं के लिए छात्र संघ चुनाव लड़ने की सीमित सीमा है। छात्र राजनीतिक जीवन चौपट होता दिख रहा है।

अंकित बिष्ट, डीएबी, एनएसयूआई छात्र नेता।

दो वर्षो से छात्र संघ न होने के कारण कॉलेजों में छात्रों के हितों से जुड़े मुद्दे भी चौपट हो गए हैं। ऐसे में लाइब्रेरी से लेकर फीस तक के कई ऐसे इश्यू हैं। जिन पर कॉलेजों में बात ही नहीं हो पा रही है। उम्मीद है कि थर्ड वेव की संभावनाएं न के बराबर रहेंगी। जिससे छात्रों व छात्र नेताओं का भी भला हो सकेगा।

-दिव्या रावत, एमकेपी, छात्र नेत्री।

हर छात्र नेता की उम्मीद होती है कि वे भी आगे बढ़ें। हम स्टूडें्स लीडर भी पिछले 5-6 वर्षो से तैयारी पर जुटे हुए हैं। लेकिन कोरोना ने सभी के अरमानों पर पानी फेर दिया है। जिससे मायूसी और हताशा हाथ लग रही है। कई बार सोचने को मजबूर होना पड़ रहा है कि छात्र नेताओं का राजनीति करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो रहा है।

मनमोहन रावत, छात्र नेता, डीएबी, सत्यम शिवम छात्र संगठन ।

बेशक, कोरोना से छात्र राजनीति पर भी असर पड़ा है। लेकिन राजनीति की पहली पाठशाला के प्रति सरकार का भी उदासीन रवैया देखने को मिना है। सरकार युवा नेतृत्व को राजनीति से विमुख कर रहे है। कोविड-19 गाइडलाइन के तहत सरकार को छात्र संघ चुनाव कराने चाहिए।

अरुण टम्टा, छात्र नेता डीबीएस।

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