देहरादून (ब्यूरो) शीशमबाड़ा प्लांट्स में 4.22 लाख मीट्रिक टन वेस्ट इकट््ठा है। यह वेस्ट 2017 से 22 तक का बताया जा रहा है। दरअसल इस प्लांट में नगर निगम की ओर से रोजाना 3 से लेकर 4 टन कूड़ा डेली डिस्पोजल के लिए पहुंचाया जाता है, लेकिन पूरे कूड़े का डेली निस्तारण नहीं होता है। प्लांट की क्षमता कम होने से शेष वेस्ट डेली किनारे लगा लिया जाता है और अगले दिन नए वेस्ट का डिस्पोजल किया जाता है। ऐसे ही डेली सैकड़ों टन कूड़ा-कचरा डंप हो जाता है। पिछले पांच साल में यह डी-कंपोस्ट कूड़ा पूरे प्लांट्स में फैलकर 4.22 लाख मीट्रिक टन पहुंच गया है।

3 तरह से होगा वेस्ट रिसाइकिल
यहां डंप कूड़े में कई तरह का वेस्ट है, जिससे अलग-अलग किया जाना है। कूृड़े का निस्तारण तीन तरह से अलग किया जाएगा। इससे आरडीएफ, इंटर्न मेटेरियल और मिट्टी अगल-अलग की जाएगी। ये कूड़ा अलग-अलग काम में यूज किया जाएगा।

1 प्लास्टिक से बनेगी ईंट
प्लास्टिक का डिस्पोजल रिफ्यूज्ड डिराइव फ्यूल (आरडीएफ) माध्यम से किया जाएगा, इससे निकलने वाले प्लास्टिक कचरे को सीमेंट फैक्ट्री में भेजा जाएगा, जिससे ईंट बनाई जाएगी।

2 रोड फिलिंग के काम आएगा इंटर्न मेटेरियल
प्लास्टिक के बाद अलग होने वाले इंटर्न मेटेरियल को नई सड़कों के निर्माण में यूज किया जाएगा। यह आरबीएम की तरह होता है। इंटर्न मेटेरियल को रोड फिलिंग में यूज किए जाने से सड़कों को मजबूती मिलेगी।

3 मिट्टी आएगी गार्डनिंग के काम
डंपिंग कूड़े से आरडीएफ और इंटर्न मेटेरियल के बाद बचने वाली मिट्टी के हिस्से को गार्डन के काम में लाया जाएगा। गार्डन में यूज होने वाली मिट्टी जहां पेड़-पौधों को नया जीवन देगी वहीं पर्यावरण भी शुद्ध होगा।

23 करोड़ होंगे खर्च
देहरादून स्मार्ट सिटी परियोजना के पीआईयू के प्रोजेक्ट मैनेजर प्रवीन कुश ने बताया कि शीशमबाड़ा में डंप कूड़े के निस्तारण के लिए जारी टेंडर 30 जुलाई को खुलेंगे। यह टेंडर लगभग 23 करोड़ रुपए का है। इस कूड़े से आस-पास के इलाकों में फैलने वाली बदबू से जहां लोगों को छुटकारा मिल जाएगा वहीं पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बचेगा। यह काम 500 रुपए प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से डिस्पोजल होगा। इसमें तकरीबन 20 महीने का समय लगेगा।

विवादों से घिरा रहा प्लांट
जनवरी 2017 में शुरू हुए प्रदेश के पहले सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट का विवादों से गहरा नाता रहा है। जन विरोध के चलते यह प्लांट सरकार के लिए मुसीबत बना हुआ है। प्लांट तक पहुंचने वाले सारे कूड़े का निस्तारण न होने से हर दिन कूड़ा बगैर निस्तारण के छूटता रहा, जो आज हजारों टन पहुंच गया। दावे किए जा रहे थे कि यह पहला वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट है, जो पूरी कवर्ड है और इससे किसी भी तरह की दुर्गंध बाहर नहीं आएगी, लेकिन नगर निगम के यह दावे हवा हवाई ही साबित हुए।

शीशमबाड़ा प्लांट पर एक नजर
- कूड़े की बदबू से परेशान लोगों ने 2020 में 187 दिनों तक आंदोलन किया।
-नगर निगम कई जगहों से कूड़ा एकत्रित कर शीशमबाड़ा में आसन नदी किनारे निस्तारण केंद्र में करता है डिस्पोजल
-यहां से उठने वाली बदबू से कई किमी दूर पहुंचने से लोगों को सांस तक लेना मुश्किल हो जाता है।
-बदबू से शीशमबाड़ा, शेरपुर, कल्याणपुर, सेलाकुई, रामपुर, शकंरपुर समेत आस-पास के लोग व स्कूल-कॉलेज प्रभावित
-2020 में शीशमबाड़ा कूड़ा निस्तारण प्लांट के जन विरोध के बीच तत्कालीन मेयर ने डीएम को दिए समाधान के निर्देश
-ये भी पाया कि प्लांट उस समय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी के बिना संचालित हो रहा है।
-उस वक्त मेयर ने साफ किया कि प्लांट किसी सूरत में वहां से शिफ्ट नहीं होगा, अलबत्ता दुर्गंध को दूर करने के प्रयास होंगे।
-कूड़ा निस्तारण को सेलाकुई शीशमबाड़ा में बनाया गया था सूबे का पहला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और रिसाइकिलिंग प्लांट।

शीशमबाड़ा में लंबे समय से लाखों टन कूड़ा डंप है, जिसके निस्तारण के लिए प्लान तैयार कर टेंडर जारी किए गए हैं। लगभग 23 करोड़ के इस कार्य में दो साल लगेंगे। इससे जहां लोगों की समस्या दूर होगी वहीं पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बचेगा।
प्रवीन कुश, पीएम, पीआईयू, स्मार्ट सिटी

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